अध्यात्म, by kalpana shukla | Navratri : परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी ( गुरुजी ) नवरात्रि के महत्व में यह बताएं कि अपनी ऊर्जा को जागृत करने के लिए शक्ति को जागृत करना, आत्मबल, प्रेम ,पद, ऊर्जा सब शक्ति से ही संचालित होती है शक्ति के बिना परमात्मा भी अधूरे हो जाते हैं, वह परमात्मा के तीनों रूपों का तेज है उसके माध्यम से समस्त कार्य होते हैं।
नव वर्ष का आगमन हो तब राक्षसी शक्ति का विनाश
Navratri : जब नव वर्ष का आगमन हो तब राक्षसी शक्ति का विनाश करके रंग खेल कर खुशियां मनाते है फिर 15 दिन पूर्वजों का श्राद्ध फिर जागरण करना। नव का अर्थ नवीन । नव संवत्सर, नव वर्ष ,मनुष्य के घोर अंधकार रूपी रात्रि क्रोध , लोभ,मोह, ईर्ष्या, आडंबर, पाखंड यह सब प्रकार के अंधकार है ।
तम, रज, सत्व नववर्ष में इन तीनों को दूर करने के लिए शक्ति की आवश्यकता है एक भी विकार को हम लोग समाप्त नहीं कर पाते क्योंकि समाप्त करने के लिए शक्ति नहीं है वह दुर्गुण स्ट्रांग बनकर बैठा हुआ है पूरा जीवन असहाय और मजबूरी में ही जी लेते हैं हर व्यक्ति चाह कर भी ठीक नहीं कर पाता,हम सब शक्ति के भ्रम में है ।
वास्तव में शक्ति नही है जब शक्ति वास्तव में जागृत हो जायेगी तब आत्म बल के बल से हम कुछ भी कर सकते हैं और सफल भी हो जाते हैं शक्ति में मां के हर रूप को देखते हैं और इनको अनेक रूपों में देखते हैं सभी कार्य करने के लिए हम शक्ति को ही पुकारते हैं विद्या रूपेण, क्षमा रूपेण, दया रूपेण,तृष्णा रूपेण, सभी कार्य करने के लिए हम शक्ति को ही आवाहन करते हैं ,हर जगह हमको शक्ति की आवश्यकता है।
Navratri : नवरात्रि पूजा का नियम…
कलश की स्थापना करना, कलश में समस्त देवी देवताओं का आवाहन करना, घट में समस्त देवी देवता स्थापित होते हैं , फिर गौरी गणेश पूजा, नवग्रह पूजा , वेदियों के माध्यम से यंत्र में स्थान ,अखंड ज्योत जलाना,हमारा यह व्रत का अखंड बना रहे यह संकल्प लेते है,जैसे ज्योत उर्ध्वगामी होता है वैसे ही हमारी ऊर्जा उर्ध्वगामी हो, ज्योत कभी ना बुझे हमेशा मंगल हो ,अकाल मृत्यु ना हो , इसलिए मां के सामने अखंड ज्योत जलाई जाती है ।
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अपने परिवार में जितने सदस्य होते हैं उतने धागा लगाकर दीप में बाती बनाकर जलाते हैं , कलश के नारियल रखा जाता है।
Navratri : इस बार माता रानी का आगमन घोड़े से हो रहा है, आवागमन आना और जाना…. अलग-अलग सवारी में प्रावधान है, 9 दिन अतिथि के रूप में मातारानी हमारा पूजन लेकर जाती है, मंगल के दिन नवरात्रि की शुरुआत मंगल राजा है शनि मंत्री है दोनों मित्र है लेकिन मंगल ग्रह के राजा बनने में विद्यार्थी को उत्साह होता है ।
Navratri : इस बार माता रानी का सवारी घोड़ा है घोड़े का आगमन शुभ संकेत नहीं होता और विदाई हाथी पर है हाथी पर प्रस्थान शुभ संकेत है हाथी पर जाएगी तो पूरी तरह सृष्टि को आशीर्वाद देकर जाती है। जहां शक्ति की आराधना की जाएगी वहां अशुभ भी शुभ में बदल जाती है , वाहन भले ही अशुभ हो माता रानी तो शुभ ही है ।
Navratri : पाठ विधि
सप्तशती में 700 श्लोक मार्कंडेय पुराण से लिया गया है, पूरा मंत्र भगवान शिव के द्वारा कीलक कर दिया गया है बंद कर दिया गया है,इसको पाठ करने से कोई सदुपयोग या दुरुपयोग नही है, शापोद्धार करना, उतकीलन करना,जब मंत्र खुल जाय तब नर्वाण मंत्र, सप्तशती का पाठ करना। सप्तशती के पाठ से पहले आत्म शुद्धि के लिए चार बार हाथ में जल लेकर पृथ्वी पर छोड़ना, पांचवें बार जल पीना है, शक्ति की साधना बीज मंत्र में दिया गया है ।

Navratri : संकल्प में लौंग का अनिवार्य होता है, लाल फूल अनिवार्य है, शाप मंत्र सात बार बोलना है, इसके बाद उत्कीलन मंत्र 21 बार ,मृत संजीवनी मंत्र सात बार ,फिर गुरु मंत्र 7 बार बोलना है।तब सप्तशती का मंत्र जाप ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे…नर्वाण मंत्र 108 बार बोल सकते हैं समाप्ति के बाद फिर से साथ 7,21,7 फिर गुरु मंत्र फिर बंद किया जाता है। खुला रखने से दोष पड़ने लग जाता है।
Navratri : रक्त चंदन की माला से जाप करना चाहिए, अजपा जप अर्थात शब्द ना बोले आवाज ना निकले ,जप होता रहे, पाठ आरंभ करने से पहले कुंडलाकृति बनाकर जल लेकर वशिष्ठ शाप मुक्ति विनियोग करना है तब आगे बढ़ना फिर अर्गला कवच करना है , इसके बाद रात्रि सूक्त ,अथर्वशीर्ष ,फिर न्यास करना है, हृदय न्यास ,इंद्रियों की साधना करना ,मन विचलित ना हो इसके लिए न्यास किया जाता है ,हर तरह से सुरक्षित होना,फिर चुटकी बजाकर दिशाओं का अक्षर न्यास आग्नेय कोण, नैऋत्य कोण,वायव्य कोण, ईशान कोण सभी दिशाओं का बंधन अब पाठ आरंभ करें ।
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13 अध्याय तीनों देवियों को समर्पित है , पहला अध्याय मां काली को,और दो तीन चार अध्याय माता लक्ष्मी को समर्पित है , 5 से 13 तक मां सरस्वती को समर्पित है । लाल फूल लेकर काली के स्वरूप का ध्यान करना,
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिधान् शूलं भुशुण्डीं शिरः शङ्ख सन्दधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकाम् यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम् ।।
मां स्वरूप का वर्णन और देवी का ध्यान
Navratri : मां स्वरूप का वर्णन और देवी का ध्यान करके जिनके दसों हाथ में शस्त्र है ,शरीर नीलमणि हैं, तीन नेत्र है 10 मुख है लेकिन नेत्र केवल तीन है। आरंभ में सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना, फिर या तो केवल मध्य चरित्र का पाठ करना मध्य चरित्र 2, 3, 4 अध्याय , लक्ष्मी जी की आराधना। एक किसी एक का चयन करके फिर उसी का 9 दिन आराधना करना। पहला अध्याय प्रथम चरित्र ,पहले दिन में , या पहले से पांचवें अध्याय तक पढ़ना फिर समापन , आरती, सिद्ध कुंजिका, देव्यापराधक्षमापन स्तोत्रम् ।
दूसरे दिन 2 से 6, तीसरे दिन 3 से 7, चौथे दिन में 4 से 8 , पांचवे दिन 5 से 9, छठवे दिन 6 से 10, सातवे दिन 7 से 11, आठवें दिन 8 से 12, नौवे दिन 9 से 13 यह 9 दिन में करना। एक से 1 से 13 पहले दिन में भी पूरा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं।
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Navratri : सर्वश्रेष्ठ पाठ संपुट पाठ
सर्वश्रेष्ठ पाठ संपुट पाठ होता है जिसमे एक मंत्र लेकर जैसे सर्वबाधा विनिर्मुक्तो… कोई भी एक मंत्र लेकर उसका ध्यान करके श्लोक के पहले और बाद उसे ही बोलना यह संपूट होता है। जो नहीं कर सकते है वह केवल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत भी पढ़ सकते है।
समस्त शिष्य शिष्याओं और देशवासियों को हिंदू नव वर्ष नवरात्रि और रामनवमी की शुभकामनायें दिए।