Mahashivratri : महाशिवरात्रि शिवशक्ति की आराधना का पर्व; जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है

by kalpana shukla

Mahashivratri is the festival Now
Mahashivratri is the festival Now

अध्यात्म । Mahashivratri is the festival Now : महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली महाशिवरात्रि का अपना विशेष महत्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर यानि की स्वयं शिव ही चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं।

यही वजह है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त पूरे विधि-विधान से महादेव की पूजा करते हैं। यह त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी होगी 

Mahashivratri is the festival Now :  इस वर्ष महाशिवरात्रि चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 11:08 पर शुरू होगी और 27 फरवरी को सुबह 8:54 पर समाप्त होगी। महाशिवरात्रि का पर्व श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र के युग्म संयोग में मनाई जाएगी। नक्षत्रों के संयोग में महाशिवरात्रि विशेष रूप से फलदायी रहेगी।

Mahashivratri is the festival Now : महाशिवरात्रि शिवशक्ति की आराधना का पर्व; जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है

भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का पावन पर्व

Mahashivratri is the festival Now :  महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का पावन पर्व है। महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन का उत्सव है, जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार की शक्ति का संतुलन स्थापित करता है। इस दिन भक्तजन शिव और शक्ति की आराधना करके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। इस दिन की गई उपासना, व्रत और रात्रि जागरण से न केवल शिव कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और मानसिक शांति का अनुभव भी होता है।

शिवलिंग का अभिषेक, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप, और श्रद्धा से की गई पूजा हर भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक बल प्रदान करती है। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को शिव और शक्ति की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।


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भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की पौराणिक कथा

Mahashivratri is the festival Now :  भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह एक दिव्य और पौराणिक घटना है, जो महाशिवरात्रि पर्व का मुख्य आधार मानी जाती है। इस कथा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, विशेष रूप से शिव पुराण और स्कंद पुराण में इसे विस्तार से बताया गया है।

Mahashivratri is the festival Now :  सती का आत्मत्याग और माता पार्वती का जन्म

माता पार्वती का पूर्वजन्म में नाम सती था, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं। सती भगवान शिव की परम भक्त थीं और उन्होंने घोर तपस्या कर शिव से विवाह किया था। लेकिन राजा दक्ष शिव को पसंद नहीं करते थे। एक बार उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती बिना बुलाए वहां पहुंचीं, तो राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया। यह देखकर सती अत्यंत क्रोधित और दुःखी हुईं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

सती के देहत्याग के बाद भगवान शिव अत्यंत व्यथित हो गए और उनका ध्यान संसार से हट गया। वे समाधि में लीन रहने लगे और संपूर्ण सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।

Mahashivratri is the festival Now :  माता पार्वती की तपस्या

सती ने अगले जन्म में राजा हिमालय और माता मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती के रूप में जानी गईं। उन्होंने भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। माता पार्वती ने वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर घोर तप किया, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद देने पहुंचे।

Mahashivratri is the festival Now :  भगवान शिव और पार्वती का विवाह

देवताओं और नारद मुनि के आग्रह पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद भगवान शिव ने विवाह प्रस्ताव रखा और राजा हिमालय ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान शिव की बारात अनोखी थी—इसमें भूत, प्रेत, नाग, योगी, साधु-संत, गंधर्व और विभिन्न प्रकार के जीव शामिल थे। यह देखकर माता पार्वती की माँ, मैना देवी घबरा गईं, लेकिन भगवान शिव ने अपने दिव्य रूप में आकर सबको शांत किया।

फिर विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती का भव्य विवाह संपन्न हुआ। यह विवाह केवल एक दांपत्य संबंध नहीं था, बल्कि शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक था, जिससे सृष्टि का संतुलन बना रहता है।


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Mahashivratri is the festival Now :  महाशिवरात्रि की उपासना विधि

  1. व्रत एवं उपवास – भक्तजन इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।
  2. प्रभात स्नान – सूर्योदय से पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं।
  3. शिवलिंग अभिषेक – दूध, जल, शहद, दही, बेलपत्र, गंगाजल, गन्ने का रस, भांग, धतूरा आदि से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
  4. मंत्र जप – “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
  5. रात्रि जागरण – भक्तजन पूरी रात भजन-कीर्तन और शिव पुराण का पाठ, भजन-कीर्तन और शिव कथा सुनकर जागरण करते हैं।
  6. भोग अर्पण – शिव को प्रसाद स्वरूप फल, मिठाई और पंचामृत अर्पित किया जाता है।
  7. दर्शन एवं आरती – मंदिरों में जाकर भगवान शिव के दर्शन किए जाते हैं और आरती की जाती है।

Mahashivratri is the festival Now : महाशिवरात्रि का महत्त्व

  1. आध्यात्मिक महत्त्व – यह दिन आत्मशुद्धि, ध्यान और आत्मसाक्षात्कार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
  2. पौराणिक कथा – मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था।
  3. शिवलिंग प्रकट होने का दिन – कुछ कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं को ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट किया था।
  4. मोक्ष की प्राप्ति – इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  5. सकारात्मक ऊर्जा – रात्रि में जागरण और मंत्रोच्चार से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे जीवन में सुख-शांति आती है।

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  • शिव पुराण में क्या-क्या लिखा है?
शिव पुराण सभी पुराणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुराणों में से एक है। भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है। इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। ।
  • स्कंद पुराण में क्या-क्या लिखा गया है ?

कई अन्य पुराणों की तरह स्कंद पुराण में भी दक्ष के बलिदान , शिव के दुःख, समुद्र मंथन ( समुद्र मंथन ) और अमृता की उत्पत्ति, राक्षस तारकासुर की कहानी, देवी पार्वती का जन्म, शिव की खोज और भगवान शिव से उनके विवाह आदि की कथाएं सम्मिलित हैं।

  • स्कंद पुराण में भगवान कौन हैं?

स्कन्द पुराण मूल रूप में एक शतकोटि पुराण है, जिसमें शिव की महिमा का वर्णन किया गया है।

  • सबसे श्रेष्ठ पुराण कौन सा है ?
पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें २४,००० श्लोक सम्प्रति केवल ११,००० और २१७ अध्याय हैं। (१३) स्कन्दपुराण : यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है।
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