Haathi Mere Saathi Movie Review: बड़ी देर कर दी मेहरबां पते की बात बताते-बताते

Movie Review

Haathi Mere Saathi : इंसानों को सदियों पहले अहसास हुआ कि उन्हें जानवरों की तरह पेड़ों के आसपास रहने की जरूरत नहीं है। वो पेड़ काटकर जमीन को समतल करके उस पर घर बनाकर रह सकते हैं और तभी से जंगलों को लगातार काटा जा रहा है। जब पहली बार इंसान ने अपने लिए किसी पेड़ को काटा होगा, तो उसे विकास का नाम ही दिया होगा लेकिन शब्द कुछ और रहा होगा। उस वक्त से शुरू हुआ विकास 21 सदियों में भी नहीं हो पाया है क्योंकि समय-समय पर धरती पर सनकी इंसान आते रहे, जिन्होंने विकास की नई-नई परिभाषाएं गढ़ी हैं।

Haathi Mere Saathi: राणा दग्गुबाति (Rana Daggubati), पुलकित सम्राट (Pulkit Samrat), श्रिया पिलगांवकर (Shriya Pilgaonkar), जोया हुसान (Zoya Hussain), अनंत महादेवन (Anant Mahadevan) की हाथी मेरे साथी इंसानी सनक की वो कहानी लेकर आई है, जो केवल जंगल ही बर्बाद नहीं कर रही बल्कि जानवरों की नस्लों के साथ-साथ इंसानों के जीवन को भी खतरे में डाल रही है। डायरेक्टर प्रभु सोलोमन ने अच्छी नियत से हाथी मेरे साथी बनाई है लेकिन 2 घंटे 41 मिनट लम्बी यह फिल्म क्या दर्शकों को लगातार बांधकर रख पाती है? आइए आपको बताते हैं…

फिल्म की कहानी:

हाथी मेरे साथी जंगल में रहने वाले एक बूढ़े व्यक्ति वनदेव (राणा दग्गुबाति) की कहानी है, जो हाथियों से इश्क करता है और पेड़ों का दुख-दर्द साझा करता है। वनदेव को उसके आसपास के लोग मसीहा मानते हैं क्योंकि उसने सुख-सुविधा भरी जिंदगी छोड़कर जंगलों की सेवा करने का फैसला लिया है। वनदेव की लगन को भारत के राष्ट्रपति ने भी सलाम किया है लेकिन उसके प्रयासों का एक सनकी राजनेता (अनंत महादेवन) की नजरों में कोई मोल नहीं है। वो वनदेव के जंगलों में घुसकर एक लग्जरी टाउनशिप बसाना चाहता है, जिसके लिए वो हजारों पेड़ों और सैकड़ों हाथियों की जिंदगियों की भी परवाह नहीं करता है।

डायरेक्टर प्रभु सोलोमन की हाथी मेरे साथी वन संरक्षण के अलावा जंगलों पर निर्भर लोगों की जिंदगी और उसके आसपास होने वाली राजनीति पर भी फोकस करने की कोशिश करती है। अपने जंगलों के लिए जान न्योछावर करने वाले लोगों को कैसे माओवादी करार दिया जाता है और अपना हित साधने के लिए कैसे राजनेता पुलिस के साथ मिलकर घिनौनी राजनीति रचते हैं, यह हाथी मेरे साथी के दौरान देखने को मिलता है।

फिल्म की खास बातें जंगल और ग्लोबल वार्मिंग

लगातार घट रहे जंगल और ग्लोबल वार्मिंग के दौर में हाथी मेरे साथी एक जरूरी फिल्म है। इसमें डायलॉग्स के माध्यम से डायरेक्टर ने लोगों को आईना दिखाने का काम किया है कि कैसे जंगलों पर ही इस दुनिया का भविष्य निर्भर करता है। अगर हम इन्हें लगातार काटते रहेंगे तो इंसानी नस्ल का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।

इंसान जिसे विकास समझकर दिन-रात मेहनत कर रहा है, असल में वो उसकी बर्बादी का सबसे बड़ा कारण है। दुनिया के कुछ सनकी लोग इतिहास रचने के लिए सारी हदें पार करने पर तुले हैं, लेकिन वो यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इतिहास लिखना और पढ़ना दोनों जरूरी हैं, जिसके लिए इंसानों की जरूरत है। अगर इंसान ही नहीं बचे तो इतिहास लिखने का क्या मतलब है ?

फिल्म की टूटी-फूटी कहानी

हाथी मेरे साथी कई सारी चीजें एक साथ समेटने की कोशिश करती है, जिस कारण इसका प्रभाव खत्म हो जाता है। वन संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण, प्राकृतिक आपदा, वनों की कटाई का इंसानों पर प्रभाव, नक्सली-माओवादी और जंगलों पर होने वाली राजनीति जैसे कई मुद्दे एक कहानी में परोसने की कोशिश की गई, जिस कारण हाथी मेरे साथी की कहानी बिखर गई। इंसान और जानवरों के रिश्ते को पेश करती हाथी मेरे साथी से इमोशन्स गायब हैं।

टूटी-फूटी कहानी की वजह से इसमें नजर आए सभी कलाकार खराब एक्टिंग करते नजर आते हैं। राणा दग्गुबाति ने अपने किरदार के लिए काफी मेहनत की है लेकिन वो प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। जोया हुसैन, पुलकित सम्राट, श्रिया पिलगांवकर और अनंत महादेवन जैसे कलाकारों के किरदारों पर बिल्कुल मेहनत नहीं की गई है। फिल्म के कई किरदार ना केवल कहानी की रफ्तार को ब्रेक करते हैं बल्कि ध्यान भी भटकाते हैं।

एडिटिंग किसी भी फिल्म को बना सकती है। एडिटर का काम होता है कि वो डायरेक्टर के मुताबिक नहीं बल्कि अपने मुताबिक काम करे क्योंकि हर डायरेक्टर चाहता है कि उसने जो कुछ शूट किया है, वो सब फिल्म में रख लिया जाए। हाथी मेरे साथी के असोसिएट एडिटर वी. बालाजी शायद यह भूल गए और उन्होंने एडिटिंग टेबल पर सारे सीन्स को बस जोड़ दिया। 2 घंटे 41 मिनट लम्बी हाथी मेरे साथी को 1 घंटा छोटा किया जा सकता था।

फिल्म के कैमरापर्सन गफेम हेमू पांडे के पास खूबसूरत जंगल को कैमरे में कैद करने का पूरा मौका था लेकिन वो चूक गए हैं। फिल्म का वीएफएक्स वर्क भी बहुत बचकाना है।

फैसला:

राणा दग्गुबाति की हाथी मेरे साथी अच्छे विषय पर आधारित हद से लम्बी फिल्म है। इसकी कहानी जंगलों की तरह दूर-दूर तक फैली हुई है और किरदार अधपके हैं। हाथी मेरे साथी को देखते हुए लगता है कि डायरेक्टर और राइटर प्रभु सोलोमन के दिमाग में जो कुछ भी आया उन्होंने इसमें सब डाल दिया। हाथी मेरे साथी जब खत्म होती है तो मुंह से यही निकलता है कि बड़ी देर कर दी मेहरबां पते की बात बताते-बताते…..। हमारी ओर से फिल्म हाथी मेरे साथी को 2 स्टार…।

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