Festival of New Era : सांस्कृतिक पर्व, त्यौहार और राष्ट्रीय पर्व में उत्सव के नाम पर अभद्र नाच, गाना, नशा, बदलते दौर की तस्वीर

Festival of New Era
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लेख/साहित्य |  Festival of New Era: भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न धर्म, संस्कृति और परंपराओं का अनूठा (unique) संगम देखने को मिलता है। यहां के पर्व और त्यौहार (festivals)  न केवल समाज को एक सूत्र में बांधते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति (Indian culture) की समृद्धि (Prosperity) को भी दर्शाते हैं। परंतु पिछले कुछ दशकों से हमने देखा है कि इन पर्वों के वास्तविक उद्देश्यों से भटकते हुए, उत्सव का स्वरूप बदलने लगा है।

आजकल (Nowadays) सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पर्वों (national festivals) के नाम पर जो अभद्र नाच, गाना और नशे का प्रयोग हो रहा है, वह समाज (society) के लिए चिंता का विषय बन गया है। इस बदलते परिदृश्य में युवा पीढ़ी (young generation) की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, जो सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने के बजाय आधुनिकता के नाम पर अपने मार्ग से भटक रही है।

Festival of New Era: सांस्कृतिक पर्वों का मूल उद्देश्य और वर्तमान स्थिति

त्यौहारों (festivals)  का मूल उद्देश्य (Basic objective) समाज को एकजुट करना, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों (spiritual values) को मजबूत (strengthen) करना, और सामूहिकता का भाव विकसित करना है। चाहे वह होली हो, दिवाली, ईद, क्रिसमस या गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व हों, प्रत्येक त्यौहार का एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व (spiritual significance) है।

लेकिन, हाल के वर्षों में, इन त्यौहारों (festivals) के नाम पर होने वाले कार्यक्रमों का स्वरूप तेजी (changing rapidly) से बदल रहा है। नाच, गाने और नशे के सहारे उत्सव मनाने का चलन (trend of celebrating) बढ़ता जा रहा है। होली जैसे पर्व, जो प्रेम और मेल-जोल का प्रतीक (symbol of love and harmony) था, अब शराब और ड्रग्स के सेवन का पर्याय (synonymous with consumption) बनता जा रहा है। इसी तरह, गणेश चतुर्थी जैसे पर्वों में भी ज़ोर-शोर से डीजे, बेतरतीब नाच, और उच्च ध्वनि की प्रदूषणकारी संगीत high noise pollution का इस्तेमाल बढ़ गया है, जो सांस्कृतिक मूल्यों का उपहास उड़ाने (mockery of cultural values) जैसा है।

Festival of New Era: बदलते समाज और मीडिया की भूमिका

मीडिया और फिल्मों ने इस बदलाव को व्यापक रूप से प्रभावित (widely influenced) किया है। फिल्मों और संगीत वीडियो में त्यौहारों को आधुनिकता के नाम पर दिखाने का तरीका ऐसा बन चुका है कि लोगों के मन में पर्व के प्रति एक विकृत धारणाएं (distorted perception) बन गई हैं। इन वीडियो में नाच-गाना और शराब का प्रयोग सामान्य तौर पर दिखाया जाता (commonly shown) है, जिससे युवा पीढ़ी में यह प्रवृत्ति और अधिक बढ़ती है।

टीवी विज्ञापनों और सोशल मीडिया पर भी ऐसी चीजें प्रसारित (social media which promote) होती हैं जो नशे और अश्लीलता (obscenity) को बढ़ावा देती हैं। त्योहारों से जुड़े उत्पादों का प्रचार-प्रसार (promoted in a similar manner) भी इसी ढंग से किया जाता है, जिसमें आधुनिकता का मुखौटा पहने (mask of modernity) हुए संस्कारहीनता झलकती है।

Festival of New Era : युवा पीढ़ी की भूमिका और ज़िम्मेदारी

युवा पीढ़ी समाज का भविष्य होती है, और उनके कंधों पर सांस्कृतिक धरोहर (cultural heritage) को सहेजने और संरक्षित करने की जिम्मेदारी (responsibility of saving) होती है। लेकिन, आधुनिक जीवनशैली और ‘कूल’ दिखने की होड़ में, वे पारंपरिक मूल्यों को त्यागते हुए पश्चिमी संस्कृति की ओर झुकते जा रहे हैं। नशा और अभद्रता को उत्सव का हिस्सा मान लेना एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो हमारे समाज और परिवारों के लिए गंभीर परिणाम लेकर आ सकती है।

युवाओं में सही मार्गदर्शन (proper guidance among) की कमी के कारण, वे यह समझ नहीं पाते कि त्योहार केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि एक सामूहिक चेतना का प्रदर्शन भी हैं, जो समाज के विकास में योगदान करते हैं। जोश और उत्साह के नाम पर मर्यादा का उल्लंघन करते हुए वे अपने सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों (values ​​while violating decorum) को भूल जाते हैं।

Festival of New Era: समाधान और सही दिशा

समाज को इन समस्याओं से उबरने के लिए अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के प्रति गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। हमें यह समझना होगा कि परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन वह परिवर्तन जो समाज और संस्कृति को बेहतर बनाए। इस दिशा में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. सांस्कृतिक जागरूकता का प्रसार: बच्चों और युवाओं को बचपन से ही भारतीय त्योहारों की सही जानकारी देना और उन्हें उनके वास्तविक अर्थ समझाना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर इन मूल्यों को सहेजा जा सकता है।
  2. मीडिया का सकारात्मक उपयोग: फिल्म निर्माताओं, संगीतकारों और मीडिया को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे किस प्रकार त्योहारों को प्रस्तुत कर रहे हैं। नशा और अश्लीलता को बढ़ावा देने के बजाय, त्योहारों के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को दिखाना चाहिए।
  3. सख्त नियम और नियंत्रण: सरकार और प्रशासन को चाहिए कि सार्वजनिक स्थानों पर नशे और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं। त्योहारों के दौरान पुलिस की कड़ी निगरानी भी रखी जानी चाहिए ताकि अनुचित घटनाएं न हो सकें।
  4. पारिवारिक भूमिका: परिवार भी बच्चों को सही संस्कार देने और मर्यादित रूप से त्योहार मनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। माता-पिता का उदाहरण बच्चों के लिए एक प्रेरणा स्रोत होता है, इसलिए वे स्वयं भी अपने आचरण से त्योहारों के वास्तविक उद्देश्यों को जीवंत बना सकते हैं।

Festival of New Era: सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पर्वों का महत्व समझते हुए उन्हें मनाने के तरीकों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। आधुनिकता के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, ताकि आने वाली पीढ़ी एक समृद्ध और सुसंस्कृत समाज का निर्माण कर सके।


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(लेख, कविता, साहित्यिक प्रस्तुति लेखक के अपने विचार हैं)

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