अध्यात्म/श्रीमती कल्पना शुक्ला
जब मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो इस स्थिति को संक्रांति कहते हैं
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) मकर संक्रांति एवं मांघ महीने का वर्णन करते हुए बताते हैं कि मांघ, मकर,गति रवि जब होई…. जब मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो उस स्थिति को संक्रांति कहते हैं. मकर राशि का स्वामी शनि है,और शनि के घर में सूर्य का प्रवेश यानी शनि सूर्य के पुत्र हैं, सूर्य पिता है,पिता के पुत्र के घर में पिता का प्रवेश होना इसको क्रांति कहते हैं ।
क्रांति का मतलब परिवर्तन, बदलाव सब कुछ धीरे-धीरे बदलना शुरू हो जाते हैं , नया हो जाता है , सोच बदल जाती है ,मौसम बदल जाता है ,सब कुछ बदल जाता है।
मकर संक्रांति एवं मांघ महीने में तिल का विशेष महत्व बताया गया है तिल का स्नान,तिल का दान और तिल का सेवन करना चाहिए ।
पुत्र के घर में पिता का प्रवेश
क्योंकि पहला अवसर होता है जबकि पुत्र के घर में पिता का प्रवेश होता है। वरना हमेशा पुत्र ही जाते है पिता के घर, पुत्र मिलने जाते हैं लेकिन आज का विशेष दिन ऐसा होता पुत्र के घर पिता मिलने आते है, इस स्थिति को संक्रांति कहते हैं।
इस स्थिति का आनंद उठाने के लिए यहां पर समस्त देवी -देवता निवास करते हैं, गंगा जी में स्नान करते हैं ,कथा पूजन करते हैं, और समस्त देवी देवताओं किन्नर सबका यहां निवास करने के कारण यह तीर्थों का राजा कहा गया । यह प्रत्येक वर्ष होता है कितने प्रकार के लोग यहाँ आते हैं ,तो तुलसीदास जी कहते हैं – कि देव -दनुज, किन्नर, देवता भी आते हैं।
दनुज का मतलब दैत्य, जहां देवता होते वहां दैत्य भी होते हैं, जहां लूटने वाले होते वहाँ अधिक लुटाने वाले भी आते हैं, जहां लेने वाली की श्रेणी बहुत अधिक होती है वहां दानदाताओं की श्रेणी भी अधिक हो जाती है ,अद्भुत संयोग होता है ,लेने वाला भी उतना देने वाले भी ।
कहां-कहां जाकर कितना भी ले ले और देने वाले के मन में कहां-कहां जाकर कितना दे । दिन संत ऋषि- मुनि ,महात्मा कथा करते हैं पंडाल में। भक्तजन जाकर के गंगा जमुना और सरस्वती की त्रिवेणी धारा में डुबकी लगाते हैं , तन और मन की शुद्धि करके आते हैं , जितने गुरु, संत ,महाराज वो अपने प्रवचन के माध्यम से ज्ञान की गंगा बहाते हैं. इस ज्ञान की गंगा में शिष्य और भक्तगण डूबकी लगाते हैं । यहां ज्ञान ,भक्ति और कर्म तीनों का मिश्रण होता है, यमुना जी कर्म ,गंगा जी भक्ति और सरस्वती जी ज्ञान की देवी है। केवल स्नान करने से शुद्धि नहीं होता। गंगा में भक्ति के डूबकी, यमुना में कर्म की डुबकी और अंदर शुद्ध हो जाने पर सरस्वती जी में ज्ञान की डूबकी लगाने से देवी सरस्वती ज्ञान से बाहर भी शुद्ध कर देती है।
पूजा करते है,माधव जी का दर्शन करते हैं, माधव भगवान कृष्ण को कहा गया है उनकी पूजा करते हैं। यहां पर द्वादश माधव की चर्चा होती है, त्रिवेणी की परिक्रमा करते समय 12 माधव का लोग दर्शन करते हैं।
कल्पवास का वर्णन
जो परिक्रमा होती है वो यहां कल्पवासी कल्पवास करते हैं वह 12 माधव का दर्शन करते हैं। कल्पवास एक बड़ी तपस्या है जिसे करने के लिए कल्पवासी को सयम और साधना के साथ नित्य नियम का पालन करते हुए, एक समय भोजन करना ,अपना ही हाथ से बनाना भोजन करना और दूसरों से को भी भोजन खिलाना ।
जहां कुंभ पर्व एक स्थान पर ठीक बारह वर्ष उपरांत आता है इसके उलट साधना पर्व कल्पवास प्रति वर्ष लगता है। बात समानता की हो तो, कुंभ हो या कल्पवास सभी की तिथियां तय हैं। ये तिथि सूर्य के भ्रमण गति और बारह राशियों के चक्र पर निर्भर है। प्रयागराज के त्रिवेणी तट का कल्पवास माघ तो हरिद्वार का बैसाख महीने में आता है।
कल्पवासी बाहर का पानी भी नहीं पीते, गंगा स्नान करना , गंगा जल लेकर आना , भोजन में भी कुछ प्रतिबंधित होता है । जैसे -गाजर, मूली, कंद यह सब नहीं खाते गलिस्ट भोजन नहीं करते है, चाहे जितनी भी ठंड हो एक माह गंगा की गोद में निवास करते है ।
खाना पकाते हैं लेकिन शरीर से आग नहीं तपाते,कहीं से भी गर्मी नहीं लेते। अंगीठी नहीं जलाते और इसके बाद प्रतिबंध क्या है ?
दिन में विश्राम नहीं करना, सोना नहीं ,सुबह से स्नान करना, ध्यान करके लगातार पूजा-पाठ प्रवचन, कथा संतों का दर्शन ,सबको मन से प्रणाम सब का आशीर्वाद लेना शाम के समय एक बार भोजन करना ,विश्राम करना , ब्रह्म मुहूर्त में उठना।
एक महीने तक यही स्थिति प्रतिदिन सुचरु रूप से चलती है। हर कोई तपस्या ही करता है, ऐसे ही जल नहीं तरंगित होते बड़ी तप और साधना की आवश्यकता होती है । यहां अनादि काल से भरद्वाज ऋषि का आश्रम हुआ करता था। भरद्वाज ऋषि के आश्रम से होकर के गंगा जी बहती है, भरद्वाज मुनि बसहि प्रयागा … प्रयागराज में भरद्वाज ऋषि का आश्रम आज भी है.
वहां स्नान करके सभी लोग भरद्वाज आश्रम में जाते हैं, मंदिर की पूजा करते हैं, अक्षय वट का दर्शन करते हैं श्री बड़े हनुमान जी का दर्शन करते हैं, माधव का दर्शन करते हैं.
प्रायगराज केवल भारत भूमि का एक टुकड़ा ही नहीं ये सबसे श्रेष्ठ स्थान है
प्रायगराज केवल भारत भूमि का एक टुकड़ा ही नहीं है प्रयागराज सबसे श्रेष्ठतम स्थानों में श्रेष्ठ स्थान है। कूर्म पुराण में कहा गया है कि गंगा और यमुना का मध्य भाग अर्थात गंगा और यमुना के बीच को योनि भाग प्रयागराज होता है, और योनि भाग जहां होता है वह श्रेष्ठ ही होता है. नीलांचल पर्वत पर माता सती का योनि भाग गिरा था और इस कारण से वह सबसे श्रेष्ठ तीर्थ स्थल माना जाता है , जो मां कामाख्या के नाम से जाने जाते हैं.
गंगा जमुना के बीच का भाग योनी भाग एक तरफ सर्वश्रेष्ठ शक्ति स्थल और एक तरफ समस्त तीर्थों का राजा प्रयागराज सर्वश्रेष्ठ शक्तिमानराजा प्रयागराज है, भगवान राम ने स्वयं इसकी प्रशंसा की और भगवान बोल देते कि तीर्थराज प्रयाग वर्णन नहीं किया जा सकता बड़े सौभाग्यशाली हैं वे लोग जो यहाँ निवास करते हैं. सौभाग्यशाली है वह जिनका इस धरती पर जन्म होता है, और जो प्रत्येक वर्ष मांघ के महीने में अर्ध कुंभ में ,कुंभ में, महाकुंभ में यहां आकर से स्नान ध्यान करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं.
उस परंपरा का जो पालन करते हैं, जिसे अनादि काल से हमारे ऋषि मुनि ने इस परंपरा को जागृत किया है. भगवान राम ने भी वही परंपरा निभाई है, ऋषि- मुनि, सन्यासी गंगा यमुना के तट पर बैठकर के मंत्र को जप द्वारा और शक्ति का साधना करते है।
भजन कीर्तन पूजन पाठ के द्वारा अनुष्ठान यज्ञ करके जल उनके द्वारा तरंगायित करते हैं ,उर्जा भरते हैं । अपने मंत्र के द्वारा जल में ऊर्जा भरते है जो सबके लिए तरंगित होकर के गंगासागर में पहुंच जाती है ,बंगाल की खाड़ी तक पहुंच जाती है । तीर्थराज प्रयाग का यह वर्णन है. समाज में इस संसार में हम लोग देखे तो इसी प्रकार से मनुष्य का जीवन भी होना चाहिए हम सब को भी ऐसे ही होना चाहिए ।
समस्त शिष्य शिष्याओं और प्रदेशवासियों को पूज्य गुरुदेव जी की ओर से मकर संक्रांति की शुभकामनायें