सुविचार
जो साक्षात ईश्वर का दर्शन कर सकता है,उसकी वाणी,ध्वनि सुन सकता है,उसकी सेवा कर सकता है,उसके सानिध्य में रह सकता है,वो कहीं भी निर्भीक होकर जा और आ सकता है,वह जहाँ भी जायेगा ईश्वर का दूत कहा जायेगा और जो भी बोलेगा वह ब्रह्म की वाणी होगी तथा ब्रम्हवाक्य होगा,ऐसा परम सौभाग्यशाली जो परमात्मा में हीं जीता हो उसका रोम-रोम,अंग-अंग गदगद हो जाता है,और उसे अंगद कहा जाता है।
ज्ञान की बातें:-प्रत्येक कर्म यज्ञ की भाँति प्रभु को समर्पित करते हुये करो,और एक मात्र ईश्वर पर तथा अपने समर्पित भाव एवं कर्म पर भरोसा रखो,अंगद बनो अंगद,तुम्हारा भी अंग-अंग हो जायेगा गदगद।
जय माँ — संकर्षण शरण (गुरु जी),प्रयागराज