सुविचार ।। संकर्षण जी (गुरु जी) ।।
जब मनुष्य के अंदर विकार आने लगता है तो वह धीरे-धीरे गंदी मानसिकता व ,लोभ,लालच में पड़कर पथभ्रष्ट हो जाता है और किसी भी तरह से वह स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करने लग जाता है। ऐसा प्राणी अपना भविष्य खो देता है। तत्काल तो वो सफल हो सकता है किंतु स्थायी रूप से वो हर तरह से जैसे सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, धार्मिक सब कुछ खो देता है क्योंकि उसका धर्म, गुरु, पूर्वज, और भगवान सब देख रहे होते हैं उसके कर्म ,व्यवहार व आचरण को । वो सब के सब अपना हाथ उसके सर से हटा लेते हैं और वह मनुष्य धीरे-धीरे व्यभिचारी हो जाता है। इसलिये चंद लोभ-लालच में आकर अपना सब कुछ न खो देना अन्यथा बाद में आँखे नहीं मिलेंगी रोने के लिये भी। कोई सहानुभूति देने वाला भी नही मिलेगा। सम्भाल सको तो सम्भाल लो और अपने वचन के सामने अपने लोभ-लालच,ईर्ष्या ,क्रोध, धूर्तता व अहंकार को हावी न होने दो। सदैव शुकुन और आनंद में रहोगे ,तृप्त रहोगे।*
जय माँ ll संकर्षण जी महाराज (गुरु जी), प्रयागराज ll