संयुक्‍त राष्‍ट्र में कश्‍मीर पर बदले-बदले दिखे एर्दोगन, क्‍या भारत ने दबा दी है तुर्की की दुखती नस ?

अंकारा:

मंगलवार को तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्‍त राष्‍ट्र आम महासभा (UNGA) में एक बार फिर से कश्‍मीर पर बयान दिया। उन्‍होंने कहा कि काफी दुख की बात है कि 75 साल बाद भी भारत और पाकिस्‍तान के बीच एक मजबूत शांति और स्थिरता का माहौल नहीं बन पाया है। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि आने वाले दिनों में कश्‍मीर में शांति और सौहार्द का माहौल देखने को मिलेगा। उनकी इस टिप्‍पणी से माना गया है कि वह अब लीक से हटकर कश्‍मीर पर एक नई रणनीति को अपना सकते हैं। लेकिन कश्‍मीर पर हमेशा आक्रामक रहने वाले और हर बार पाकिस्‍तान के साथ खड़े रहने वाले एर्दोगन को अचानक क्‍या हुआ है? क्‍यों उनके सुर में इतनी नरमी दिखाई देने लगी है?

समरकंद में हुई मुलाकात
अभी ज्‍यादा दिन नहीं हुए है जब उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में एर्दोगन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का अनुरोध किया था। तुर्की की तरफ से द्विपक्षीय मुलाकात का प्रस्‍ताव वाकई हैरान करने वाला था। साल 2019 में जब भारत ने कश्‍मीर से आर्टिकल 370 हटाया था तो उन्‍होंने कहा था कि यह फैसला इस मुद्दे को और जटिल बना सकता है। साल 2021 में उन्‍होंने सुरक्षा परिषद के प्रस्‍ताव के तहत कश्‍मीर मसले को हल करने की बात कही। इस साल ये दोनों ही बातें एर्दोगन के संबोधन से गायब थीं।

तो यह है असली वजह!
तुर्की, पाकिस्‍तान का एक करीबी साथी है और उसका यह रुख दोस्‍त को हैरान कर सकता है। तुर्की के इस ‘सुलझे’ हुए रुख की वजह है उसके पड़ोसी साइप्रस और ग्रीस जिनके कड़वे बोल हमेशा एर्दोगन को परेशान करते हैं। इन दोनों ही देशों के रिश्‍ते तुर्की के साथ कई मुद्दों अच्‍छे नहीं हैं। साथ ही साथ भारत ने भी उत्‍तर-पूर्व सीरिया में तुर्की के एक तरफ सैन्‍य अभियान को लेकर चिंता जताई है। इसके अलावा साइप्रस पर सुरक्षा परिषद के प्रस्‍ताव का सम्‍मान करने के लिए भी कहा है।

साइप्रस पर कब्‍जे की कोशिश
जब एर्दोगन ने कश्‍मीर का जिक्र छेड़ा तो उसके कुछ ही समय बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तुर्की के अपने समकक्ष मेव्लुट कावुसोग्लू से मुलाकात की। इस मीटिंग में साइप्रस का जिक्र आया। सन् 1974 में तुर्की ने साइप्रस पर हमला किया था। इसके बाद उसने इस देश के उत्‍तरी हिस्‍से को अपने नियंत्रण में ले लिया। यह हमला उस समय हुआ जब साइप्रस में तख्‍तापलट हुआ जिसे ग्रीस की सरकार का समर्थन मिला था। भारत हमेशा से ही इस मसले को सुरक्षा परिषद के प्रस्‍ताव के तहत सुलझाने पर जोर देता आया है। इस साल जून में साइप्रस ने तुर्की पर आरोप लगाया था कि उत्‍तर में स्थित इस द्वीप पर पूरा नियंत्रण करने की फिराक में है। उसने यह भी कहा था कि इस बाबत वह संयुक्‍त राष्‍ट्र में एक औपचारिक शिकायत भी दर्ज कराएगा। साइप्रस के राष्‍ट्रपति निकोस अनास्तासीदेस ने सरकारी चैनल को एक इंटरव्‍यू में यह जानकारी दी थी।

ग्रीस के साथ भी तनाव
दूसरी तरफ ग्रीस और तुर्की दोनों ही नाटो के सदस्‍य हैं और पिछले दिनों इन द‍ोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। विशेषज्ञों की मानें तो घरेलू राजनीति तनाव को और बढ़ा रही है। उनका मानना है कि पश्चिमी देश जो ग्रीस के साथी हैं इस समय यूक्रेन में जंग पर अपना ध्‍यान लगाए हुए हैं। ऐसे में उनकी तरफ से मध्‍यस्‍थता का सवाल ही नहीं उठता।

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