Shravan month special : देवों के देव महादेव जिनका प्रत्येक श्रृंगार हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा देती है

Hind mitra / अध्यात्म / by कल्पना शुक्ला

Shravan month special
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अध्यात्म | Shravan month special : भगवान शिव वह तत्व हैं जो आदि अनादि अनंत सब कुछ हैं और उन्होंने अपने जीवन से अपनी साधना शैली से अपने समाधि शैली से और अपने खान-पान आचरण नियम संयम और व्यवहार से पूरे सृष्टि के प्रत्येक घर को प्रत्येक परिवार अपनी साधना शैली से अपने समाजशैली से और अपने खान-पान आचरण नियम संयम और व्यवहार से पूरे सृष्टि के प्रत्येक घर को प्रत्येक परिवार को शिक्षा देते हैं पूरे परिवार को कहते हैं ।

परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने भगवान के श्रृंगार का वर्णन करते हुए यह बताएं कि भगवान का प्रत्येक श्रृंगार हमें कुछ न कुछ प्रेरणा दे रही है गले में सर्प,कान में बिच्छू, हाथ में त्रिशूल ,डमरू सब कुछ हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा दे रही है।

आपका गृहस्थ जीवन मेरी तरह होना चाहिए , जो हर तरह से संतुष्ट हर तरह से सुखी हर तरह से समृद्ध होना चाहिए और उसके लिए स्वयं को परिवार का मुखिया होते हुए स्वयं को वह तपते हैं त्याग करते हैं तपस्या करते हैं और ज्ञान देते हैं भगवान की भक्ति में सदैव रहते हैं।

 

गंगा को जटा में धारण करना…

Shravan month special :भक्ति रूपी गंगा सदैव उनके माथे पर बह रही है यह संकेत देते रहते हैं । आपके मस्तक पर आपके मन पर आपके दिलों दिमाग पर हमेशा भक्ति सवार रहे भक्ति से कभी भी विमुख आपको नहीं होना है ।

जो परिवार का मुखिया हो बराबर भक्ति से उत्प्रोत बना रहेगा उसका परिवार संतुलित रहेगा संयमित रहेगा सुखी रहेगा और समृद्ध रहेगा उसके सान्निध्य में आने वाले बुरे से बुरे लोग भी अच्छे हो जाएंगे पवित्र हो जाएगा इसलिए भगवान शंकर गंगा को हमेशा ही धारण किए रहते हैं ।

Shravan month special : देवों के देव महादेव जिनका प्रत्येक श्रृंगार हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा देती है

भक्ति रूपी धारा गंगा की हमेशा निरंतर प्रवाहित हो रही है अर्थात मनुष्य के हर घर के हेड ऑफ द फैमिली को भक्ति में ओतप्रोत निश्चित रूप से रहना है

उसी के संस्कार उनके लोगों पर पड़ता चला जाएगा बच्चों पर रहेगा परिवार को पड़ेगा पड़ोस पर पड़ेगा हर घर में वैसे लोगों को होना जरूरी है ताकि भक्ति से सिंचित रहे ।

मस्तक पर चंद्रमा …

चंद्रमा रूपी अबोध लोगों को अबोध शिष्यों को नवजात शिष्यों को सुरक्षित करके दिखाते हैं ,द्वितीय का चांद है फुल मून नहीं है पूर्णिमा का चांद नहीं है उसी से जितने होते हैं ।

वह अबोध होते हैं इसलिए द्वितीय का चांद धारण करते हैं और कहते हैं कि ऐसे द्वितीया के चांद को ऐसे अबोध शिष्य को गुरु अपने सर पर रखता है ताकि वहां पर कोई छू न पाए उस शिष्य के अंदर में भक्ति रूपी गंगा प्रवाहित हो रही है।

तो भक्ति से सिंचित भी होता रहे ,गले का सर्प कभी भी उसे शिष्य को टच न करने पाए जो कि चंद्रमा की स्थिति थी कि उनके ससुर ने उनको श्राप दे दिया थाचंद्रमा रोहिणी को ज्यादा पसंद करते हैं ।

Shravan month special : दक्ष प्रजापति उसे श्राप दे दिए और चंद्रमा के बचाव करने के लिए चंद्रमा की रक्षा करने के लिए धरती पर कोई तैयार नहीं हुआ इस सृष्टि में कोई तैयार नहीं हुआ क्योंकि दक्ष के सामने किसी की हिम्मत नहीं थी खड़ा होने की, चंद्रदेव भागते हुए भगवान शिव के आश्रम में पहुंचते हैं ।


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Shravan month special : कैलाश पर और भगवान शिव उनको कहते हैं कि जब तुम इस सृष्टि में रहोगे इस धरती पर रहोगे तब तुम्हें दक्ष के श्राप से ग्रसित होना पड़ेगा तो आओ तुमको हम अपने सर के ऊपर रख लेते हैं । जो सृष्टि के पार है मेरा निवास कैलाश पर है और कैलाश जो है वह सृष्टि का अंग नहीं माना जाता वह परमात्मा का स्थान है ।

कैलाश इस सृष्टि में नहीं माना जाता है इस धरती से अलग माना जाता है,राजा बलि ने जब दान किया था तो पृथ्वी दान किया था जल क्षेत्र का दान नहीं दिया,फिर भगवान उसे पाताल लोक में स्थान देते है।

Shravan month special : देवों के देव महादेव जिनका प्रत्येक श्रृंगार हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा देती है

 

Shravan month special : बैल पर सवार…

भगवान भोलेनाथ बैल पर सवार है और पुंछ की तरफ मुंह करके बैठे हुए हैं बैल धर्म का प्रतीक है । देवताओं ने पूछा ..पीछे सब के सब भूत प्रेत चल रहे हैं ,भगवान कहते है यह मेरे बड़े प्रिय हैं ।

मैं कल्पना में भी अपने शिष्यों से अपने सेवकों से अपने भक्तों से विमुख नहीं होना चाहता । अगर मैं आगे देखने लगूंगा यह मेरे पीछे पड़ जाएंगे तो मेरा आई कॉन्टेक्ट इससे हट जाएगा यह भी दुखी होंगे और हमें भी अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं उनकी तरफ बैठा हूं ।

मेरे प्रिय मेरा दर्शन हमेशा करते रहें और मैं इनको देख करके उनके उत्साह में उनकी खुशी में ही मेरी खुशी है तो भगवान शिव हर जगह अपना धर्म का निर्माण कर रहे हैं उल्टा बैठ जाना उन्हें स्वीकार है।

Shravan month special : बिच्छू …

कान में बिच्छू लगाए हुए हैं कुंडल के रूप में, उसका अर्थ यह हुआ कि कान से श्रवण होता है । बिच्छू जो होता है वह संशय का प्रतीक है डाउट का प्रतीक है तो भगवान यहां पर डाउट लगाए हुए हैं और कहते हैं कि मैं निरंतर ब्रह्मांड का नाद सुनता रहता हूं ओंकार की ध्वनि सुनता रहता हूं भगवान की कथा सुनता रहता हूं ।

कान ही वह मार्ग है तो जब मैं भगवान का नाद परमात्मा का नाम ब्रह्म नाद सृष्टि का नाद और भगवान की कथा जब मैं हमेशा सुनता रहूंगा तो कान से मेरा संशय हमेशा मिटता रहेगा ।

इसलिए बिच्छू भी कभी भी कुछ कर नहीं पाएगा यह बिच्छू भी किसी को डंक नहीं मार सकती अर्थात संशय ग्रस्त व्यक्ति भी किसी को तबाह नहीं कर सकता कष्ट नहीं दे सकता अगर वह भगवान की कथा हमेशा सुनता रहेगा

नहीं तो जो भ्रमित व्यक्ति है जो डाउट में है वह खुद तो डाउट में है ही है कई लोगों को गुमराह कर देता है जिसे भ्रम रहता हो वह हमेशा भगवान की कथा सुनेगा तो उसका संशय मिट जाएगा ।


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Shravan month special : सर्प …

हाथ में जो सर्प है कंगन सर्प का कंगन यह लोभ का प्रतीक है । भगवान कहते हैं कि लोभ तब मिटता है जब दान दिया जाए जितना अधिक महा कंजूस से कंजूस व्यक्ति से अगर कह दिया जाए दान देने के लिए और उसको प्रेरित किया जाए दान देने के लिए तो जितना अधिक अपने हाथ से अर्पण करेगा उतना ही उसका लोभ समाप्त होगा ।

तो एक प्रकार की बुराई उसके जीवन की समाप्त हो जाएगी जब तक आप अपने तरफ से कुछ देंगे नहीं किसी को तब तक लोभ मिटेगा नहीं इसलिए जितना अधिक दे सकेंगे जितना ही देते जाएंगे लोभ देकर के समाप्त होता है ,मोह का त्याग करके समाप्त होता है मोह जो है लोभ का ही भाई है वह क्या करता है कि जो अपने पास है ।

वह किसी को देना नहीं चाहता लोभ क्या करता है जो अपने पास नहीं है वह भी प्राप्त कर लेना चाहता है यह दोनों में अंतर होता है दोनों मिटाने की आवश्यकता नहीं है मोह मिट जाए लोभ शुद्ध हो जाता है, इसलिए रावण मिट जाता है जो मोह का प्रतीक है और विभीषण शुद्ध हो जाता है जो लोभ है, मोह और लोभ में अंतर है भगवान महादानी है।

Shravan month special : दानी कहूं शंकर सम नाही… यह लिखा गया है कि भगवान शिव के तरह कोई दानी आज तक हुआ ही नहीं न कोई नहीं हो पाएगा क्योंकि उनके अंदर में लोभ नहीं है जिसके अंदर में लोभ नहीं है

वह दान कर सकता है दान जितना करेंगे उतना ही लोभ नामक बुराई नष्ट होती जाएगी निष्पाप हो जाएगा शुद्ध हो जाएगा तो भगवान ने यही दिखाया है कि पूरे जीवन मनुष्य परमात्मा को प्राप्त करना चाहता है ।

भगवान को अपनाना चाहता है लेकिन उसके अंदर में इतने प्रकार की गांठे होती हैं दोष होता है क्रोध, ईर्ष्या ,आडंबर , लोभ , मोह, पाखंड इस प्रकार की बुराइयां रहती है वासना, रजोगुण , तमोगुण से ग्रसित रहता है मनुष्य चाहता तो है लेकिन प्राप्त नहीं कर पाता ,भगवान उसे स्वीकार नहीं कर पाए ।


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Shravan month special : चिता भस्म…

मृत्यु के बाद जब शरीर शांत हो जाता है जब वह चिता में परिवर्तित हो जाता है भस्म हो जाता है । तो भगवान कहते हैं यह पूरे जीवन तो मुझे चाहता रहा लेकिन अपनी कमियों के कारण मुझे नहीं प्राप्त कर सका भस्म के रूप में हो गया है । आज तेरे अंदर कोई गांठ नहीं रह गई है तेरे अंदर कोई बुराई नहीं रह गई है तुम बिलकुल निर्मल हो गया है मेरे लायक हो गया है ।

कहते हैं कि मैं ऐसे ही लोगों को स्वीकार करता हूं जो निर्मल हो जाए जिनके अंदर में कोई गांठ न रह जाए ऐसे ही जीवन जीते जी अपने आप में हो जाओ तुम्हारे अंदर की समस्त ग्रंथियां खुल जाए और तुम विशुद्ध हो जाओ तो मैं जीवन में भी स्वीकार कर सकता हूं और मृत्यु होने के बाद भी स्वीकार कर सकता हूं ।

Shravan month special : त्रिशूल…

त्रिशूल मन, बुद्धि और अहंकार को शुद्ध करने के लिए होता है । एक तरफ तम है एक तरफ रज है बीच में सत्य है सत्य समस्त ऊंचा होना चाहिए यह भगवान धारण करके दिखाते हैं त्रिशूल अर्थात तीन लोगों के लिए तीन लोगों की शुद्धिकरण के लिए रखते हैं ।

कभी भी जब चाहे जैसे चाहे वैसे मन बुद्धि अहंकार को शुद्ध करके सत्य को संतुलित करने का कार्य करते हैं तो भगवान शंकर इस प्रकार का एक हथियार दिखाते हैं कि तुम्हारे पास भी त्रिशूल नामक एक अंतःकरण में हथियार होना चाहिए जो तुम्हारे सत्य को संतुलित कर सकते हो,जो तम है उसका भेदन कर सके जो सही है ।

उसको बढ़ा सके और संतुलित मार्ग पर चल सके , वह त्रिशूल अपने अंदर भी है उसे जाने और अपने अंदर की प्रवृत्ति को प्रकृति को अपने अंदर के प्रकृति के गुण को कम और ज्यादा करके मेंटेन रखें तब वह सुंदर होगा मन बुद्धि अहंकार को शुद्ध रखें ,


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Shravan month special : डमरू..

डमरू से भगवान ने स्वर निकाल करके 14 प्रकार के व्याकरण की रचना की व्याकरण ही आज समस्त संसार में शास्त्र बनाकर के उभरा हुआ है । डमरू के नाद से उनके शब्द से वह ध्वनि परमात्मा ने जो विधान दिया था परमात्मा ने जो शास्त्र दिया था । वह शास्त्र इस ब्रह्मांड में भटक रहा था इस ब्रह्मांड में वायुमंडल में चारों तरफ घूम रहा था वह मंत्र वह शास्त्र सब जगह घूम रहा था ।

वायुमंडल में टकराव हुआ उससे संबंधित जो शास्त्र था वह उसके सामने प्रकट हुआ और इस समय उन्ही के माध्यम से 14 प्रकार का व्याकरण का सूत्र जिसके बल पर समस्त शास्त्र लिखा गया बाद के विद्वानों द्वारा वह सब के सब प्रकट हुआ शंकर जी आचार्य है संसार को सब कुछ उन्होंने ही दिया है।

Shravan month special : मुंडो की माला…

आदिशक्ति के सर धारण करते हैं और यह दो तरह का संदेश देते हैं । आध्यात्मिक रूप से देते हैं कि जिस समय श्रद्धा में कमी आई ऐसी श्रद्धा मिट जानी चाहिए और वह सर लेकर के माला बनाते चले जाते हैं ।

जब पार्वती जी से उनके पाणिग्रहण होता है तब से लेकर के अभी तक उन्होंने कोई नया मुंड धारण नहीं किया नहीं करने का कारण था कि वह पार्वती जी को अमर कथा सुना देते हैं ।

अब आपको मरने की आवश्यकता नहीं है पार्वती जी सती सावित्री हो जाती है और जो वह कहते हैं उनके अनुकूल पार्वती जी चलने लग जाती है जब तक नहीं चलती है तब तक बार-बार उनको मिटना पड़ता है क्योंकि भगवान शिव स्वयं विश्वास के प्रतीक हैं।

पार्वती श्रद्धा के प्रतीक है श्रद्धा और विश्वास में ऐसे मेल होना चाहिए कि किसी प्रकार की कोई दूरी न रह जाए विचारों में हमेशा मेल होना चाहिए तब व्यस्त जीवन सुखी चलता है अभी तक के जितने मुंड थे जितने रूप में आदिशक्ति प्रकट हुई थी सब में विचारों में भेद रहता था जिसके चलते श्रद्धा बुद्धि के गर्भ में जन्म लेती है ।

Shravan month special : देवों के देव महादेव जिनका प्रत्येक श्रृंगार हमें कुछ ना कुछ प्रेरणा देती है

Shravan month special : इसलिए मैना को बुद्धि कहा गया है दक्ष प्रजापति को बुद्धि कहा गया है तो बुद्धि के गर्भ में बुद्धि में हमेशा श्रद्धा जन्म लेती है हमेशा कम होती है और हमेशा मिटती है फिर बुद्धि में हर किसी के बुद्धि में श्रद्धा का जन्म होता है जो श्रद्धा बराबर टिकाऊ ना हो करके विश्वास के संग मिल ना खाएं उसको मिटा दिया करते थे।

मिटा करके मुंड धारण कर लेते थे और जिस समय जो श्रद्धा विश्वास के संग पूर्णता मेल खाने लग गई उनके अनुसार चलने लग गई भगवान को प्रकृति को परमात्मा को समझने लग गई उसे श्रद्धा को उन्होंने अमर बना दिया वह पार्वती बन गई।