रायपुर,
हसदेव अरण्य को बचाने के लिए 300 किलोमीटर पैदल चलकर रायपुर पहुंचे ग्रामीणों को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव का भी समर्थन मिल गया है। बुधवार देर रात टिकरापारा के साहू भवन में सिंहदेव ने सरकार को नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा याद दिलाई। कहा कि, जो इस लाइन को पार करेगा वह 10 सिर वाला (ग्रामीणों ने कहा रावण) कहलाएगा। उन्होंने ग्रामीणों से कहा, आपकी मांगे जिन कानों तक पहुंचेगी, वे सोच-समझकर कदम उठाएंगे, ताकि आपके प्राकृतिक और जायज हित सुरक्षित हों।
सिंहदेव ने कहा, मैं भी अपनी तरफ से आपकी मांगों के साथ मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखूंगा। उस समय जो नो गो एरिया घोषित हो गया उससे आगे जाते हैं तो मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि मेरा भी विरोध है। जो लकीर खिंच गई, वह लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। लक्ष्मण रेखा पार करने पर क्या होता है वह रामायण की कथा में हम सब ने देखा- पढ़ा है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह नो गो एरिया की लक्ष्मण रेखा पार न हो और सीता हरण जैसी स्थिति न बने।
आज टिकरापारा स्थित ताराचंद सभागृह में हसदेव बचाओ पदयात्रा के साथियों के साथ मुलाकात कर उनकी माँगों के विषय में जानकारी प्राप्त की।
इस अवसर पर पर्यावरण के प्रति समर्पित समस्त पदयात्रियों को संबोधित करते हुए उनके समक्ष अपने विचार व्यक्त किये। pic.twitter.com/rxipTbLxAJ— T S Singhdeo (@TS_SinghDeo) October 13, 2021
उन्होंने कहा कि अभी सरकार के पास पूरा अवसर है। उसकी मानसिकता भी यही होगी कि वह राम रूपी कार्य करे। आपके हितों की रक्षा करे, आपके साथ रहे। जो जायज बात है, उसके तहत आपकी मांगों को सुने और पूरा करे। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ बिलासपुर विधायक शैलेश पाण्डेय भी ग्रामीणों के बीच पहुंचे थे।
ग्राम सभा जो तय करे वही होना चाहिए
बाद में प्रेस से चर्चा में टीएस सिंहदेव ने कहा, ग्रामीण उस क्षेत्र में खनन का विरोध कर रहे हैं। हम लोगों का शुरू से मानना रहा है कि ग्राम सभा जो तय करे उसी के हिसाब से काम होना चाहिए। उन पर दबाव डालकर अथवा दूसरे तरीकों से खदान की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
क्या है यह नो गो एरिया का मामला
सरगुजा और कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध और पुराने जंगलों में गिना जाता है। पर्यावरण के जानकार इसे “छत्तीसगढ़ का फेफड़ा” कहते हैं। 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया था। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया, जब जयराम रमेश केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री थे तो वे नो गो एरिया का कॉन्सेप्ट लाए थे। यानी इस सीमा के आगे खदानों को अनुमति नहीं दी जाएगी। उस लक्ष्मण रेखा का पालन करना जरूरी है।
यह मांगे लेकर राजधानी पहुंचे हैं आदिवासी ग्रामीण
- हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए।
- बिना ग्रामसभा की सहमति के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए।
- पांचवी अनुसूची क्षेत्र में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान लागू किए जाएं।
- परसा कोल ब्लाक के लिए ग्राम सभा फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त किया जाए और ऐसा करने वाले अधिकारी और कम्पनी पर FIR दर्ज हो।
- घाटबर्रा गांव के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांवों में सामुदायिक वन अधिकार और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दी जाए।
- अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून का पालन कराया जाए।
ऐसा है हसदेव अरण्य का संकट
2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित होने के बाद कुछ समय के लिए यहां हालात सामान्य रहे। केंद्र में सरकार बदली तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ। ग्रामीण इसके विरोध में आंदोलन करने लगे। 2015 में राहुल गांधी इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया। कहा – इस क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे। छत्तीसगढ़ में सरकार बदली लेकिन इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई। हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद (ICFRE) ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है। इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है।