सोच तुम्हारी ऊची हो गई, उठे जो तुम्हारे थोड़े कदम..”सोमेश देवांगन”

साहित्य,

सोच तुम्हारी ऊची हो गई,
उठे जो तुम्हारे थोड़े कदम।
स्वार्थ की खातिर ओ तुमने,
अपनो पर नही किये रहम।।

मंजिल पर पहुँच गयी मैं,
गयी लेकर बैठ पाल वहम।
याद करके मुझको फिर से,
जाओगें तुम एक दिन सहम।।

रूठकर बैठी रहती थी तुम,
मना के कर लेता तुझे नरम।
बात बात पर मैं तुझे हंसाता,
ना करता था वहाँ कभी शरम।।

मॉन लिया अब हमने तो जी,
नही लिखें हो तुम मेरे करम।
रोओगे फिर तुम भी एक दिन,
चुप कराने वहाँ न होंगे हम।।

लिखते लिखते फिर बहंगे आँसू,
न लगा पाओगे तुम पूर्ण विराम।
थक हार के जाओगे तुम बैठ,
न कर पाओगे तुम फिर आराम।।

किसी रोज आयेगा जुबा पे नाम,
लेते हुए भी न ले पाओगे मेरा नाम।
आस दिलाते हुए मन मे कहोगे ,
हो रहा वही जो रची राखे मेरे राम।।

-: सोमेश देवांगन
 (पंडरिया कबीरधाम, 
     छत्तीसगढ़ )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here