लता अब न पैदा होगी धरा पर…”आयुषी तिवारी”

साहित्य,

लता थी, लता सी फैली धरा पर,
सदा महफिलें सजवाई धरा पर।

ग़ज़ल-गीत-नगमें गाए बहुत से,
सुरों की बिखेरी शैली धरा पर।

न मंगेशकर सा सानी हुआ है,
मधुर सी बिखेरी वाणी धरा पर।

सुरों का खज़ाना मधुर कंठ पाया,
वर्षा सुरमई बरसा दी धरा पर।

तराने अब सुनो आयुषी सुनाती,
लता अब न पैदा होगी धरा पर।

-:आयुषी तिवारी
(रायपुर, छत्तीसगढ़)

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