राज्य में बीजेपी का बढ़ रहा जनाधार , केरल में 6 अप्रैल को चुनाव

         
 

नई दिल्ली
केरल विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की महज एक सीट है. इस बार बीजेपी पहले से बेहतर नतीजे की उम्मीद कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कोई बड़ा उलटफेर हो जाएगा. इसके बावजूद बीजेपी-एनडीए का उभार राज्य के दो प्रमुख गठबंधनों यूडीएफ और एलडीएफ को परेशान कर रहा है.

गौरतलब है केरल में मुख्य लड़ाई माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच है. राज्य में 6 अप्रैल को एक चरण में ही चुनाव होने हैं. केरल विधानसभा में बीजेपी के सिर्फ एक विधायक हैं और वह भी उसके बड़े नेता ओ राजगोपाल. राज्य की 45 फीसदी मुस्लिम और ईसाई जनसंख्या को देखते हुए केरल में किसी बड़े ध्रुवीकरण की उम्मीद नहीं की जा सकती. इसके बावजूद राज्य में बीजेपी के वोट प्रतिशत बढ़ते जाने से राज्य के वामपंथी और कांग्रेस नेताओं के कान खड़े हो गए हैं.

सबसे ज्यादा चिंता वामपंथी नेतृत्व को है, क्योंकि ऐसी कई रिपोर्ट आई हैं जिनमें यह कहा गया कि राज्य में बीजेपी के मतदाता कई इलाकों में कांग्रेसी कैंडिडेट को वोट कर देते हैं ताकि वामपंथी कैंडिडेट न जीत पाए. जाहिर है क‍ि वैचारिक रूप से वामपंथी हिंदुत्व की राजनीति वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन हैं.

राज्य में भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर लगातार बढ़ता जा रहा है. साल 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 6.03 फीसदी, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 10.85 फीसदी, साल 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-एनडीए को 14.96 फीसदी और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-एनडी को 15.2 फीसदी वोट मिले हैं. यही नहीं, पिछले साल यानी 2020 में हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी को करीब 17 फीसदी वोट मिले.

पिछले साल हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी को अच्छी सफलता मिली है. तिरुअनंतपुरम कॉरपोरेशन में बीजेपी मुख्य विपक्षी दल रही है. एनडीए को 1182 ग्राम पंचायतों, 37 ब्लॉक पंचायत, 2 जिला पंचायत, 320 नगर पालिका वार्ड और 59 नगर निगम वार्ड में जीत हासिल हुई. पंचायत चुनाव के नतीजों से बीजेपी नेता काफी खुश दिखे और उनको यह लगता है कि राज्य में उनका आधार तो कम से कम बढ़ रहा है.

मीडिया रिपोटर्स के अनुसार पार्टी को राज्य में पंचायत चुनाव के दौरान करीब 35 लाख वोट यानी कुल वोट का करीब 17 फीसदी हिस्सा मिला. साल 2015 के स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को करीब 13.28 फीसदी वोट मिले थे.

केरल में अपना राजनीतिक जमीन बढ़ाने के लिए बीजेपी भी कोई कसर नहीं छोड़ रही. उसने शहरी मतदाताओं को लुभाने के लिए मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई. श्रीधरन को अपने सीएम फेस के रूप में पेश कर दिया है. यही नहीं मुसलमानों और ईसाइयों में भी उसने अपना आधार बढ़ाने की कोश‍िश की है. कुछ जानकार तो यहां तक मानते हैं कि आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल बनाना इसी रणनीति का हिस्सा था. राज्य में योगी आदित्यनाथ जैसे हिंदुत्व की पहचान वाले नेताओं की सभाएं की जाती हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में कई रैलियां, रोड शो किए हैं. हाल में बीजेपी ने बड़े पैमाने पर राज्य में सदस्यता अभियान चलाया है.

बीजेपी की भले ही एक सीट हो, लेकिन उसके थोड़ा भी उभार को भी स्थानीय वामपंथियों और कांग्रेस नेतृत्व हल्के में नहीं लेने वाला है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार माकपा की राज्य इकाई ने पिछले साल अगस्त में एक बैठक कर इस बारे में विचार किया था. लोकसभा चुनाव के बाद घर-घर जाकर पार्टी कार्यकताओं ने लोगों के मूड को जानने के लिए एक सर्वे किया था. इससे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी ने संगठन में कई बदलाव किए और नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए एक आचार संहिता जारी की. माकपा के राज्य मंत्री के बालकृष्ण ने यह जानकारी देते हुए कहा कि यह महसूस किया गया कि 'कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर जाकर कठोर मेहनत करनी होगी और काफी विनम्रता तथा करुणा से काम करना होगा.'

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