मै ह खाथव बोरे बासी, नई जांवव मथुरा काशी….सुरेन्द्र अग्निहोत्री “आगी”

साहित्य,

मै ह खाथव बोरे बासी
नई जांवव मथुरा काशी
बड मयारुक मोर महतारी
मै छत्तीसगढ के वासी
मे ह जांगर तोड कमाथव
भुइया ल सरग बनाथव
मेहनत के पछीना पलोथव
धरती म अन्न उगाथव
नई जानव खोखी खांसी…
भुइया के भगवान कहाथंव
किसानी करे ल जाथव
मेहनत के फल नई पावंव
दुखडा मै काला सुनानव
करजा म लगाथव फांसी…
मोरो गुहार ल सुन लौ
थोकन तो कोनो गुन लौ
अनदाता मै ह कहाथव
लाघन भूखन रही जाथंव
कोनो बर हे तसमाई
फेर मोरे बर बोरे बासी….
नई जावव मथुरा कासी
मे ह खाथव बोरे बासी
बड मयारुक मोर महतारी
मे हंव छत्तीसगढ के वासी

-:सुरेन्द्र अग्निहोत्री “आगी”
     ( महासमुंद )

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