माँ की पुकार,,,,,मुझे घर जाना है……….बल्लू’बल’ (थान-खम्हरिया)

कौन कहता है कि,उसकी,
माँ ने उसे नहीं पाला।
अपना सब कुछ लुटाकर,
वक्त नहीं निकाला।।
उसने हमेशा मुझे अपनी,
ममता की छांव में रखा।
शहर की गंदी हवा से बचाकर,
हमेशा गांव में रखा।।
हमेशा मुझे ताप से बचाती रही,
पवित्रआँचल में छुपाती रही।
आँखों की काजल बनाकर,
अपने पलकों पर सजाती रही।।
धन्य हो!मेरी माँ जो हमेशा मुझे,
दुलारती रही,सहलाती रही।
खुद ज़मीन पर सोती रही,
मुझे पालने में झुलाती रही।।
माँ ,माता ही नहीं,
वो विधाता भी है।
स्वर्ग वही जाता है,
जो उसकी शोभा बढ़ाता है।।
वह निःस्वार्थ प्रेम की,
भाव पूर्ण मूर्ति है।
बच्चों की शोभा ही नहीं,
कांति है,दुति है।।
उसकी पनाह में,
आसमाँ पलता है।
एक हम ही नहीं,
सारा जहाँ चलता है।।
अगर बेटा माँ के गले की
हार है,माला है।
तो माँ उसके लिए,
अमृत का प्याला है।।
हमेशा मीठी वाणी से,
मीठे बोल बोलती है।
मुश्किलात आने पर,
अज्ञानता के पट खोलती है।।
बहुत प्यारी है,दुखियारी है,
पर कभी न जंग हारी है।
बनी दुर्गा,काली,भवानी है,
जब भी मन मे ठानी है।।
दुनियां ने हमेशा ,
ये बात मानी है।
इस जगत में उसकी,
नहीं कोई सानी है।।
बिन मां की दुनियाँ होती,
कभी आबाद नहीं।
वो मां का दर्द क्या जानें,
जो उसकी औलाद नहीं।।
जन्नत पाकर वही,
किस्मत बनाता है।
जो अपनी जोरू से पहले,
मां का फर्ज निभाता है।।
जीते जी तो हर किसी ने,
साथ निभाया है।
लेकिन मरकर भी,माँ की,
दुआओं का साया है।।
मेरी मुसीबत देखकर,
माँ कभी नहीं सोती।
मैं कम रोता था,
लेकिन वो ज्यादा रोती।।
रात भर जागती,
अपनी नींद खोती।
उसकी आंखें जागती,
जब वो सिरहाने सोती।।
जब भी सजदे करता हूँ,
उसकी याद आती है।
क्योंकि खुदा से भी ज्यादा,
मेरे सुख-दुख की वो साथी है।।
चोंट लग जाती मुझे,
मेरी माँ खूब रोती।
घाव डेटॉल से नहीं,
अपने आंसुओं से धोती।।
मैं रूठ जाता,मुझे
मनाने के कई बहाने करती।
फिर भी न मानता, तो
अपनी आँखे आंसुओं से भरतीं।।
चाँद, तारे व सूरज,
लाने का जतन करती।
माँ यशोदा बनकर,
दुल्हनियाँ दिलाने का वचन करतीं।।
हर किसी की जिंदगी में,
बस माँ का ही जोर है।
हे माँ!तेरे बगैर यहाँ,
हर बेटा कमजोर है।।
माँ तेरे आँचल में,
ममता की फुलवारी है।
तेरे चरणों में स्वर्ग ही नहीं,
मेरे बचपन की किलकारी है।।
हे माँ! तेरा रूप,
कितना सलोना है।
तेरे प्यार की खूशबू से,
घर का महके कोना-कोना है।।
तू कितनी शक्तिशाली है,
अमृत का सागर है।
ऊपरवाले से भी बड़ी,
तेरी दया की चादर है।।
मेरी खुशी की खातिर,
तू हमेशा गीत गायी है।
हकीकत में ही नहीं,सपनों में,
आज भी लोरी सुनायी है।।
तू मेरे बचपन का दुलार ही नहीं,
मेरे बुढ़ापे की छड़ी है।
जब भी तुझे याद किया,
मेरे सामने खड़ी है।।
मां हृदय की वेदना है,
समय की घड़ी है।
तो ,दोस्तों।फिर वो वृद्धाश्रम में,
बेसहारा क्यों पड़ी है।।
विनती सुनो,हमारी,
मां को यूँ न त्याग दो।
अपने घर लाओ,
उसे प्यार दो,दुलार दो।।
वो तुमसे ही कह रही है,
मुझे घर जाना है।
मुझे यहाँ का खाना नहीं भाता,
घर का खाना खाना है।।
तेरी एक पुकार के लिए,
वो आज भी बेकरार है।
तेरी क़दमों की इक आहट का,
उसे आज भी इंतजार है।।
किनारे ही सही,रख लेना,
है जहाँ तेरा द्वार ।
रखवाली करेगी तेरे बच्चों का,
और देगी लाड़- प्यार।।
तो चल उठ!जा ले आ उसे,
तू उसकी वेदना है,दिल है,जाँ है।
तू उसका वही बेटा है, और ,
वो वही तेरी माँ है।।
दुलारी माँ है।।
दुखियारी मां है।।
प्यारी मां है।।
न्यारी मां है।।
अब ले आ,,,,,,,,, रे मूर्ख!

-: बल्लू’बल’
थान-खम्हरिया

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