भारत में तैयार हुआ विश्व का पहला नेत्रहीनों के लिए पूर्ण एटलस

तैयार होने में लग गए दो दशक से ज्यादा का समय

यह ब्रेल एटलस ऐसा ही एक काम है, जो दिव्यांगों की मदद करेगा। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने कछ ही समय पहले विकलांगों को दिव्यांग नाम दिया था। सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के आकलनों के अनुसार, वर्ष 2015 में 1.6 करोड़ से ज्यादा नेत्रहीन लोग थे और 2.8 करोड़ लोग दष्टि संबंधी दोषों से प्रभावित थे। अब पहली बार ये लोग किसी नक्शे को छूकर पढ़ सकते हैं। आंशिक रूप से दष्टि संबंधी दोषों से प्रभावित लोगों के लिए एनएटीएमओ तेज रंगों से नक्शे बनाता है ताकि वे अपनी कमजोर नजर के बावजूद नक्शे देख पाएं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में 28.5 करोड़ लोगों के नजर संबंधी विसंगति का शिकार होने का अनुमान है। इनमें से 3़9 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं। यह बात दुखद है कि दुनिया में नजर संबंधी विसंगति से पीड़ित 90 फीसदी लोगों की आय कम है। भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा नेत्रहीन लोग रहते हैं और यह स्थिति दुभार्ग्यपूर्ण है क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से तीन चौथाई मामले ऐसे हैं, जिनमें नेत्रहीनता से बचा जा सकता है।

कुल 84 पन्नों वाले श्वेत-श्याम एटलस को ए-3 आकार के पन्ने पर बनाया गया है ताकि सारी जानकारी आसानी से समाहित की जा सके। बनर्जी के अनुसार, इस परियोजना पर वर्ष 1997 में काम शुरू हो गया था और उनके दल को एटलस बनाने के लिए सबसे पहले ब्रेल में दक्षता हासिल करनी पड़ी थी। उन्हें इस बात का दुख है कि इस काम में बहुत समय लग गया क्योंकि सरकार ने एनएटीएमओ के कर्मचारियों की संख्या को 500 से घटाकर 150 कर दिया।

एटलस सिर्फ अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि बंगाली, गुजराती और तेलुगू में भी तैयार किया गया है। इसमें 20 विभिन्न नक्शे हैं, जिनमें भारत के राजनीतिक नक्शे, भौतिक नक्शे और भारत में विभिन्न मिटिटयों के नक्शे हैं। एनएटीएमओ ने ब्रेल एटलस की लगभग 500 प्रतियां प्रकाशित की हैं और इनमें प्रत्येक नक्शे की लागत 1000 रूपए है। इन्हें भारत के नेत्रहीन विद्यालयों में मुफ्त में बांटा जा रहा है। एनएटीएमओ का यह प्रयास कम से कम एक बड़ी सामाजिक जरूरत को पूरा करने की दिशा में प्रयास करता है और भारतीय विज्ञान की ओर से समाज की सेवा का पहलू दिखाता है।

Live Hindustan.com पर प्रथम प्रकाशित

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