बलिहारी गुरु आपकी…….

guruji
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

अध्यात्म | परम पूज्य गुरुदेव सृष्टि के परम सत्ता जिसकी महिमा भगवान भी नही कर पाते है। जिनकी चरणों में आकर के शिष्यों को कुछ और पाना शेष नहीं रह जाता है ऐसे पारब्रह्म परमेश्वर को हम कोटि-कोटि नमन करते हैं  गुरु अर्थात गु का अर्थ गुणातीत प्रकृति के तीनों गुणों से पार हो जाना, सत, रज, तम तीनों गुणों से पार होकर परा से अपरा में होते है । रु का अर्थ रूप जो रूप हम बाहर से देखते हैं वह नहीं होता है, गुरु का सिर्फ बाहर के रूप को नहीं देखे अंदर से गुरु स्थिर होते हैं इसलिए गुरु पारब्रह्म होते हैं भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश से भी ऊपर होते हैं। अनेक त्यौहार आते हैं जिसमें हम त्यौहार को भी बांट लेते हैं लेकिन गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जिससे सभी धर्म ,सभी जाति के लोग भगवान और दैत्य सभी ने स्वीकार किया है सबको गुरु चरणों की आवश्यकता होती है। सभी अपने कार्य में अंत में गुरु चरणों में ही जाते हैं और उन्हें की कृपा से सब कुछ संभव हो पाता है सबको गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है क्योंकि गुरु ही हमें सही रास्ता दिखा पाते हैं । गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामायण की रचना करते समय सर्वप्रथम गुरु की वन्दना किए,कृपासिंधु नर रूप हरि गुरु चरणों की आराधना किए, जो कृपा के सागर है और नर रूप में साक्षात हरि है।

जिस प्रकार सूर्य के उदय होने पर अंधेरा मिट जाता हैं उसी प्रकार गुरुदेव हमारे ह्रदय का अज्ञान रूपी अंधकार मिटाते हैं सूर्यनारायण अंधेरा मिटाते है तो हमें यह जगत दिखता है पर गुरुदेव जब अज्ञान का अंधेरा मिटा देते हैं तो जगत का प्रकाशक जगदीश्वर का अनुभव हो जाता है। उसका दर्शन हो सकता है, गुरु हमारे शरीर के साथ केंद्र है, उन सातों केंद्रों की यात्रा कराते हैं मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपुर , विशुद्ध आज्ञा चक्र आदि, इस प्रकार गुरुदेव सात केंद्रों की यात्रा कराकर मुक्ति का अनुभव कराते हैं हम ऊर्ध्व गामी हो जाते हैं, नीचा जीवन छूट जाता है उच्च जीवन शुरू हो जाता है ।
जैसे मोर बादलों को देखकर नाचने लग जाता है,आकाश के बादल देख कर खुश हो जाता है उसी प्रकार हमारा मन मयूर भी संसार के भोगों में राजी नहीं होता है,वह तो भगवान का नाम सुनकर झूम उठता है, गुरु का दर्शन करके झूम उठता है,गुरु की वाणी सुनकर झूम उठता है, ऊंची यात्रा पर आनंदित होता है,नीचे की यात्रा पर आनंदित नहीं होता है गुरु का दर्शन पाकर शिष्य का मन मोर की तरह झूम उठता है।

भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन को यह बताए की मानव जाति के सच्चे हितैषी मित्र एकमात्र सद्गुरु होता है, अगर गुरु जीवन में आ जाए गुरु के शरणागत हो जाए तो वह जीवन में कभी महाभारत ही नहीं होगा जीवन आनंद मय रहेगा ,भगवान कहते है गुरु मानव जाति के सच्चे हितैषी सखा बंधु सब कुछ होता है, हमारे दोस्त हमको जन्म मरण के बंधन से छुड़ा नहीं सकते पर सद्गुरु ऐसे मित्र होते हैं जो हमें जन्म मरण के बंधन से छुड़ाने का सामर्थ्य रखते हैं ।

जिस प्रकार भगवान स्वयं प्रकाश मान है वह प्रकाश पुंज से सारी धरती को प्रकाशमान कर देते हैं दूसरों को भी प्रकाशित करते हैं खुद भी प्रकाशमान है उसी प्रकार गुरु प्रकाशमान हैं और आप शिष्यों को भी प्रकाश प्रदान करते हैं ताकि शिष्यों को भी रास्तों के गडढे और कांटे दिखे हम भी कहीं ठोकर न खाए हम भी कहीं गिर ना जाए , गुरु का सुमिरन भी हमे प्रकाश प्रदान करता है सुमिरन में भी इतनी शक्ति होती है कि सही है गलत का रास्ता दिखा देते हैं। जब हम सच्चे मन से अपने गुरु का स्मरण करते हैं कोई ना कोई मार्ग जरूर मिल जाता है।

हमे अपनी ऊंचाई का पता नहीं होता है जैसे एक बीज कितना बड़ा वृक्ष हो सकता है यह बीज को पता नहीं होता है, उसी प्रकार मनुष्य कितना महान हो सकता है यह मनुष्य को पता नहीं होता है,पर गुरु की कृपा से पता चल जाता है और हम उस शिखर तक पहुंच जाते है ,यह सब सतगुरु की कृपा होती है जब हम गुरु चरणों में समर्पित रहते हैं गुरु हमे उस ऊंचाई तक पहुंचाते हैं, जैसे मरुभूमि में रेगिस्तान में दूर से पानी प्रतीत होता है पर पानी होता नहीं है उसी तरह इस संसार में हम जो देखते हैं वह सत्य नहीं होता है सिर्फ बाहरी आवरण को देखते हैं लेकिन गुरु चरणों में आने के बाद हमे सत्य का ज्ञान हो जाता है जीवन में भटकाव नहीं होता है।

जिस प्रकार नाव जल में होता है लेकिन नाव में जल नहीं होता नाव जल के ऊपर रह कर सबको पार करा देता है, उसी तरह हम इस संसार में होते हैं लेकिन संसार के विषय विकार रूपी जल वह इस मानव काया रूपी नाव में ना आने पाए , हम इस संसार रूपी सागर में कमल की भांति खिले रहें और सुशोभित होते रहे धरती पर सुगंध फैलाते रहे , यह गुरु चरणों में प्राप्त होता है गुरु हमारे जीवन स्तर ऊंचा उठाते है। गुरु हमारी अज्ञानता को दूर करके हमारे दिल में सद्भाव का प्रकाश करते हैं हमारे दिल में जो भ्रांतियां बनी होती है बाहरी आवरण को ही सच मान बैठते है यह जो भ्रांति है वह गुरु के ज्ञान से दूर हो जाती है ।

गुरु चरणों मे कोटि-कोटि नमन

श्रीमती कल्पना शुक्ला

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