सुविचार – पाँच पति सुख-दुख के दाता
सुख-दुःख और अंतर्द्वंद में एक समान तटस्थ भाव मे रहना।परमात्मा और गुरु के प्रति हृदय में बहुत बड़ा श्रद्धा,प्रेम का बहुत हीं व्यापक भाव रखना।पूर्णतः प्रेम होकर सबको प्रेम दृष्टि से देखना। प्रकृति और समाज के नियम के अनुकूल चलना, तथा सत्संगति करना ,अच्छे लोगों के साथ उठना-बैठना ,उचित आचरण करना। यही तुम्हारे पाँच पति रूपी सद्गुण हैं। इन पांचों को भटकने मत देना,अन्यथा द्रौपदी रूपी ध्यान दुष्टों की संगति के कुचक्र में फंस जायेगी और तुम भटकने लगोगे। सब सुख-चैन ,धन,पद, प्रतिष्ठा गवाँ बैठोगे।
शिक्षा:–तुम्हारा ध्यान मार्ग है,और मंजिल है आत्मज्ञान। ध्यान को भटकने मत देना ,दुर्जनों के कुचक्र में फसने मत देना। अगर फंस चुके हो तो गुरु शरण मे जाना,और अनुशरण करना। गुरु पांचों पतियों को शुद्ध करेंगे ज्ञान देकर,फिर ध्यान मार्ग बन जायेगा और परमात्मा की अनुभूति ,आनन्द तथा आत्मज्ञान हो जायेगा। फिर कुछ भी जानना शेष नहीं रह जायेगा।
जय माँ – संकर्षण शरण (गुरु जी),प्रयागराज।