ध्रुव योग में आ रहा है शनि प्रदोष, महत्व और पूजा विधि

 
नई दिल्ली

प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत के अधिपति देव भगवान शिव हैं। शिवजी आयु और आरोग्य के देवता हैं और इस बार 24 अप्रैल 2021 को आ रहे प्रदोष व्रत के दिन अनेक शुभ योग-संयोग बन रहे हैं। इस दिन शनिवार होने से शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है, वहीं इस दिन ध्रुव योग होने से यह आयु में वृद्धि करने वाला माना गया है। ज्योतिष में शनि को मृत्यु का कारक ग्रह कहा गया है इसलिए ध्रुव योग, शनिवार और प्रदोष का होना कोरोना महामारी के इस दौर में अत्यंत सिद्ध और रक्षा करने वाला दिन बन रहा है। संकटों से रक्षा, आयु में वृद्धि और रोग-शोक के नाश के लिए इस बार प्रदोष व्रत प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए।
 
प्रदोष व्रत पूजा-विधि

प्रदोष के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ करें। एक चौकी पर नया श्वेत वस्त्र बिछाएं और उस पर भगवान शिव, मां पार्वती सहित संपूर्ण शिव परिवार की मूर्ति की चित्र स्थापित करें। अब अपना नाम, गोत्र, तिथि, वार, नक्षत्र आदि का उच्चारण करते हुए प्रदोष व्रत का संकल्प लें। संकल्प में अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति का किसी विशेष मनोकामना के पूरे होने की कामना भी करें। इसके बाद शिव परिवार का पूजन करें और दिनभर निराहार रहें। सायंकाल प्रदोष काल में शिवजी का षोडशोपचार पूजन अभिषेक करें। शिवजी को आंकड़े के फूल, बिल्व पत्र अर्पित करें। फलों-मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। प्रदोष व्रत की कथा सुनें और प्रसाद ग्रहण करें।

प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी विधवा हो गई। वह भिक्षा मांगकर अपना तथा अपने पुत्र का जीवन निर्वाह करती थी। वह अपने पुत्र को लेकर प्रात: घर से निकलती और रात को लौटती थी। एक दिन उसे विदर्भ देश का राजकुमार मिला जो अपने पिता की मृत्यु के कारण यहां-वहां मारा-मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी को राजकुमार पर दया आ गई और उसे अपने साथ घर ले आई। उसने उसे पुत्रवत पाला। एक दिन वह दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई। ऋषि से भगवान शंकर के पूजन की विधि जानकर वह प्रदोष व्रत करने लगी।

ध्रुव योग में आ रहा है शनि प्रदोष, जानिए महत्व और पूजा विधि
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उन्होंने वहां गंधर्व कन्याओं को क्रीडा करते हुए देखा। ब्राह्मण कुमार तो घर लौट आया किंतु राजकुमार अंशुमती नामक गंधर्व कन्या से बात करने लगा। उसे समय का भान नहीं रहा और वह देर से घर लौटा। राजकुमार दूसरे दिन भी उसी स्थान पर पहुंचा। अंशुमती अपने माता-पिता के साथ बैठी हुई थी। माता-पिता ने राजकुमार से कहा कि भगवान शंकर की आज्ञा से अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं। राजकुमार विवाह के लिए तैयार हो गया। दोनों का विवाद हो गया। उसने गंधर्व राजा विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर अधिकार कर लिया। उसने ब्राह्मणी एवं उसके पुत्र को अपने महल में आदर के साथ रख लिया। यह प्रदोष व्रत का ही फल था।
 
 

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