साहित्य,
भगवे कपड़े धारियो,चलियो प्रभु को धाम।
नाहीं पाँव पिराइहैं, बड़ो सुभीतो काम।।
माया धुँधवा जानिये, दाह लगे ना जाय।
ज्यों-ज्यों पानी डारिहौ,अंतरतम धुँधवाय।।
जे नर माया से जियै,चिंता – ब्याधि अपार।
छिन-छिन ढाँढस बाँधिकै,रोवै मास हजार।।
ससुरा माया-मोह को,कबहुँ न जानौ मोर।
समय परे पर दागिहैं, बिकट- घनेरी ज़ोर।।
उर अंतर तक ठासिहैं, तीरन ‘बल्लू’ बोल।
माया – मच्छर मारिहैं, ते नर पट दे खोल।।
– बलराज सिंह ‘बल्लू-बल’ (बेमेतरा)