जीवन है चन्द साँसों की
जीवन है चन्द साँसों की
जल और वायु आधार हैं।
जल से है काया मानुष की
वायु में बसते सबके प्राण हैं।
कल तक तो मिलता था
सबकुछ धरा पर मुफ्त में।
आज है जीवन और प्राण
मोल लगता इन्सान जहान में।
जल की किल्लत आन पड़ी
बेबस भूमि भी प्यासी रो पड़ी।
आँसू तो निकलते हैं सबके
लेकिन धरा पर गिर सूखने लगे हैं।
साँसें भी हो चली अब महँगी
बन्द डिब्बों में बिकने लगी हवा है।
कल तक जो मिलते थे खुले में
आज मिल रहे बन्द कमरों में।
छोटी सी इस तस्वीर को देखो
जाने कितनों का दिल दहलायेगी।
मासूम बचपन खो रहा है धीरे धीरे
पाने को शुद्ध मिलावट की इस दुनिया में।
बड़े भूल रहे अपने कर्तव्यों को
छोटों ने है अब कमान सम्भाली।
बड़े बेच रहे ज़िन्दगी लोभियों के हाथों
छोटे लगे हैं वापस लाने की जीवन को।
अब भी है वक़्त !!
अब भी है वक़्त !!
जाग जाओ दुनिया वालों !!
उठो और उठाओ जिम्मेदारियों को !!
बचा लो शुद्ध जल और वायु !!
वरना कल आएगा ऐसा !!
जब होंगे मासूम कंधों पर दो डिब्बे
एक मे होगा जल तो दूजे में होगा वायु
जिसकी कीमत होगी लाखों में,
पर.
गीतिका पटेल “गीत”