चेतन भगत का कॉलम:कांग्रेस के लिए ये सलाह भी ‘बेकार’ जाएंगी! कांग्रेस नेतृत्व सुधार लाने के सुझावों को नजरअंदाज क्यों करता है?

अभिव्यक्ति 

वैसे तो कांग्रेस को सुझाव देने के लिए कोई भी लेख लिखना फिजूल लगता है क्योंकि इसकी पूरी संभावना है कि वह इसे नजरअंदाज कर दे। हालांकि कांग्रेस में मौजूद कुछ लोग शायद सुझावों से सहमत भी हो सकते हैं और उन्हें लागू करने के बारे में भी सोच सकते हैं। वैसे भारत में अच्छे सुझावों को नजरअंदाज करने में कांग्रेस हाईकमान सबसे आगे है, जिसमें गांधी परिवार भी शामिल है।

इस पर सैकड़ों लेख, हजारों मीम और लाखों ट्वीट आ चुके हैं, जो इस परिवार को बताते हैं कि हर महीने गहराते जा रहे संकट से पार्टी को कैसे निकालें। फिर भी हाईकमान सभी को नजरअंदाज किए जाता है। आम लोगों की राय मायने रखती है, इसे नजरअंदाज करने के लिए एक विशेषाधिकार, अधिकार की जरूरत होती है।

हां, वह भारतीय जनता पार्टी को कोसने और अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते। वे लगातार ट्वीट करते हैं। मोदी की आलोचना करते हैं। वे विपरीत विचार वालों को पार्टी से निकाल देते हैं। कभी-कभी गिरफ्तारियां भी देते हैं। और फिर भी इसमें से कुछ भी काम नहीं करता।

कभी-कभी कांग्रेस राज्य या स्थानीय चुनाव जीत जाती है, लेकिन उसके पीछे अक्सर मजबूत स्थानीय नेता या बड़ी एंटी-इन्कम्बेंसी काम करती है। अगर उसकी खुद की रणनीतियां सफल हो रही होतीं तो हाईकमान सभी को नजरअंदाज कर सकता था। पर ऐसा नहीं है। ये सब बार-बार होने के बावजूद भी वे कुछ अलग करने से लगातार इनकार करते हैं।

अब बात यहां तक पहुंच चुकी है कि कुछ भाजपा समर्थक भी चाहते हैं कि कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करे। हो सकता है उन्हें देश के लोकतंत्र की परवाह हो और एक अच्छा व मजबूत विपक्ष सत्ताधारी पार्टी को संतुलित रखने के लिए जरूरी है। कुछ शायद इसलिए ऐसा चाहते हैं कि राजनीति असली झगड़े के बिना मजेदार नहीं होती है।

आप ऐसे बॉक्सिंग रिंग की कल्पना करें जहां एक 98 किलोग्राम के चैम्पियन की भिड़ंत 38 किलोग्राम के लाइटवेट खिलाड़ी से हो रही हो, जो कुछ ही सेकंड में ढेर हो जाए, वो भी हर बार! अभी भी ऐसा एकतरफा मैच देखने में भला किसकी रुचि होगी, आप खुद बताएं।

कभी न कभी चैम्पियन के फैन्स को भी 38 किलोग्राम लाइटवेट के लिए बुरा लगने लगेगा, दया भी आएगी। वे शायद उसके पास जाकर उसे पौष्टिक आहार की सलाह दें या अन्य मश्विरा दें। लेकिन हमेशा की तरह 38 किलोग्राम लाइटवेट घमंडी की तरह बात अनसुनी कर चला जाता है।

इस भावना के साथ, ये रहे कांग्रेस पार्टी के लिए कुछ गैर-पारंपरिक सुझाव (जो शायद बर्बाद ही जाएं) कि इन्हें अभी आगे क्या करना चाहिए। बेशक, सिर्फ हाईकमान ही इन्हें कारगर बना सकता है और कोई भी नहीं। कांग्रेस की कोई भी जी-23, जी-230 या जी-2300 जैसा ग्रुप मदद नहीं कर सकता।

1. कांग्रेस को अगली पीढ़ी का मनमोहन सिंह 2.0 तलाशना चाहिए, जो स्वीकार्य हो
यह स्पष्ट हो गया है कि गांधी न सत्ता छोड़ेंगे और न ही वे कांग्रेस पार्टी के लिए मिलकर फुलटाइम काम करेंगे या देश के 140 करोड़ लोगों के लिए राष्ट्रीय पार्टी का नेतृत्व करने के लिए जरूरी काम करेंगे। उन्हें चेहरे की जरूरत है जिसकी अ) लोगों के बीच कुछ अपील हो (पर बहुत ज्यादा नहीं), ब) जिसका हर हाल में अनुमान लगाया जा सके, स) जो वाकई मेहनती हो और द) परिवार के प्रति अत्यंत वफादार हो।

शायद उन्होंने गलती से यही सोचा होगा, जब नवजोत सिंह सिद्धू को शामिल किया। लेकिन सिद्धू डॉ. मनमोहन सिंह नहीं हैं, भले ही दोनों गौरवान्वित सिख हों। सिद्धू का अपना अलग दिमाग है, उनकी अपनी सोच है और वे नियंत्रित होने के लिए नहीं बने हैं। कोई मनमोहन सिंह 2.0 खोजें, जो होशियार हो, स्वीकार्य हो और विनम्र हो। अगर खोजेंगे तो खुद पार्टी के अंदर ही ऐसा कोई न कई मिल जाएगा। फिर उसे आगे बढ़ाएं और परिवार थोड़ा पीछे हो जाए (बेशक बहुत थोड़ा ही)।

2. पिछले लोकसभा चुनाव में जिस ‘न्याय’ योजना का वादा किया था, उसे वापस लाएं
जनकल्याणकारी योजनाओं की बहुत लागत होती है, और वे अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छी भी नहीं मानी जातीं, लेकिन ऐसी योजनाएं वोट बहुत खींचती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की न्याय योजना में कम आय वाले परिवारों को 72,000 रुपए सालाना देने का वादा किया गया था, जिसने लोगों को काफी आकर्षित भी किया था। हालांकि, कांग्रेस गियर बदलकर रफाल जेट घोटाले पर आ गई, जो अंतत: कहीं भी नहीं पहुंचा।

कांग्रेस घोटालों को सामने लाने वाली पार्टी नहीं है। (आप जानते ही होंगे ऐसा क्यों है) हालांकि वह जनकल्याण में सत्ताधारी पार्टी को पीछे छोड़ सकती है, क्योंकि विपक्ष में बैठकर तो कुछ भी वादा किया जा सकता है, जबकि सत्ताधारी पार्टी को कुछ कहने से पहले जिम्मेदार होना पड़ता है।

बोनस टिप

यहां मुफ्त सलाह है कि 72,000 को 1,00,001 कर दें। ‘एक लाख एक…’ सुनने में शगुन की तरह लगता है। आप इतना पैसा कहां से देंगे। अरे छोड़िए, ये आर्थिक अधिवेशन जैसा बोरियत से भरा सवाल मत पूछिए।
3. पंजाब जाएं, वहां के लोगों से बात करें और वहां का राजनीतिक संकट सुलझाएंं
पंजाब के मसले पर इससे पहले काफी कुछ लिखा जा चुका है। भले ही हाईकमान की सोच गलत साबित रही, पर पंजाब में मुख्यमंत्री हटाने और नवजोत सिंह सिद्धू को भेजने के पीछे पार्टी की कोई तो सोच रही होगी। हाईकमान सामने आकर उसे साफ-साफ बताए। पार्टी को चाहिए कि अपने विकल्प चुनें। राज्य को दिलासा दिलाएं कि आप हर हाल में उनके साथ हैं। आप पंजाब हर्गिज नहीं हार सकते।

राजनीति जीतने और सत्ता बनाए रखने के बारे में है। इसलिए हम सत्ता में बने रहने के लिए परिवार को दोष नहीं दे सकते। हालांकि, इस लक्ष्य को मन में रखते हुए भी, हाईकमान को अपनी स्थिति सुधारनी होगी। कम से कम 98 किग्रा बनाम 68 किग्रा का मैच तो हो। हर बार 38 किग्रा लाइटवेट को पिटते देखने में मजा नहीं आता।

98 बनाम 38 किलोग्राम!
राजनीति जीतने और सत्ता बनाए रखने के लिए होती है। इसलिए हम सत्ता में बने रहने की इच्छा रखने के लिए गांधी परिवार को दोष नहीं दे सकते। हालांकि, हाईकमान को अपनी स्थिति सुधारनी होगी। कम से कम 98 किग्रा बनाम 68 किग्रा का मैच तो हो। हर बार 32 किग्रा लाइटवेट को पिटते देखने में मजा नहीं आता। कांग्रेस की कोई भी जी-23, जी-230 या जी-2300 जैसा ग्रुप मदद नहीं कर सकता। सुधार के उपाय हाईकमान ही कारगर बना सकता है और कोई भी नहीं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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