कल्पना
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी ने कथा के माध्यम से यह बताए….
यदा -यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।
हे अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने-आपको इस पृथ्वी पर साकार रूपसे प्रकट करता हूँ।
जब-जब धर्म की हानि होती है अधर्म का बोलबाला हो जाता है और अधर्म हर क्षेत्र में होने लग जाता है तब भगवान का अवतार होता है, हर तरह की व्यवस्था को सुदृढ़ करना, मानव जाति को एक संकेत देना, जीवन जीने की कला सिखाना, भगवान पृथ्वी पर आते हैं |
सभी को ज्ञान देना ,जब सभी मार्ग में बाधाएं होने लगती है, मनुष्य हर क्षेत्र में विफल होने लग जाता है, नैतिक पतन होने लग जाता है ,उस समय भगवान अवतार लेते हैं और फिर से धर्म की स्थापना करते हैं। जन्म तो लेते नहीं भगवान , हमेशा अवतार ही लेते हैं जन्म तो मात्र मनुष्य लीला है,
विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार...
भगवान का अवतार किसी एक कार्य के लिए नहीं होता, ब्राह्मणों के लिए गऊओं के लिए, मनुष्य के लिए ,संतों के लिए, सभी प्रकार की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भगवान अवतार लेते हैं | कंश और शिशुपाल तो एक छोटा- सा कारण था ।
समस्त प्रदेशवासियों को भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाये दिए ।