कुशल शासकों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती – सिंघानिया

लेख ।। कुशल शासकों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती. उनका लोकहितकारी चिंतन कालजयी होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है. ऐसे शासकों से न केवल जनता, बल्कि सभ्यता और संस्कृति भी समृद्ध और शक्तिशाली बनती है. ऐसे शासकों की दृष्टि में सर्वोपरि हित सत्ता का न होकर समाज एवं मानवता होता है. ऐसे ही महान शासक थे महाराजा अग्रसेन जी. वे कर्मयोगी लोकनायक तो थे ही, संतुलित एवं आदर्श समाजवादी व्यवस्था के निर्माता भी थे. वे समाजवाद के प्रणेता, गणतंत्र के संस्थापक, अहिंसा के पुजारी व शांति के दूत थे. सचमुच उनका युग रामराज्य की एक साकार संरचना थी, जिसमें उन्होंने अपने आदर्श जीवन-कर्म से, सकल मानव समाज को महानता का जीवन-पथ दर्शाया. उस युग में न लोग बुरे थे, न विचार बुरे थे और न कर्म बुरे थे. राजा और प्रजा के बीच विश्वास जुड़ा हुआ था. वे एक प्रकाश-स्तंभ थे, अपने समय के सूर्य थे. महाराजा अग्रसेन जी अग्रवाल समाज के पितामह थे.

धार्मिक मान्यतानुसार उनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की 34वीं पीढ़ी में सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के प्रतापनगर के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अंतिम काल और कलियुग के प्रारंभ में आज से लगभग 5,190 वर्ष पूर्व हुआ था.

महाराजा अग्रसेन जी को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है. अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे 1 रुपया व 1 ईंट देगा, जिससे आसानी से उसके लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए. महाराजा अग्रसेन जी ने एक नई व्यवस्था को जन्म दिया. उन्होंने पुन: वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया.

महाराजा अग्रसेन जी ने 108 वर्षों तक राज किया. उनके जीवन के प्रति मूल रूप से 3 आदर्श हैं – लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता. महाराजा अग्रसेन जी का जीवन-दर्शन चारों स्तंभों को दृढ़ करके उन्नत विश्व के नवनिर्माण का आधार बना है. लेकिन इसे समय की विडंबना ही कहा जाएगा कि अगणित विशेषताओं से संपन्न, परम पवित्र, परिपूर्ण, परिशुद्ध, मानव की लोक-कल्याणकारी आभा से युक्त महामानव महाराजा अग्रसेन जी की महिमा से अनभिज्ञ अतीत से वर्तमान तक के कालखंड ने उन्हें एक समाज विशेष का ‘कुल-पुरुष’ घोषित कर उनके स्वर्णित इतिहास को हाशिए पर डाल दिया है.

वर्तमान में भी उनके वंशजों की बड़ी तादाद होने और राष्ट्र के निर्माण में उनका सर्वाधिक योगदान होने के बावजूद न तो उस महान शासक को और न ही उनके वंशजों को सम्मानपूर्ण प्रतिष्ठा ही प्राप्त हो पा रही है. महाराजा अग्रसेन जी की जयंती के अवसर पर अग्र-वंशजों को भी संकल्पित होना है. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अग्रवालों ने जो अपनी पहचान बनाई है उस तस्वीर में अब कल्पना के रंग भरने की जरूरत ही कहां है..? उसे तो बस यर्थाथता की जमीन दें.

अतीत, वर्तमान और भविष्य के कालखंड से जुड़ी संस्कृति की समीक्षा करें और यह देखें कि निर्माण के नए दीये हमें कब और कहां, कितने और कैसे जलाने हैं, ताकि अग्रवंश के दीये से दीया जलाकर रोशनी की परंपरा को सुरक्षित रखा जा सके.

पूज्य पितृपुरुष को उनकी जन्मजयंती पर सादर श्रद्धांजलि.

– आशीष राज सिंघानिया

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