अध्यात्म / चिंतन
” कर्म और धर्म दोनों का निर्वहन तटस्थ भाव से यज्ञ रूप में करना हीं मनुष्य को निर्विचार और निर्विकार बनाता है,”
परिणाम की आशा मत करो,केवल और केवल अपने कार्य मे लगे रहो किन्तु भक्ति का सहारा लेकर चलो,निश्चित रूप से लक्ष्य से भी आगे चले जाओगे,क्योंकि परिणाम तो उच्च शक्ति ही देगी तुम्हे अपनी योग्यता सिद्ध करने की आवश्यकता है,भटको मत,अपनी नाकारात्मक बुद्धि को विराम दो अन्यथा सबकुछ नष्ट हो जायेगा और साकारात्मक बुद्धि पर भरोसा करो वो तुम्हे लक्ष्य तक निश्चित पहुँचा देगी ।
निष्कर्ष:-बहकावे में मत आओ,आत्ममंथन करो,गुरु के पास बैठो ।
जय माँ
संकर्षण शरण जी (गुरु जी)