रायपुर
आर्ट ऑफ लिविंग एवं वैदिक धर्म संस्थान छत्तीसगढ़ के द्वारा रायपुर में उपनयन कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 4 मई से 7 मई तक किया जा रहा है l भारतीय संस्कृति में उपनयन का विशेष महत्व हैं गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी कहते है गायत्री जप का अर्थ है – मेरी बुद्धि परमात्मा से प्रेरित हो। यह हमारी बुद्धि है जो जीवन में स्वयं को पूरी तरह से व्यक्त करने से विशाल दिव्यता को रोकती है।
तो, प्रार्थना है – भगवान मेरी बुद्धि को प्रेरित करें; परम शक्ति मेरे जीवन में और मेरी बुद्धि में प्रकट हो।” उपनयन के दौरान कंधे पर तीन धागे रखे जाते हैं और धागे यह दर्शाते हैं कि ज्ञान, माता-पिता और समाज के प्रति किसी की जिम्मेदारी है। तो यह हमारी जिम्मेदारियों को निभाने का प्रतीक है।
उपनयन को पारंपरिक रूप से आध्यात्मिक दुनिया में नए जन्म के समकक्ष माना जाता है, जो स्वयं के उच्च ज्ञान की ओर पहला कदम है। हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। उनमें एक उपनयन संस्कार है। इस संस्कार से बालक के मन में अध्यात्म चेतना जागृत होती है। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान अर्जन योग्य हो जाता है, तब उपनयन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार का अति विशेष महत्व है।
इस कार्यक्रम हेतु बैंगलोर आश्रम से ब्रह्मचारी शिवतेज एवं पंडित देवाशीष चौधरी जी के द्वारा उपनयन धारण कराया गया इस कार्यक्रम हेतु श्री आर राजगोपालन,श्रीमती मंजू अग्रवाल,श्रीमती काजल रामचन्दानि एवं श्री सुरेश रामचन्दानि,आशिष नायक एवं दीपेन्द्र दीवान ने महत्वपूर्ण योगदान दिया l