आखिर क्यों हो गया रेलवे का पानी ‘फ्रीज’, कभी डिमांड नहीं हो पाती थी पूरी अब प्रोडक्शन घटकर रह गया सिर्फ 17%

रेलवे से जुड़े सूत्र बताते हैं कि रेल नीर (Rail Neer) की कम बिक्री के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। एक तो कोरोना काल में ट्रेनें कम चल रही हैं। ट्रेन के जनरल डिब्बे (General Coach) में भी पहले की तरह यात्री भर कर नहीं चल रहे। जब ट्रेन में पैसेंजर ही कम होंगे तो पानी बोतल भी कम ही बिकेगा। इसके अलावा रेलवे के कैटरिंग ठेकेदार ज्यादा मुनाफे के लिए रेल नीर ब्रांड के बदले लोकल ब्रांड (Local Brands) को भी प्रोमोट करते हैं।

देश भर में रेल नीर के 14 फैक्ट्री ऑपरेशनल
रेल मंत्रालय की कंपनी इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कारपोरेशन (IRCTC) के इस समय देश भर में 14 प्लांट ऑपरेशनल हैं। ये नांगलोई (Nangloi), बिहार के दानापुर (Danapur), तमिलनाडु के कांचिपुरम जिले में पलुर (Palur), मुंबई के पास अंबरनाथ (Ambernath), यूपी में अमेठी (Amethi), केरल के त्रिवेंद्रम जिले में पारसला (Parassala), छत्तीसगढ़ का बिलासपुर (Bilaspur), गुजरात का सानंद (Sanand), यूपी का हापुड़ (Hapur), भोपाल के पास मंडीदीप (Mandideep), महाराष्ट्र का नागपुर (Nagpur), असम में जगी रोड (Jagi road), कोलकाता के पास संकरैल (Sankrail) और देहरादून के पास (Maneri) में हैं। इन प्लांटों में हर रोज 14 लाख बोतल से भी ज्यादा रेल नीर का उत्पादन हो सकता है। लेकिन इसकी बिक्री नहीं होने की वजह से 20 फीसदी प्रोडक्शन भी नहीं हो रहा है।

नहीं हो रहा है क्षमता का पूरा उपयोग
आईआरसीटीसी के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष के दौरान फरवरी तक महज 6.10 करोड़ बोतल रेल नीर का ही उत्पादन हो पाया था। इसके कुल ऑपरेशनल प्लांटों में हर साल 27.50 करोड़ बोतल रेल नीर का उत्पादन हो सकता है। मतलब कि इस दौरान महज 17.24 फीसदी क्षमता का ही उपयोग हो पाया। ऐसे में न सिर्फ प्लांट और मैशिनरी में किया गया निवेश जाया हो रहा है बल्कि प्लांट में काम करने वाले मैन पावर का भी सही उपयोग नहीं हो रहा है।

रेल नीर की आपूर्ति नहीं कर पाती थी आईआरसीटीसी
आईआरसीटीसी के आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि आम दिनों में रेल नीर की इतनी मांग होती है कि इसकी आपूर्ति मुश्किल होती है। इसके कुल ऑपरेशनल प्लांट में हर रोज करीब 14 लाख बोतल रेल नीर ही बन पाता है जबकि मांग 25 से 30 लाख बोतल की होती है। इसलिए रेलवे ने कुछ नामचीन कंपनियों के ब्रांड को अप्रूव कर दिया है। ताकि उनके पानी रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में बेची जा सके। लेकिन ऐसा तब होगा, जबकि वेंडर को रेल नीर की सप्लाई नहीं मिल पा रही हो।

अभी क्यों नहीं बिक रहा रेल नीर
अधिकारी बताते हैं कि कोरोना काल में रेलगाड़ी पूरी क्षमता से नहीं चल रही है। सेलेक्टेड रूट पर सेलेक्टेड ट्रेनें ही चल रही हैं। इसलिए रेल नीर की भी उतनी डिमांड नहीं है। कुछ जागरूक यात्री बताते हैं कि रेलवे के कैटरिंग ठेकेदार भी सिर्फ दिखाने के लिए रेल नीर का बोतल ट्रेन में रखते हैं। एक बार ट्रेन दिल्ली से निकल जाए तो फिर वह लोकल ब्रांड का पानी बेचने लगते हैं। इससे रेल नीर की बिक्री प्रभावित होती है।

ठेकेदार क्यों बेचते हैं लोकल ब्रांड का पानी
रेलवे के अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं रेल नीर के हर बोतल का उत्पादन वैध तरीके से होता है। मतलब कि उस पर जीएसटी का शत प्रतिशत भुगतान होता है। दूसरा, इसके उत्पादन में गुणवत्ता पर पूरा जोर होता है। इसलिए इसकी लागत ज्यादा पड़ती है। रेलवे के कैटरिंग ठेकेदारों को रेल नीर का एक बोतल करीब 10 रुपये में मिलता है ताकि वह इसे ठंडा कर 15 रुपये में बेच सकें। वे हर बोतल पानी पर इससे भी ज्यादा मुनाफा चाहते हैं और लोकल ब्रांड का पानी खरीद लेते हैं। बताया जाता है कि लोकल ब्रांड वाले पानी का बोतल 7 रुपये में ही मिल जाता है। मतलब कि लोकल ब्रांड का पानी बेचने से उसका मुनाफा बढ़ जाता है।

 

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