अनंत चतुर्दशी पौराणिक कथा…जाने की वजह

धर्म कथा

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का पर्व श्री गणेश महोत्सव के समापन के दिन मनाया जाता है. इस वर्ष ये पर्व  कल मनाया जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के अनंत स्वरूप की उपासना की जाती है. पूजा के बाद अनंत सूत्र (Thread) बांधने की परंपरा है जिसमें 14 गांठ लगी होती हैं. ये सूत्र रेशम या फिर सूत का बना होता है. इस अनंत सूत्र को महिलाएं बाएं और पुरुष दाएं हाथ में बांधते हैं. माना जाता है कि अनंत सूत्र बांधने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं.

अनंत चतुर्दशी का महत्त्व 

अनंत चतुर्दशी मनाये जाने का जिक्र महाभारत में मिलता है. मान्यता के अनुसार पांडव जब जुएं में अपना सारा राजपाट हार गए थे. तब उनको 12 साल वनवास और एक साल का अज्ञात वास मिला था. अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए इस दौरान पांडवों ने वन में निवास किया था. उस समय युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अपना राजपाट वापस पाने और दुख दूर करने का तरीका पूछा. तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि जुआं खेलने की वजह से माता लक्ष्मी तुमसे रूठ गई हैं. अगर तुम अपना राजपाठ वापस पाना चाहते हो तो तुम अनंत चतुर्दशी पर व्रत रखो और भगवान विष्णु की आराधना करो तो तुम्हें सब कुछ वापस मिल जाएगा. इसके बाद श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को व्रत का महत्व बताते हुए एक कथा भी सुनाई.

अनंत चतुर्दशी की कथा

प्राचीन काल में एक तपस्वी ब्राह्मण रहता था. उसका नाम सुमंत और पत्नी का नाम दीक्षा था. इन दोनों की सुशीला नाम की  एक धर्मपरायण पुत्री थी. सुशीला के युवावस्था में आते-आते उसकी मां दीक्षा की मृत्यु हो गई. इसके कुछ समय बाद सुशीला के पिता सुमंत ने कर्कशा नामक की स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया. इसके कुछ दिनों बाद सुशीला का विवाह भी एक ब्राह्मण कौंडिन्य ऋषि से कर दिया गया. सुशीला की विदाई के समय उसकी सौतेली मां कर्कशा ने कुछ ईंट और पत्थर बांधकर दामाद कौंडिन्य को दिए जिससे कौंडिन्य को कर्कशा का ये व्यवहार बहुत बुरा लगा. वे दुखी होकर अपनी पत्नी के साथ चल दिए.रास्ते में रात हुई और तो वह एक नदी के किनारे रुक कर संध्या वंदन करने लगे.

उसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं. सुशीला ने उन महिलाओं से पूजा के बारे में पूछा, तो उन्होंने भगवान अनंत की पूजा और उसके महत्व के बारे में उसे बताया. सुशीला ने भी उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया और 14 गांठों वाला सूत्र बांधकर कौंडिन्य के पास आ गई. जब कौंडिन्य ने सुशीला से उस रक्षा सूत्र के बारे में पूछा तो सुशीला ने उन्हें सारी बात बताई. कौंडिन्य ने यह सब मानने से मना कर दिया और उस रक्षा सूत्र को निकालकर अग्नि में फेंक दिया. इसके बाद से उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वे दुखी रहने लगे. काफी समय बाद इस दरिद्रता का की वजह जब उन्होंने सुशीला से पूछी तो उन्होंने भगवान अनंत का सूत्र जलाने की बात का ज़िक्र किया. यह सुनकर कौंडिन्य अनंत सूत्र की प्राप्ति के लिए वन की ओर चल दिए. कई दिनों तक वन में ढूंढने के बाद भी जब उन्हें अनंत सूत्र नहीं मिला, तो वे निराश होकर जमीन पर गिर पड़े.

उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले, ‘हे कौंडिन्य’, तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ रहा है. अब तुमने पश्चाप किया है, इसलिए मैं तुमसे प्रसन्न हुआ. अब तुम घर जाकर अनंत चतुर्दशी का व्रत करो. 14 वर्षों तक व्रत करने पर तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा और तुम धन-धान्य से पूर्ण हो जाओगे. कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उनको सभी परेशानियों से मुक्ति मिल गई.

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