अटल सौभाग्य का प्रतीक है वट सावित्री व्रत 

नई दिल्ली
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वटसावित्री व्रत किया जाता है। यह स्ति्रयों का महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन सत्यवान सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज के पाश से छुड़ाया था। यह व्रत 10 जून 2021 को आ रहा है। 
व्रत विधान :वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी चाहिए। वट वृक्ष की जड़ को पानी से सींचना चाहिए। पूजा के लिए जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, पुष्प तथा धूप होनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींचकर तने के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके बाद सत्यवान सावित्री की कथा सुननी चाहिए। इसके बाद भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उस पर यथााशक्ति रुपये रखकर अपनी सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।

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वटसावित्री कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक वर्षों तक तप किया जिससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। तप के प्रभाव से जो पुत्री उत्पन्न हुई उसका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री सभी गुणों से संपन्न कन्या थी, जिसके लिए योग्य वर न मिलने के कारण राजा अश्वपति काफी दुखी रहने लगे। एक बार उन्होंने स्वयं पुत्री को वर तलाशने भेजा। इस खोज में सावित्री एक वन में जा पहुंची जहां उसकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से हुई। द्युमत्सेन उसी तपोवन में रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी क्रूर राजा ने छीन लिया था। सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हें पति के रूप में वरण करने का निर्णय लिया।

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