व्रत : जानें इसके धार्मिक स्वरूप; धार्मिक परिप्रेक्ष्य और लाभ; क्या नहीं खाना चाहिए

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    What is fasting now
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    अध्यात्म; 11 जुलाई; कल्पना शुक्ला । What is fasting now :  व्रत एक धार्मिक या आध्यात्मिक अनुशासन है, जिसमें व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य या श्रद्धा के कारण भोजन, व्यवहार या विचार में संयम रखता है। यह प्रायः किसी देवी-देवता की कृपा प्राप्त करने, आत्मशुद्धि के लिए, या किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।

    सनातन धर्म में व्रत का महत्त्व

    What is fasting now : सनातन धर्म में व्रत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक और नैतिक विकास का सशक्त साधन है। व्रत का पालन करने से व्यक्ति आत्मनियंत्रण, संयम, श्रद्धा और अनुशासन जैसे गुणों को आत्मसात करता है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाता है।

    What is fasting now : व्रत के माध्यम से व्यक्ति तन-मन की शुद्धि करता है। उपवास करने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है, जिससे शरीर में विषैले तत्वों की शुद्धि होती है। साथ ही, संयम और पूजा-पाठ के अभ्यास से मन की चंचलता कम होकर एकाग्रता और आत्मबल में वृद्धि होती है। यह स्थिति साधक को ईश्वर से गहराई से जोड़ती है।

    What is fasting now : सनातन धर्म में विभिन्न व्रत विशेष तिथियों, नक्षत्रों या वारों पर रखे जाते हैं, जिनमें प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्त्व होता है। जैसे – एकादशी का व्रत श्रीविष्णु की भक्ति के लिए, सोमवार का व्रत भगवान शिव के लिए, शुक्रवार व्रत देवी लक्ष्मी के लिए, और सावन व्रत, नवरात्रि व्रत, करवा चौथ, छठ आदि लोक आस्था के रूप में विशेष स्थान रखते हैं।

    इस प्रकार, व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुशासन है, जो जीवन में सद्गुणों की स्थापना, धैर्य, और ईश्वर से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।

    What is fasting now : व्रत संस्कृत मूल का एक शब्द

    परिभाषा : व्रत संस्कृत मूल का एक महत्वपूर्ण शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है  “संकल्प” या “धार्मिक प्रतिज्ञा”। इसके तुल्य शब्दों में प्रतिज्ञा, संकल्प, और भक्ति आते हैं। व्रत का तात्पर्य है किसी निश्चित नियम या त्याग के साथ धार्मिक या आध्यात्मिक उद्देश्य से किया गया अनुशासन।

    What is fasting now : व्रत का उद्देश्य

    • ईश्वर की भक्ति और आत्मशुद्धि।

    • परिवारजन, पति-पत्नी, संतान या किसी प्रियजन की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना।

    • पुण्य अर्जन, मानसिक शांति, या मोक्ष की कामना।

    • मनोकामना की पूर्ति के लिए व्रत को एक माध्यम माना जाता है।

    What is fasting now : व्रत का स्वरूप

    व्रत केवल भोजन न करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई पहलू हो सकते हैं

    • उपवास (पूर्ण या आंशिक)
    • नियमबद्ध जीवन (जैसे ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा आदि का पालन)
    • पूजा, पाठ, मंत्रजप और ध्यान
    • किसी बुरी आदत या प्रवृत्ति का त्याग
    • तीर्थ यात्रा या विशेष अनुष्ठान में भागीदारी
    What is fasting now : व्रत के प्रमुख तत्व
    • नियम (संयम) – जैसे उपवास (भोजन न करना या सीमित करना), मौन रहना, ब्रह्मचर्य का पालन आदि।
    • संकल्प – व्रत की शुरुआत में मन में संकल्प लिया जाता है कि अमुक कार्य या त्याग आज के दिन या किसी विशेष अवधि तक किया जाएगा।
    • पूजन-पाठ – व्रत के दौरान ईश्वर की पूजा, मंत्र जाप, कथा पाठ आदि होते हैं ।
    • उद्देश्य – व्रत के पीछे कोई आध्यात्मिक या लौकिक उद्देश्य होता है, जैसे स्वास्थ्य लाभ, शांति, सफलता, संतान प्राप्ति, या भगवान की कृपा।
    What is fasting now : व्रत के प्रकार
    • नित्य व्रत – जो नियमित रूप से किए जाते हैं, जैसे एकादशी, सोमवार व्रत।
    • नैमित्तिक व्रत – किसी विशेष कारण या तिथि पर, जैसे करवा चौथ, महाशिवरात्रि व्रत।
    • काम्य व्रत – किसी विशेष इच्छा या मनोकामना की पूर्ति के लिए किया गया व्रत, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए संतान सप्तमी।
    What is fasting now : व्रत रखने के लाभ
    • आत्म-अनुशासन और संयम की भावना बढ़ती है।

    • शरीर को विश्राम और डिटॉक्स मिलता है।

    • मन में श्रद्धा, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

    • मानसिक शांति और संतुलन में मदद मिलती है।

    What is fasting now : व्रत का महत्व

    व्रत न केवल धार्मिक कार्य है, बल्कि यह आत्मसंयम, नैतिक अनुशासन, और भक्ति की भावना को भी गहराई देता है। यह तन और मन दोनों की शुद्धि में सहायक होता है और समाज में धार्मिक चेतना और सकारात्मकता फैलाने का माध्यम बनता है।

    What is fasting now :  व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए

    व्रत में क्या भोजन नहीं करना चाहिए?” इसका उत्तर व्रत की प्रकृति, मान्यता, और धार्मिक परंपरा पर निर्भर करता है। सनातन धर्म में व्रत को शुद्धता और संयम का प्रतीक माना गया है, इसलिए कुछ चीजों का त्याग करना अनिवार्य होता है।

    • अन्न (अनाज और दालें): अधिकांश व्रतों में चावल, गेहूं, दाल, मैदा, सूजी आदि का सेवन वर्जित होता है। इसे “अन्याहार वर्जन” कहा जाता है।
    • तामसिक भोजन : प्याज, लहसुन, मांस, मछली, अंडा, शराब आदि वर्जित होते हैं। ये तामसिक गुण को बढ़ाते हैं, जिससे मन अशुद्ध होता है।
    • नमक (सामान्य नमक): कई व्रतों में सेंधा नमक (सैन्धव लवण) ही स्वीकार्य होता है। सामान्य समुद्री नमक त्याज्य है।
    • तला-भुना और पैकेज्ड फूड: अधिक तेल, मिर्च, मसाले या प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जैसे चिप्स, बिस्कुट आदि त्यागे जाने चाहिए।
    • किसी भी जीवित प्राणी को हानि पहुंचाकर बना भोजन व्रत में करुणा और अहिंसा का भाव मुख्य होता है।
    What is fasting now :  व्रत और उपवास में अंतर; एक दार्शनिक दृष्टिकोण

    सनातन धर्म में “व्रत” का अर्थ केवल भोजन न करना नहीं होता, बल्कि यह एक संकल्पमूलक आचरण है। जब कोई व्यक्ति किसी विशेष कार्य को करने, न करने या किसी विशेष विधि से करने का मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक संकल्प करता है, तो उसे व्रत लेना कहा जाता है, और उसके पालन को व्रत का पालन कहा जाता है।

    उदाहरण स्वरूप: यदि कोई संकल्प करता है कि वह हर मंगलवार को उपवास करेगा, संयम से रहेगा, पूजा-पाठ करेगा और सदाचार का पालन करेगा  तो यह एक व्रत है, क्योंकि उसमें संकल्प और अनुशासन दोनों जुड़े हुए हैं।

    इसके विपरीत: यदि कोई केवल भोजन न करने (उपवास) की बात करता है, बिना किसी विशेष आचरण या संकल्प के, तो वह केवल उपवास कहलाएगा, व्रत नहीं।

    मुख्य अंतर सारांश रूप में
    बिंदु व्रत उपवास
    अर्थ संकल्प, नियम, संयम का पालन केवल आहार का त्याग या संयम
    आधार मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक संकल्प शारीरिक संयम
    दायरा व्यापक – आचरण, पूजा, आहार सभी शामिल सीमित – मुख्य रूप से भोजन पर नियंत्रण
    उदाहरण “मैं सोमवार को शिवजी की पूजा व संयम से रहूंगा” (व्रत) “मैं आज भोजन नहीं करूंगा” (उपवास)
    What is fasting now :  महाभारत में भीष्म का व्रत: व्रत का चरम रूप

    महाभारत में देवव्रत, जिन्होंने आगे चलकर “भीष्म” नाम पाया, उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य और विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी। यह प्रतिज्ञा इतनी कठोर, गंभीर और संकल्पबद्ध थी कि देवताओं ने स्वयं उन्हें “भीष्म” कहा अर्थात् भीषण व्रत का धारण करने वाला।

    यह व्रत न केवल व्यक्तिगत त्याग था, बल्कि उस युग के धर्म, नीतिशास्त्र और सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप एक महान आदर्श भी था।


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