काँटों का जीवनदर्शन: चुभन में छिपी चेतना, मौन में बोलती प्रकृति

काँटे यूँ ही नहीं होते, वे भी जीवन की भाषा बोलते हैं

Thorns
Thorns : By - Aarav Shukla

साहित्य/संपादकीय: काँटे (Thorns)… नाम सुनते ही एक चुभन-सी महसूस होती है। मानव मन स्वाभाविक रूप से उन्हें त्याग का, दुख का, और पीड़ा का प्रतीक मानता है। पर क्या काँटे सिर्फ चुभाने के लिए ही होते हैं? क्या उनका होना मात्र फूलों की कीमत बढ़ाने तक सीमित है? या फिर, उनके भीतर भी जीवन, दर्शन और अनुभव की गहराई छिपी है?

प्रकृति जब कुछ रचती है, तो व्यर्थ नहीं रचती। उसके हर सृजन में एक उद्देश्य, एक दर्शन छिपा होता है – फिर चाहे वह गुलाब का फूल हो या बबूल का काँटा। काँटों को हम अक्सर चुभन, पीड़ा और दूरी का प्रतीक मानते हैं, पर क्या यह दृष्टिकोण अधूरा नहीं है?

इस प्रश्न का उत्तर जब हम प्रकृति और जीवन की गहराई से खोजते हैं, तो पाते हैं —

“काँटे यूँ ही नहीं होते, वे भी जीवन की भाषा बोलते हैं”

“हमने तो काँटों में भी जीवन देखा है, हर चुभन में भी कोई संदेश बहता है।”

इस लेख में हम उसी अधूरे दृष्टिकोण को पूर्णता देना चाहते हैं – यह समझकर कि काँटे भी सिर्फ काटने के लिए नहीं होते, बल्कि सहेजने, सिखाने और सजग करने के लिए होते हैं।

अस्तित्व की रक्षा का नैसर्गिक उपाय Thorns

काँटे प्रकृति द्वारा रचित सबसे मौन पर सबसे सशक्त रक्षक हैं। गुलाब का काँटा उसकी कोमलता की रक्षा करता है, तो बबूल, बेर, कैक्टस जैसे पेड़ों के काँटे स्वयं अपने अस्तित्व को संकट से बचाते हैं।

जैसे मनुष्य अपनी सीमाएँ बनाता है – अपने ‘personal boundaries’ – वैसे ही काँटे वृक्षों की सीमाएँ हैं।
वे बताते हैं कि –
“सौंदर्य हो या साधारणता, हर जीवन की रक्षा जरूरी है।”

हम भी जब अपने जीवन में ना कहना सीखते हैं, कठोर निर्णय लेते हैं, या सख्त व्यवहार करते हैं, तो क्या हम भी अनजाने में काँटों जैसे नहीं हो जाते? Thorns

न्यूनता में संतुलन और संयम की सीख

रेगिस्तान में खड़े कैक्टस को देखिए। उसकी सतह काँटों से भरी होती है – ये काँटे दरअसल पत्तियों का रूपांतर हैं, जो जल-संरक्षण के लिए बनाए गए हैं।Thorns 

यह हमें सिखाता है कि जहाँ संसाधन सीमित हों, वहाँ ‘सजावट’ की जगह ‘सजगता’ ज़रूरी है। कम संसाधन में जीने की कला, संयम, आत्मनियंत्रण – यही तो है वह सूक्ष्म जीवनदर्शन जो काँटे हमें सिखाते हैं।

आज जब दुनिया विलासिता की दौड़ में थकती जा रही है, तो एक कैक्टस के काँटे हमें मौन में पुकारते हैं –
“कम में भी जीवन है, गहराई है, गरिमा है।”

इसे देख कवि कहता है की। … “ज़रा सी धूप में भी मर गईं कलियाँ, भभकती धूप में भी जी गए कांटें” Thorns

त्याग और मौन सेवा का प्रतिरूप

काँटा स्वयं कभी फूल नहीं बनता। वह जानता है कि उसकी नियति ‘महकना’ नहीं, बल्कि महकाने वाले की रक्षा करना है।यह त्याग का सर्वोच्च उदाहरण है। कभी फूल से ईर्ष्या नहीं करता, बल्कि उसके साथ खड़ा होता है — अदृश्य, मौन, पर पूरी निष्ठा से। Thorns

यह हमें सिखाता है कि सेवा का सबसे बड़ा रूप वह है, जो दिखता नहीं, पर जीवन में सबसे गहरा असर छोड़ता है। क्या हमारी ज़िन्दगी में भी ऐसे कई लोग नहीं होते जो काँटे की तरह होते हैं — कठोर दिखने वाले, पर हर समय हमारे सुख की रक्षा में तत्पर? Thorns

कठोरता भी करुणा का एक रूप हो सकती है

काँटे को देखकर हम उसका अर्थ ‘चुभन’ से जोड़ते हैं। पर यह चुभन किसी को रोकने के लिए होती है – नष्ट करने के लिए नहीं। Thorns

ठीक वैसे ही, कभी माता की डाँट, गुरु की सख्ती, पिता की खामोशी, या समय की कठिनाई — ये सब काँटे ही तो हैं जो हमें गिरने से पहले रोकते हैं। इनमें करुणा है, पर वह करुणा फूलों-सी कोमल नहीं, काँटों-सी गहरी और सुरक्षा से परिपूर्ण होती है। Thorns

सौंदर्य का संतुलन बनाए रखने वाले प्रहरी

यदि फूल होते, और काँटे न होते – तो वह सौंदर्य टिकता नहीं। कोमलता की रक्षा काँटे ही करते हैं। जीवन में भी सुख तब तक सुंदर है जब तक दुःख उसे संतुलित करता है। सफलता की महक भी तभी स्थायी होती है जब संघर्ष के काँटे साथ हों। हर सुंदर अनुभव के पीछे कोई काँटा जरूर होता है – जो उस अनुभव को टिकाऊ बनाता है।

काँटे हमें सिर्फ चुभते नहीं हैं, वे हमें सोचने पर विवश करते हैं। वे मौन होकर जीवन की सबसे गहन बातें कहते हैं – त्याग, सीमाएँ, संयम, सेवा और सुरक्षा। Thorns Thorns

वे हमें सिखाते हैं कि:

“हर चुभन बुरी नहीं होती,
और हर कठोरता में नफरत नहीं छुपी होती।”

काँटे फूलों के विरोधी नहीं होते – बल्कि वे ही उन्हें संपूर्ण बनाते हैं। जीवन के मार्ग पर, यदि फूल मुस्कान हैं — तो काँटे उसकी चेतना हैं। Thorns

लेख – आरव शुक्ला

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