साहित्य: Story By P.K Kamal: गरीब के पूँजी: चारों मुड़ा अँधियारी बगरे लागिस ।अमरौतिन ह दीया बार के दुआरी म देखाइस। अऊ मने मन बिनती करे लागिस ,रामू ह इसकूल गे रहिस।रोज के अतेक बेरा ले तो आ जत रहिस हे ,फेर आज का होगे ते अभी ले नइ आय हे। दाई के हिरदय बिचलित होय लागिस। घर अंदर जाके माखन ल कहिस – देखौ तो जी! रामू ह अभी ले। घर नइ आय हे ।थोकिन इसकूल डाहर जाके पता करतेव। ओखर संगवारी मन घर घलो देख लेतेव।मोर मन ह कइसे – कइसे लागत हे।
माखन कहिस- हव रामू के दाई ,मैं जाके देखत हँव वो टूरा ल काय होगे आज ते अभी ले नइ आय हे। कोनो संगवारी मन घर अपन गे होही तैं संसो झन कर।मैं अभीच लेके आवत हँव टूरा ल।
एती अमरौतिन ह घातेच संसो करे लागिस ।आखिर उहू महतारी ताय । महतारी के हिरदय ह कहाँ मानही ।अपन आँखी के तारा ल अभी ले नइ देखे हे। मने मन गुनत हे, कहाँ गे होही मोर लइका ह? का करत होही ? कइसे होही? आनी बानी के मन म खियाल आवत हे। अंदरे अंदर समुंदर सहीन हिलोर मारत हे । फेर का करय अंतस ह तो चुरत हे।आँखी ल टकटकी लग गे। दुआरी म माथा ल धरे बइठके अमरौतिन ह संसो करे लागिस।
गिरत अपटत गली खोर म माखन खोजेबर रेंगिस ।जम्मों गाँव भर ल खोज डारिस फेर दिखबे नइ करिस।माखन चिंता म परगे ।ए टूरा ह गय त गय कहाँ ? सारे टूरा मिलही न त नंगत के छरहूँ । फेर मिलय तो सही ।डोकरी डोकरा हमन इँहा मरत ले बियाकुल हन अऊ ओला घूमे ले फुरसत नइ हे। आ ले ले रे साले!जी ह गुसियागे ।
हक खागे माखन ह अऊ गुनत गुनत तरिया डाहर घलो गिस। कहूँ खेलत कूदत गे होही त कहिके। त का देखथे माखन ह ,टूरा चित्त खाये परे रहय। लइका के हाल ल देख के माखन डर्रा गे। का होगे मोर लइका ल भगवान ! कइसे चित्त खाये परे हे। धरा पसरा रामू के मुँह म तरिया के पानी ल लाके डारिस। फेर टूरा ह हुँकय न भुँकय, चिट करय न पोट। काँपत काँपत जइसे तइसे रामू ल भुजा म उठाइस अऊ घर म लानिस। Story By P.K Kamal
अमरौतिन ह देखिस तहाँ चिल्ला के रो डारिस। मोर लइका ल का होगे भगवान! कहत कहत घोहार पारके रोवत सुनिस त आजू बाजू के मनखे मन सकलागे। सबो झन मिलके अमरौतिन ल चुप कराय लगिन । धीरज बँधाइन, सबो झन रामू ल अस्पताल लेके जाय बर कहिन । Story By P.K Kamal
गाँव म बड़े जन अस्पताल रहिस ते मा ले के रामू ल भर्ती कर दिन। डाॅक्टर मन का का चेक करे ल धर लीन। एती दूनों झन के टोटा सुखावत हे। अंतस ल समहालय कइसे फेर ।अगोर नइ सकिस माखन ह कुरिया अंदर खुसरगे जिहाँ रामू के इलाज होवत रहिस अऊ डाॅक्टर के गोड़ तरी गिरके बिनती करे लगिस – मोर लइका ल बचा लव साहब! मोर लइका ल बचा लव। मोर एके झन लइका, मोर आँखी के पुतरी, मोर वंश के इही एके ठन चिराग हरय साहब। बचा लव।
सिस्टर मन ओला समझाइस, चुप कराइन अऊ बाहिर बइठे ल कहिस। का करय माखन ह अंतस ल कचोट के हिरदे म पथरा रखके बाहिर जाके बइठ गे।
ओती कुरिया ले डॉक्टर साहब ह निकलिस त झट ले अमरौतिन ओकर तीर म पहुँच गे अऊ पूछे लगिस – का होय हे मोर लइका ल डॉक्टर साहब का होय हे ……। बरोबर ढंग ले नइ पूछे सकिस अमरौतिन ह गदगद गदगद रो डरिस ।माखन ह ओला धीरज धराइस। डॉक्टर ह कहिस – तू मन ल पचास हजार रुपिया लगही, रामू के मुड़ी म खून ह जम गे हे। ओकर अपरेशन करे ल पड़ही। नइ ते। ……
डॉक्टर के बात ल सुन के दूनो झन के तरवा सुखा गे। दूनो माथा ल धर के रोय लागिस। आँसू पोंछत पोंछत माखन ह कहिस- अतेकन पइसा कहाँ ले लाबो साहब, हमन गरीब मनखे हरन । बनी भूती करके जिनगी ल चलावत हन। थोकन दया करव हमर मन ऊपर। हमर लइका ल बचा लव। हमर मदद करव साहब। तुँहर मेर तो गजब के पइसा हवय। रोज कतको पइसा कमावत होहू। मोर लइका के इलाज के पइसा थोकिन कम कर दिहू त कोनो डाहर उधारी बाड़ही करके बाकी पइसा के बेवस्था कर लेतेंव । Story By P.K Kamal
डॉक्टर के हिरदय नइ पिघलिस ।कड़क आवाज म चिल्ला के बोलिस- मैं कुछु नइ जानव तुमन कहाँ ले लाहू? कइसे लाहू ? का उदिम करहू। फेर एक बात बोल देथँव तुमन ल अपन लइका ल बचाना हे त जल्दी से जल्दी पइसा के इंतजाम कर लव। नही त मैं नइ जानव कुछु अनहोनी हो जही त। तुम जानौ तुँहर काम जानय ।
गुनत गुनत दूनो झन घर कोती आइस, आस पास म उधार बाड़ही पूछिन फेर कोनो दे बर तियार नइ होइन । का करन कइसे करन। दूनो के हिरदय म जइसे गाज गिरगे हे। फेर कुछु तो करे ल पड़ही। बिकट बेर ले सोंच बिचार के अमरौतिन ह कहिस- ए जी, हमर लइका ह हमर जिनगी हरय, हमर उमर भर के कमइ हरय, हमर असली संपत्ति त उही हरय ओला बचालव जी। ए घर ल बेचके अपरेशन बर पइसा दे दव जी। अइसे कहिके अमरौतिन के आँखी ले आँसू बोहाय ल धर लिस । Story By P.K Kamal
कुछु बोलिस नही चुपचाप माखन घर कुरिया के कागज पाथर ल धर के गाँव के साहूकार मेर चल दिस। जाके पेपर मन म अँगूठा ल लगाइस। पइसा ल धर के माखन दउँड़त दउँड़त अस्पताल कोती भागिस । अमरौतिन घलो आँसू ल पोंछत पोंछत चल दिस। अस्पताल जाके माखन ह कहिस- डाॅक्टर साहब ! मै पइसा ला डरेंव। अब जल्दी से जल्दी मोर लइका के इलाज ल शुरु करव। मोर जनम भर के पूँजी मोर लइका आय साहब ओला बचा लव तुमन ओला बचा लव…….।
चुपचाप डाॅक्टर ह अपरेशन कुरिया म गिस अऊ अपरेशन शुरु करिस।दू घंटा ले अपरेशन चलिस। बाहिर म बइठे बइठे दूनो झन भगवान ल सुमरे लगिस बिनती करे लगिस। …..अपरेशन कुरिया ले डाॅक्टर बाहिर निकलिस अऊ सुग्घर हाँस के कहिस। तुँहर लइका के भाग ऊँचा हे जेन ह बाँचगे। फेर मैं तो आसरा छोंड़ दे रहेंव एकर बाँचे के। एक दू घंटा बाद तुमन ओकर मेर जाके मिल सकत हव। Story By P.K Kamal
दूनो के परान म परान आइस। अंतस जुड़ाइस । दूनों के आँखी ह बरसे लागिस। फेर ए आँसू खुशी के आय। भगवान ल धन्यवाद करिन। मन ल मड़हाइस अऊ अपन आँखी के पुतरी ल जाके देखिन। अमरौतिन, रामू ल पोटार के रो डरिस। रामू ह अपन दाई ल समझाइस अऊ कहिस- मोला काहीं नइ होय हे दाई। मैं तुँहर करजा ल चुकाय बिना ए दुनिया ले नइ जाँव। तेकर सेती भगवान ह घलो मोला नइ लेगिस। Story By P.K Kamal
पी.के. “कमाल”, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) के निवासी, संवेदनशील साहित्यकार और प्रभावशाली मंचीय कवि हैं। वे मुख्य रूप से ग़ज़ल, कविता और कहानी विधाओं में अपनी रचनात्मक प्रतिभा को अभिव्यक्त करते हैं। उनकी लेखनी में जीवन के मार्मिक प्रसंगों, सामाजिक सरोकारों और मानवीय भावनाओं की झलक मिलती है। हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा पर समान अधिकार रखने वाले पीके कमाल मंचों पर अपनी ओजस्वी वाणी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय रहने के साथ-साथ वे शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सहायक शिक्षक के रूप में वे शासकीय प्राथमिक शाला भेड़नी, विकासखंड बेरला, जिला बेमेतरा में कार्यरत हैं, जहाँ वे शिक्षा के साथ-साथ साहित्य की अलख भी जगाते हैं।
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