Shri Durga Saptashati 9 : श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ विधि लोगों के लिए बहुउपयोगी

Shri Durga Saptashati 9
Shri Durga Saptashati 9
अध्यात्म | Shri Durga Saptashati 9 : दुर्गा सप्तशती के संक्षिप्त पाठ को पाठकों तक पहुंचाने के एक प्रयास का संकेत देता है। यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है क्योंकि दुर्गा सप्तशती का पाठ कई लोगों के लिए एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है। इसे संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना, अधिक लोगों को इस पवित्र ग्रंथ के करीब लाने का एक शानदार तरीका है।

श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ विधि लोगों के लिए बहुउपयोगी

Shri Durga Saptashati 9 : किसी भी धार्मिक पाठ को शुरू करने से पहले गुरुजी का आशीर्वाद लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह पाठक को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है और उसे सही दिशा में ले जाता है।

Shri Durga Saptashati 9 : श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ विधि लोगों के लिए बहुउपयोगी

दुर्गा सप्तशती में कथा भाग के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण बातें भी शामिल हैं। इनमें देवी के विभिन्न रूपों का वर्णन, उनके अस्त्र-शस्त्र, उनके वाहन और उनके भक्तों के जीवन में उनके महत्व आदि शामिल हैं।

अर्थ श्लोक के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करना पाठक को श्लोकों के अर्थ को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है। यह पाठ को अधिक सार्थक बनाता है। दुर्गा सप्तशती का संक्षिप्त पाठ विधि उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो पूरे ग्रंथ का पाठ करने में असमर्थ हैं। यह उन्हें देवी की महिमा को समझने का एक त्वरित तरीका प्रदान करता है।

‘सप्तशती के पाठ विधि, मंत्र

Shri Durga Saptashati 9 : आज की कड़ी में ‘सप्तशती के पाठ विधि, मंत्र को पाठकों के लिए प्रस्तुत करने का एक प्रयास है | जगज्जननी माँ भगवती श्री दुर्गा जी की कृपा से एवं गुरु जी श्री संकर्षण शरण जी के आशीर्वचनों से वही सप्तशती संक्षिप्त पाठ-विधि सहित पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की जा रही है। इसमें कथा-भाग तथा अन्य बातें वे ही हैं,
जो श्री दुर्गा सप्तशती एवं ‘कल्याण’ के विशेषाङ्क ‘संक्षिप्त मार्कण्डेय ब्रह्मपुराणाङ्क’ में प्रकाशित हो चुकी हैं।  वही सप्तशती भाग एक के क्रम में संक्षिप्त पाठ विधि विधान सहित एवं अर्थ श्लोक सहित दुर्गा जी की महिमा को प्रति दिन दैनिक हिन्द मित्र के वेबसाइट https://dainikhindmitra.com/ पर पाठकों के लिए प्रस्तुत करने का एक प्रयास है ।

Shri Durga Saptashati 9 : श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे; साथ में शुद्ध जल, पूजन सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखे। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दे। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा ले, शिखा बाँध ले; फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिये चार बार आचमन करे।
Shri Durga Saptashati 9 :उस समय अग्राङ्कित चार मन्त्रों को क्रमशः पढ़े-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा । 
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥
Shri Durga Saptashati 9 : गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे
तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे; फिर ‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ’ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नाङ्कित रूप से संकल्प करे-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तेकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गत्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्प्तिकामः अमुकगोत्रोत्पत्रः अमुकशर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व विधपीडानिवृत्तिपूर्वक नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वा पन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं *कव कीलकपाठ* वेदतन्त्रोक्तरात्रिसूक्तपाठदेव्यथर्वशीर्षपाठन्यासविधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यास ध्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच ॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः’ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाउं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्त पाठ रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये ।
Shri Durga Saptashati 9 : देवीका ध्यान करते हुए पञ्चोपचार की  विधि से पुस्तक की पूजा करे
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवीका ध्यान करते हुए पञ्चोपचार की  विधि से पुस्तक की पूजा करे, योनि मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधार शक्ति की स्थापना कर के उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करे। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिये ।
इसके अनेक प्रकार हैं। ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’ – इस मन्त्रका आदि और अन्तमें सात बार जप करे। यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्रका जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में  इक्कीस इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है- ‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’
इसके जपके पश्चात् आदि और अन्तमें सात-सात बार मृत संजीवनी विद्या का जप करना चाहिये, जो इस प्रकार है- ‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।’ मारीच कल्प के अनुसार सप्तशती-शाप विमोचन का मन्त्र यह है— ‘ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ है क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।’
इस मन्त्रका आरम्भ में ही एक सौ आठ बार जप करना चाहिये, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गा कल्प में कहे हुए चण्डिका-शाप-विमोचन मन्त्रों का आरम्भ में ही पाठ करना चाहिये।
Shri Durga Saptashati 9 : वे मन्त्र इस प्रकार हैं –
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १ ॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ २ ॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ।। ३ ।।
ॐ भुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ४ ॥
ॐ छांछायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ५ ॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ६ ॥
ॐ तूं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ ७ ॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ८ ॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ९ ॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १० ॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ११ ॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १२ ॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १३ ॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १४ ।।
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ।। १५ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १६ ॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १७ ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादिव्यै नमः ।। १८ ।।
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर । चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादव न संशयः ॥ १९ ।।
न एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः । आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः ।। २० ।।
Shri Durga Saptashati 9 : नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करे
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका-बहिर्मातृका आदि न्यास करे, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करे, इसके बाद छः अङ्गा सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है ।
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य – ये ही सप्तशती के छः अङ्ग माने गये हैं। इनके क्रम में भी मतभेद है। चिदम्बर संहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है।
किंतु योग रत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है । उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है । जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गला रूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिये ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here