संपादकीय; कल्पना लेखिका ; । Rakshabandhan and cinema now : रक्षाबंधन का त्योहार भारतीय सिनेमा में हमेशा से एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। भाई-बहन के अटूट रिश्ते पर आधारित यह पर्व फिल्मों की कहानियों को भावनात्मक गहराई और सामाजिक प्रासंगिकता देता आया है। सिनेमा ने इस रिश्ते के हर रंग को दिखाया है—प्यार, त्याग, सुरक्षा और कभी-कभी टकराव भी।
राखी’ और ‘रक्षा-बंधन’ पर बनीं लोकप्रिय अनेक फ़िल्में
Rakshabandhan and cinema now : भारतीय सिनेमा में रक्षाबंधन को अक्सर एक ऐसे माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जो पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को दर्शाता है। ‘राखी’ और ‘रक्षा-बंधन’ पर अनेक फ़िल्में बनीं और अत्यधिक लोकप्रिय हुई, इनमें से कुछ के गीत तो मानों अमर हो गए।
बहन-भाई के स्नेह पर सबसे पुरानी और लोकप्रिय फिल्म
Rakshabandhan and cinema now : इनकी लोकप्रियता आज दशकों पश्चात् भी बनी हुई है। बहन-भाई के स्नेह पर सबसे पुरानी और लोकप्रिय फिल्मों में से एक है 1959 में बनी ‘छोटी बहन’, जिसका गीत, ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’ आज तक जनमानस गुनगुनाता है। सन 1962 की ‘राखी’ फ़िल्म के निर्माता थे -ए. भीमसिंह, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता ।
इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था – ‘राखी धागों का त्यौहार, बँधा हुआ इक-इक धागे में भाई-बहन का प्यार….’ । सन् 1971 में प्रदर्शित ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ भी भाई-बहन के प्यार पर आधारित फिल्म थी। इस फ़िल्म का गीत, ‘फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है..’ किसे याद न होगा!
घर घर में आज भी ये गीत बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है लोकप्रिय
Rakshabandhan and cinema now : इसी तरह, 1974 में प्रदर्शित धर्मेद्र की सुपरहिट फिल्म ‘रेशम की डोर’ में सुमन कल्याणपुर द्वारा गाया गया यह गाना, ‘बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाँधा है, प्यार के दो तार से संसार बाँधा है... ‘ भी लोकप्रियता की बुलंदियों को छूता हुआ आज तक गाया जाता है। चंबल की कसम’ का ‘चंदा रे मेरे भइया से कहना, बहना याद करे‘ गीत भी आज तक याद किया जाता है।
अन्य लोकप्रिय गीतों में मेरे भइया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन
Rakshabandhan and cinema now : रक्षा बंधन पर आधारित अन्य लोकप्रिय गीतों में ‘अनपढ़’ फ़िल्म का लता मंगेश्कर का गाया ‘रंग बिरंगी राखी लेकर आई बहना’ और ‘काजल’ का आशा भोंसले का गाया ‘मेरे भइया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन’ भी सम्मिलित हैं। आज भी लोग 90 के दशक से पहले के फिल्मों के रक्षाबंधन गीतों, जैसे ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, के जरिए ही इस त्योहार को मनाते हैं और अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
यह दर्शाता है कि आधुनिक सिनेमा भले ही दर्शकों को भव्यता दे रहा हो, लेकिन रिश्तों की कोमलता और भावनात्मक गहराई को दर्शाने में कहीं न कहीं पीछे छूट रहा है।
Rakshabandhan and cinema now : समय के साथ सिनेमा में रक्षाबंधन के चित्रण में भी बदलाव
समय के साथ सिनेमा में रक्षाबंधन के चित्रण में भी बदलाव आया। शुरुआती दौर में जहाँ बहनें कमजोर और भाई शक्ति शाली रक्षक के रूप में दिखाए जाते थे, वहीं आधुनिक फिल्मों में यह रिश्ता अधिक बराबरी का हो गया है। आज की फिल्मों में बहन भी अपने भाई की ढाल बनती है, और दोनों मिलकर हर मुश्किल का सामना करते हैं।
Rakshabandhan and cinema now : भारतीय सिनेमा में रक्षाबंधन का सफर जो समाज और सिनेमा दोनों को जोड़ता है
फिल्मों ने रक्षाबंधन को सिर्फ एक पारिवारिक बंधन नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में भी दिखाया है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति का एक ऐसा हिस्सा है, जिसे सिनेमा ने बार-बार सम्मान दिया है। ‘हम साथ-साथ हैं’ जैसी फिल्मों ने इस त्योहार को एक बड़े परिवार के जश्न के तौर पर दिखाया, जबकि खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार फिल्म का ‘रक्षाबंधन’ (2022) जैसी नई फिल्मों ने दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ इस रिश्ते की ताकत को उजागर किया।
भारतीय सिनेमा में रक्षाबंधन का सफर इस बात का सबूत है कि यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक ऐसा भावनात्मक धागा है जो समाज और सिनेमा दोनों को जोड़ता है।
बदलते दौर का सिनेमा और रक्षाबंधन: भव्यता के बीच रिश्तों की कमी
Rakshabandhan and cinema now : भारतीय सिनेमा में समय के साथ कहानियों और प्रस्तुति का स्वरूप बदला है। 2015 में एस.एस. राजामौली की फिल्म ‘बाहुबली’ ने ‘भव्य सिनेमा’ के एक नए युग की शुरुआत की, जिसे ‘केजीएफ’, ‘आरआरआर’ और ‘पुष्पा’ जैसी फिल्मों ने आगे बढ़ाया। इस दौर में पौराणिक और एक्शन से भरपूर कहानियों को आधुनिक तकनीक के साथ भव्यता से पर्दे पर उतारा जा रहा है।
हालांकि, इस भव्यता की दौड़ में सिनेमा के मेकर्स ने पारिवारिक और सामाजिक विषयों को हाशिए पर रख दिया है। रक्षाबंधन जैसा भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित महत्वपूर्ण त्योहार आज भी उसी उत्साह से मनाया जाता है, लेकिन अब रुपहले पर्दे पर इस रिश्ते की गहराई को दिखाने वाले सुरीले गीत कम ही देखने को मिलते हैं।
Rakshabandhan and cinema now : क्या अमर गीतों का दौर वापस आ सकता
यह भी सच है कि एक अमर गीत किसी भी दौर में रचा जा सकता है। अगर कोई फिल्म निर्माता ईमानदारी और भावुकता के साथ भाई-बहन के रिश्ते को पर्दे पर उतारने का साहस करे और उसे एक बेहतरीन संगीतकार और गीतकार का साथ मिले, तो ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’ जैसा अमर गीत आज भी बन सकता है।
संक्षेप में, यह कहना मुश्किल है कि ऐसा होगा या नहीं, लेकिन अगर ‘भव्य सिनेमा’ के इस दौर में निर्माता कहानी के भावनात्मक पक्ष को तरजीह दें, तो भाई-बहन के अमर प्यार और उस पर अमर गीतों का दौर वापस आ सकता है।
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आप क्या सोचते हैं, क्या दर्शक आज भी ऐसी फिल्मों का इंतजार कर रहे हैं?
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