धर्म,तीज-त्यौहार, 24 अगस्त । pola festival kisan dharmic prakritik parv now : भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व का कोई न कोई धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक आधार होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है पोला अमावस्या, जो विशेषकर किसानों और बच्चों के लिए अत्यंत महत्व रखता है। हर प्रदेश में अपनी परंपराएँ, मान्यताएँ और रीति-रिवाज़ होते हैं। इन्हीं में से एक है पोला का पर्व, जो विशेष रूप से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड और ओडिशा के ग्रामीण अंचलों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
पोला किसानों का पर्व
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : पोला पर्व किसानों के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। किसान इस दिन अपने बैल, जो खेती के सबसे बड़े सहायक होते हैं, उनकी पूजा करते हैं। बैलों को स्नान कराकर सजाया जाता है, उनके सींगों पर रंग लगाया जाता है और उन्हें विशेष भोजन खिलाया जाता है। यह परंपरा किसान और बैल के बीच के गहरे रिश्ते और कृषि संस्कृति के महत्व को दर्शाती है।
पोला की पौराणिक कथा
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्यौहार की पृष्ठभूमि में कोई न कोई पौराणिक कथा जुड़ी होती है। ऐसी ही कथा पोला अमावस्या से भी संबंधित है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण छोटे थे और गोकुल में नंद-यशोदा के यहाँ बाल्यकाल व्यतीत कर रहे थे, तब मथुरा का राजा कंस उन्हें मारने के लिए बार-बार असुरों को भेजता था। एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को गोकुल भेजा।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : पोलासुर अत्यंत शक्तिशाली और दैत्यस्वरूप था। उसका उद्देश्य बालकृष्ण को हानि पहुँचाना था, किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अद्भुत बाललीला से उसका वध कर दिया। गोकुलवासियों ने यह चमत्कार देखा तो वे अचंभित रह गए और कृष्ण की दिव्य शक्ति को नमन किया।
यह घटना भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि को हुई थी। तभी से इस दिन को पोला अमावस्या के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं और बच्चे लकड़ी के नंदी-बैल से खेलते हैं। कथा इस बात का प्रतीक है कि धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर हमेशा भक्तों के साथ रहते हैं।
देवी पोलेरम्मा की पूजा
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : भारत के दक्षिणी भागों में पोला अमावस्या पर देवी पोलेरम्मा की पूजा का विशेष महत्व है। उन्हें बच्चों की संरक्षक और रक्षक माना जाता है। परंपरा के अनुसार परिवारजन देवी के चरणों में फूल, नारियल और प्रसाद अर्पित करते हैं तथा अपने बच्चों की सुख-समृद्धि, दीर्घायु और सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि देवी की कृपा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और बच्चे हर प्रकार की बाधाओं से सुरक्षित रहते हैं। इस प्रकार यह पर्व आस्था, पारिवारिक स्नेह और परंपरा का सुंदर प्रतीक है।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : बच्चों और परिवार की परंपराएँ
कई स्थानों पर बच्चे इन खिलौनों के साथ बैल दौड़ (नंदी-बैल दौड़) भी आयोजित करते हैं, जिससे उनके खेल में उत्साह और आनंद दोनों बढ़ते हैं। यह परंपरा न केवल बच्चों को त्योहार से जोड़ती है, बल्कि उन्हें कृषि संस्कृति और बैल जैसे उपयोगी पशुओं के महत्व का भी अनुभव कराती है।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : पोला पर्व का पारंपरिक व्यंजन
पोला पर्व के दौरान घरों में इस अवसर पर पारंपरिक व्यंजन बनाया जाता है छत्तीसगढ़ में डेडरी, खुरमी,चौसेला,बबरा और गुगुला भजिया ( गुड़ का भजिया ),महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में पुरण पोळी, खीर ,शिरा/सांजा, लड्डू और अन्य मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
झारखंड में पोला पर्व के दौरान अरसा रोटी, मालपुआ, और ढुस्का जैसे मीठे एवं नमकीन व्यंजन परंपरागत रूप से बनाए जाते हैं। वहीं, ओडिशा में पखाळ भात, दालमा, छेना पोडा, और रसभाली जैसे व्यंजन त्योहार की समृद्धता और सांस्कृतिक स्वाद को उजागर करते हैं। परिवार जन एक साथ बैठकर भोजन करते हैं और दिन को उल्लासपूर्वक बिताते हैं।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : भारत में पोला त्यौहार और उसका स्वरूप
भारत में पोला त्यौहार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखंड और ओडिशा के ग्रामीण अंचलों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व किसानों और कृषि जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में इसे किसानों का प्रमुख पर्व माना जाता है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराकर सजाते हैं, उनके सींगों पर रंग लगाते हैं और विशेष भोजन खिलाते हैं। गांवों में सामूहिक पूजा और मेलों का आयोजन होता है।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : महाराष्ट्र में इसे “बैल पोला” कहा जाता है। यहां बैलों को हल, रस्सी और सजावटी सामान से सजाया जाता है और पारंपरिक ढोल-नगाड़ों के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। बच्चे लकड़ी के नंदी-बैल से खेलते हैं और घरों में पुरण पोली जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं।
झारखंड और ओडिशा में भी किसान बैलों की पूजा करते हैं। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इस दिन देवी पोलेरम्मा की पूजा का विशेष महत्व है, जिन्हें बच्चों की रक्षक माना जाता है।
कुल मिलाकर, पोला तिहार अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल संदेश एक ही है कृषि संस्कृति का सम्मान, पशु-मानव संबंध की कृतज्ञता और परिवार व समाज में सामूहिक आनंद का प्रसार ।
pola festival kisan dharmic prakritik parv now : सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
पोला अमावस्या केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। इस दिन गांव और परिवारों में एकजुटता, सहयोग और उत्सव का वातावरण होता है।
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