किसी समय असली हस्तकरघा का केंद्र रहा ‘कश्मीर हाट’ अब बुरे दौर से गुजर रहा

hat bajar
Once upon a time the center of real handloom 'Kashmir Haat' is now going through bad times

एम आई जहांगीर ,श्रीनगर (भाषा) | हस्तकरघा से जुड़े लोगों को विपणन मंच प्रदान करने के लिए करीब छह दशक पहले यहां बनाया गया कश्मीर हाट आज बहुत खराब दशा में है तथा ज्यादातर दुकानदार ग्राहकों की कमी होने की बात कहते हैं।

दुकानदारों का दावा है कि भले ही पिछले साल सबसे अधिक पर्यटक कश्मीर आये हों लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला क्योंकि कश्मीर हाट को पर्यटन सर्किट पर सरकार द्वारा बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है जैसा कि आतंकवाद के सिर उठाने से पहले किया जाता था।

कश्मीर हाट में ‘गवर्नमेंट सेंट्रल मार्केट’ के अध्यक्ष निसार अहमद किताब ने कहा, ‘‘इस बाजार को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हस्तकरघा शिल्पकारों और इससे जुड़े लोगों को एक मंच प्रदान करने के लिए स्थापित किया था। देशभर से पर्यटक यहां पहुंचते थे क्योंकि उन्हें किसी ठगी के भय के बिना एक दाम पर असली हस्तनिर्मित उत्पाद मिल जाते थे। ’’

किताब ने कहा कि सरकार इश्तहारों के जरिए इस बाजार का सहयोग करती थी जिससे अच्छी खासी संख्या में पर्यटक यहां आते थे। उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन आतंकवाद के सिर उठाने से इस बाजार पर बहुत बुरा असर पड़ा। हमारी आजीविका पर भी मार पड़ी क्योंकि पर्यटकों ने कश्मीर आना बंद कर दिया। ज्यादातर दुकानदार यहां से चले गये और उन्होंने घाटी के बाहर अपनी दुकानें खोल ली।’’

उन्होंने कहा कि 1999 में पर्यटकों की वापसी के साथ दुकानें फिर खुलीं लेकिन तब वह सहयोग गायब था।

किताब ने कहा, ‘‘ सरकार इस बाजार पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। पिछले साल कश्मीर में बड़ी संख्या में पर्यटक आये लेकिन उससे हमें तनिक भी फायदा नहीं हुआ। अब हमने हस्तकरघा विभाग से इस बाजार को पर्यटन मानचित्र में शामिल करने का अनुरोध किया है जिससे पर्यटन यहां (इस बाजार में) आ सकें।’’

दुकानदार नाजिर हुसैन इस बाजार के पुराने अच्छे दिनों को याद करते हैं जब आधी रात तक यहां चहल-पहल रहा करती थी।

उन्होंने कहा, ‘‘ यह बाजार सुबह आठ बजे खुल जाया करता था और रात दस से आधीरात रात तक खुला रहता था। यह बाजार हस्तकरघा उद्योग का मेरुदंड था।’’

हुसैन ने कहा कि यह बाजार कश्मीरी हस्तनिर्मित उत्पादों के लिए प्रसिद्ध था। उन्होंने कहा, ‘‘ हम शॉल, पेपर मैशी, ज्वैलरी, नामदा, कालीन आदि एक दाम पर बेचते थे। कश्मीर हाट का ‘गार्डन’ मुगल गार्डन से अधिक प्रसिद्ध था लेकिन अब यह बर्बाद हो गया। अब यहां केवल अवारा कुत्ते नजर आ सकते हैं।’’

भाषा राजकुमार अमित

अमित

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