अनदाई सरजे – अन्‍न की देवी का गाँव

 भोपाल | Now Goddess Of Food In A : पौष्टिकता और स्वाद से भरपूर बालाघाट, सिवनी और डिण्डौरी जिले के आदिवासियों के नायाब खाने का लुत्फ अब देश-दुनिया के लोग भी उठा सकेंगे। महिला-बाल विकास विभाग ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के साथ इन अछूते स्वादों को न केवल लोगों तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया है, बल्कि इससे आदिवासियों की व्यंजन-कला को पहचान, आमदनी का नया साधन और भोजन-प्रेमियों को पौष्टिकता के साथ एक नया स्वाद मिलेगा।

भोपाल हुनर हाट में ‘अनदाई सरजे’ अभियान का शुभारंभ

Now Goddess Of Food In A : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को भोपाल हाट में आयोजित हुनर हाट में ‘अनदाई सरजे’ अभियान का शुभारंभ करते हुए कोदो-कुटकी से बने कटलेट, डोसा, इडली, खिचड़ी, खीर, मूस आदि का स्वाद लिया था। मुख्यमंत्री चौहान, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह और संस्कृति मंत्री सुउषा ठाकुर ने हर कौर के साथ व्यंजनों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। अब यह व्यंजन बड़े-बड़े होटलों में भी मिलने लगेंगे।

जंगल से मिलने वाली इस उपज

Now Goddess Of Food In A : उल्लेखनीय है कि डिण्डौरी, मण्डला और बालाघाट, तीनों जिलों के हर प्रखण्ड में अलग-अलग प्रकार की खेती होती है या लघु वनोपजों का संग्रहण किया जाता है। खेती तथा जंगल से मिलने वाली इस उपज को स्थानीय बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलती। आदिवासियों और किसानों को वाज़िब लाभ दिलाने के लिये ‘अनदाई सरजे” अभियान शुरू किया गया है। गोंडी भाषा में इसका मतलब है अनदाई यानी अन्न की देवी, सरजे यानी गाँव !

आकर्षक पैकेज में अनदाई ब्रॉण्ड

Now Goddess Of Food In A : इस अभियान में उत्पाद को उस ब्लॉक की पहचान बनाया जायेगा। प्र-संस्करण इकाई स्थापित कर क्लीनिंग, ग्रेडिंग, सार्टिंग करने के बाद आकर्षक पैकेज में अनदाई ब्रॉण्ड के नाम से स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुँचाया जायेगा। इससे 2 साल में अप्रत्यक्ष रूप से लगभग एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। अच्छी पैकेजिंग तथा स्थानीय भाषा का ब्रॉण्ड नेम होने पर लोग मध्यप्रदेश के साथ संबंधित ब्लॉक और आदिवासियों को भी जानेंगे।

Now Goddess Of Food In A : डिण्डौरी – चेतना महिला संघ

डिण्डौरी जिले के डिण्डौरी ब्लॉक में चिरोंजी, शाहपुरा ब्लॉक में रामतिल, मेहंद्वानी में कोदो-कुटकी, बजाग में त्रिफला और करंजिया में अर्जुन की छाल बहुतायत से होती है।

आमतौर पर सूखे मेवों में शामिल पोषक तत्वों से भरपूर चिरोंजी का मिठाई बनाने में भरपूर उपयोग होता है। चेतना महिला संघ रायपुरा की 1500 महिलाएँ चिरोंजी के बीज जंगल से एकत्र करने, तोड़ने तथा बेचने का काम करती हैं। मशीन लग जाने से अच्छी पैकेजिंग हो सकेगी, जो इन महिलाओं को बाजार में अच्छा मुनाफा दिलायेगी। इस उत्पाद को स्थानीय और देश के अन्य बाजारों को पहुँचाने की व्यवस्था की जा रही है।

Now Goddess Of Food In A : बी.पी. और शुगर में कोदो है अत्यंत लाभकारी

डिण्डौरी जिले की जलवायु और पथरीली जमीन के कारण यहाँ कोदो की फसल खूब होती है। कोदो भारत का प्राचीन अन्न है, जिसे ऋषि अन्न माना जाता था। कोदो बहुत ही गुणी मोटा अनाज (मिलेट) है, जो लम्बे समय तक खराब नहीं होता। इसे मण्डला के लोग चावल की तरह उपयोग करते हैं। कोदो के दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा तथा प्रचुर मात्रा में फाइबर होते हैं। कोदो ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, गुर्दे और मूत्राशय की बीमारी में बहुत लाभदायक है। इसमें चावल से 12 गुना अधिक कैल्शियम होने के साथ यह शरीर में आयरन की कमी को भी दूर करता है।

अनदाई सरजे अभियान में मेहंद्वानी (डिण्डौरी), बिछिया (मण्डला) और बिरसा (बालाघाट) की महिला समूहों को कोदो प्र-संस्करण के लिये डी हस्किंग, डी हालिंग और पैकेजिंग के लिये मशीन उपलब्ध करायी गयी है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने की व्यवस्था की जा रही है, जिसका सीधा लाभ आदिवासी महिलाओं को मिलेगा।

Now Goddess Of Food In A : कुटकी-उच्चतम पाचन

कुटकी चावल कोदो से आकार में छोटा होता है। इसमें 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 8.3 प्रतिशत प्रोटीन और 1.4 प्रतिशत वसा तथा चावल के मुकाबले 12 गुना अधिक कैल्शियम होता है। पौष्टिक तत्व और चावल जैसा स्वाद होने से मधुमेह के चावल प्रेमी रोगी भी इसे खा सकते हैं। शरीर में लौह तत्व की कमी को पूरा करने वाले कुटकी में लगभग 38 प्रतिशत पाचन क्रिया होती है, जिसे पौष्टिक औषधि पदार्थों और अन्य अनाजों से उच्चतम माना गया है।

इससे कई प्रकार के स्नेक्स और शिशु खाद्य पदार्थ इत्यादि बनाये जा सकते हैं। मण्डला जिले में इनकी खेती बैगा और गोंड समुदाय द्वारा पहाड़ों की ढलान पर की जाती है। बिछिया विकासखण्ड में महिला समूहों द्वारा कुटकी की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। बिरसा (बालाघाट) में भी कुटकी प्र-संस्करण की व्यवस्था की जा रही है। ‘अनदाई सरजे’ अभियान में कुटकी की खेती से जुड़ी महिलाओं को भी बड़ा बाजार मिलेगा।

Now Goddess Of Food In A : अर्जुन की छाल

डिण्डौरी जिले के ही करंजिया ब्लॉक में अर्जुन का पेड़ बहुतायत से पाया जाता है। अर्जुन की छाल और रस का औषधि के रूप में प्रयोग होता है। अर्जुन की छाल ह्रदय, क्षय, टी.बी., सामान्य कान दर्द, सूजन, बुखार आदि को ठीक करने के काम आती है। औषधीय तत्वों के कारण पिछले कुछ सालों से दवा बनाने वाली कम्पनियों में इसकी माँग तेजी से बढ़ी है। अभी आदिवासी इसे स्थानीय बाजार में बहुत कम दरों पर व्यापारियों को बेच रहे हैं, जो 3 से 5 गुना अधिक दाम पर बेचते हैं। अनदाई सरजे अभियान में अर्जुन की छाल साफ कर पैकेजिंग के बाद खुदरा या थोक भाव में कम्पनियों को सीधे बेचने की योजना है।

आँवला

Now Goddess Of Food In A : समनापुर ब्लॉक में आँवला बहुतायत से होता है और आदिवासी इसे बहुत ही कम कीमत पर स्थानीय बाजार में बेच देते हैं। आयुर्वेद में आँवले को अमृत फल या धात्री फल कहा जाता है। वैदिक काल से ही आँवले का प्रयोग औषधि के रूप में किया जा रहा है। आज मुरब्बा, जूस, पावडर, अचार कैण्डी आदि रूपों में आँवले का प्रचलन काफी बढ़ गया है। आँवले में प्रचुर मात्रा में विटामिन-सी, खनिज और पोषक तत्व होते हैं। समनापुर में इसकी प्र-संस्करण इकाई स्थापित कर पौष्टिक खाद्य पदार्थ बनाये जायेंगे। महिला स्व-सहायता समूहों को माइक्रो प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिये सहायता और प्रशिक्षण दिया जायेगा।

रामतिल

शाहपुरा ब्लॉक में पारम्परिक फसल के रूप में आदिवासी किसान राई रामतिल की फसल उगाते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले रामतिल बीज में 17 से 30 प्रतिशत प्रोटीन, 34 से 39 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 9 से 13 प्रतिशत फाइबर होता है। रामतिल तेल विटामिन के, केरोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड, इनेलो एसिड से युक्त है। यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को संतुलित रखते हुए ह्रदय रोगों से बचाता है। वर्तमान में रामतिल का तेल कुछ ही लोग निकाल रहे हैं और उसकी गुणवत्ता भी विश्वसनीय नहीं है। औषधीय कम्पनियों में इसकी बढ़ती माँग को देखते हुए सरजे अभियान में शाहपुरा ब्लॉक में रामतिल तेल निकालने की मशीन लगायी गयी है। आकर्षक पैकेजिंग के बाद इसे उच्च-स्तरीय बाजार में बेचा जायेगा।

त्रिफला

Now Goddess Of Food In A : डिण्डौरी जिले के बजाग ब्लॉक में त्रिफला- आँवला, बहेड़ा और हरड़ बहुतायत से पाया जाता है। संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले लोगों को ह्रदय, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्र, पेट के रोग और मोटापा होने की संभावना नहीं होती। त्रिफला 20 प्रकार के प्रमेह, कुष्ठ रोग, विषम ज्वर और सूजन को नष्ट करने के साथ हड्डी, बाल, दाँत और पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है। त्रिफला प्र-संस्करण के लिये महिला समूहों को पैकेजिंग मशीन प्रदान कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने की व्यवस्था की जायेगी।

चावल

मण्डला जिले में उगाया जाने वाला चावल देश के अन्य चावलों से भिन्न है। इसकी फसल 90 दिन में पक जाती है। यह छोटा बारीक, सींकुर रहित धारियों के साथ हल्के लाल रंग का सुगंधित चावल है। दूसरे अनाजों की अपेक्षा इसमें आर्सेनिक की मात्रा अधिक होती है। मण्डला जिले के मोहगाँव में भी चावल प्र-संस्करण इकाइयाँ लगायी जायेंगी।

काला गुड़

मण्डला का गुड़ काले गुड़ के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें विटामिन-ए, बी, सुक्रोज, ग्लूकोज, आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जस्ता और मैग्नीशियम पाया जाता है। यह गुड़ त्वचा के लिये प्राकृतिक क्लिंजर का काम करने के साथ शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है। प्रचुर मात्रा में आयरन होने के कारण खून की कमी दूर होती है। भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ खाने से पाचन में सुधार होता है। अभी किसान केवल स्थानीय बाजार में ही कम दामों पर गुड़ बेच रहे हैं। यह आर्गेनिक गुड़ स्वास्थ्यवर्धक होने के बावजूद देश के दूसरे बाजारों तक नहीं पहुँच पाता है, जिसका लाभ अब इसे मिलेगा।

अलसी

Now Goddess Of Food In A : तीसी के नाम से भी जाने वाली अलसी श्वांस, गला, कफ, पाचन तंत्र, घाव, कुष्ठ रोगों आदि में फायदा करती है। अलसी में ओमेगा-3, फैटी एसिड, मैग्नीशियम और विटामिन-बी पाया जाता है, जो दिमाग के लिये काफी फायदेमंद है। अलसी का तेल औषधि के रूप में इस्तेमाल होता है। पिछले एक दशक में विश्व के औषधि बाजार में अलसी की माँग बहुत बढ़ी है।

मण्डला जिले की अलसी सर्वश्रेष्ठ होने के बावजूद आदिवासी किसान बहुत कम दामों में इसे बेच देते हैं। वहीं शहरों में यह काफी महँगे दामों पर मिलती है। अनदाई सरजे अभियान में किसानों को देश-विदेश के बाजार से अच्छा मूल्य मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। बालाघाट के बैहर और लांजी ब्लॉक में आदिवासी किसानों और स्व-सहायता समूहों को अलसी के मूल्य संवर्धन के लिये प्रशिक्षण तथा प्र-संस्करण इकाई स्थापित करने में सहायता दी जायेगी।

 शहद

जरूरी पोषक तत्वों, खनिजों और विटामिन का भण्डार होने के कारण पूरी दुनिया में शहद की माँग और खपत कई गुना बढ़ गयी है। मण्डला जिले में शहद प्राकृतिक एवं पारम्परिक रूप से ही आदिवासियों द्वारा एकत्रित किया जाता है। इसकी गुणवत्ता बाजार में मिल रहे अन्य शहद से काफी बेहतर है। अनदाई सरजे में मण्डला जिले के नैनपुर ब्लॉक में शहद प्र-संस्करण और पैकेजिंग मशीनों की स्थापना कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने की व्यवस्था की जायेगी।

हल्दी

Now Goddess Of Food In A : मध्यप्रदेश का बालाघाट जिला हल्दी उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है। दुनिया-भर में भारत की हल्दी की माँग तेजी से बढ़ रही है। यहाँ के आदिवासी किसानों को हल्दी का अच्छा बाजार और बड़ा मुनाफा मिले, इसके लिये प्र-संस्करण इकाई, पैकेजिंग और वेण्डिंग की सुविधा बालाघाट, कटंगी और खैरलांजी विकासखण्ड में उपलब्ध करायी जायेगी। आदिवासी किसानों, स्व-सहायता समूहों के सदस्यों को हल्दी के मूल्य संवर्धन के लिये प्रशिक्षण भी दिया जायेगा।

अदरक

बालाघाट जिले में अदरक बड़े स्तर पर होता है। कोरोना महामारी के दौरान अदरक की माँग भारत ही नहीं, पूरे विश्व में बढ़ी है। आदिवासियों को देश और विदेश में इसका अच्छा मूल्य दिलाने के उद्देश्य से वारासिवनी ब्लॉक में प्रशिक्षण देने के साथ प्र-संस्करण इकाई स्थापित की जायेगी।

Now Goddess Of Food In A : लाल मिर्च

भारत लाल मिर्च का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। बालाघाट के आदिवासी किसान अभी भी मिर्च की खेती में रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग नहीं या न के बराबर करते हैं। इससे इसकी प्राकृतिक गुणवत्ता बरकरार रहती है। अगर आदिवासी किसानों द्वारा उत्पादित लाल मिर्च मध्यप्रदेश की मण्डियों तक सीधे बेचने की व्यवस्था हो जाये, तो उनकी आय में काफी बढ़ोत्तरी होगी। अनदाई सरजे अभियान में बालाघाट जिले के परसवाड़ा में प्रशिक्षण केन्द्र और प्र-संस्करण इकाई स्थापित की जायेगी। इससे देश-विदेश में आदिवासियों की मिर्च पहुँचने से इन्हें अच्छा दाम मिलेगा।

चना

बालाघाट के किरनापुर में चने का उत्पादन होता है। देश के हर प्रांत में लोग किसी न किसी रूप में चने का सेवन करते हैं। चना खाने से ऊर्जा मिलने के साथ वजन, कोलेस्ट्राल, डायबिटीज, सिर दर्द, खाँसी और उल्टी जैसी बीमारियों में फायदा होता है। कच्चा चना ठंडा, वातकारक, मल रोकने वाला, जलन, प्यास, अश्मरी या पथरी में फायदेमंद होता है। वहीं काला चना शीत, बलकारक रसायन, श्वांस, पित्तातिसारनाशक होता है।

चने का साग और भुने चने भी औषधीय गुणों से युक्त हैं। अनदाई सरजे के माध्यम से किरनापुर के आदिवासी किसानों के लिये प्र-संस्करण इकाई स्थापित करने के साथ ही उनके लिये देश-विदेश के बाजारों तक विक्रय की व्यवस्था भी की जायेगी।


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