प्राचीन काल में पक्षी के पंख या किसी पौधे के पतली डंढल के एक छोर को बारीक़ बर्श का आकर देकर का लेखनी बनाया जाता था .आज हम लिखने के लिए पेन का इस्तेमाल करते हैं. जब लिखने की शुरूवात में कोयले,या स्याह रंग का उपयोग किया गया बाद में धीरे धीरे पेंसिल का आविस्कार हुआ.
पहले के जमाने के में या बहुत समय पहले जानवरों के पूंछ के बाल के ब्रश बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे .लगभग 1564 में इंग्लैंड में एक बहुत बड़ा और भयानक तूफान आया था जिसके कारण वहां पर बहुत से पेड़ उखड़ गए और उसके में बहुत बड़ा पेड़ भी गिर गया था और वहां पर जब तूफान के बाद बकरियों के चरवाहे आए तो उस चरवाहे ने देखा कि इस पेड़ की जड़ों को बहुत सारा काला पदार्थ लगा हुआ है. सबसे पहले तो उसने उस काले पदार्थ को कोयला सोचा था.
साइंटिस्ट निकोलस-जाक कोंटे को इसका कोई सुझाव ढूंढने को कहा कुछ दिनों की खोज और छानबीन के बाद निकोलस ने 1 दिन पानी के अंदर चिकनी मिट्टी और ग्रेफाइट को मिलाया और उसका एक मिश्रण बनाया और उस मिश्रण को सूखने के लिए धूप के अंदर रख दिया अगर यह मिश्रण सूख जाता तो इसको फिर भठ्टी के अंदर जलाते इसी समय पर निकोलस ने एक और यह चीज देखी चिकनी मिट्टी को कम ज्यादा करने पर पेंसिल से लिखने में कुछ फर्क आ रहा है. और वहां से H और HB जैसे पेंसिल को बनाने की शुरुआत की गई और वहां से पेंसिल शुरू हुआ.1795 में इस आविष्कार का पेटेंट निकोलस-जाक कोंटे को मिला.