नरक चतुर्दशी: पापमुक्ति और प्रकाश का पर्व, देखें महत्व, कथा और पूजा विधि

Narak Chaturdashi
Narak Chaturdashi

अध्यात्म : Narak Chaturdashi : भारतीय संस्कृति में दीपावली पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है, जिनमें प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है। दीपावली से एक दिन पहले आने वाली *नरक चतुर्दशी* या *रूप चौदस* को इस पर्व का दूसरा दिन कहा जाता है।

इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस के वध की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन स्नान, दीपदान और पवित्रता के साथ पूजा करने से नरक से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

Narak Chaturdashi : नरक चतुर्दशी का महत्व

नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर तेल स्नान करने, दीपदान करने और भगवान श्रीकृष्ण, यमराज तथा भगवान धनवंतरी की पूजा करने से व्यक्ति को दीर्घायु, आरोग्य और पापों से मुक्ति मिलती है।

कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके दीप जलाता है, वह नरक के भय से मुक्त रहता है और उसके जीवन में प्रकाश, आनंद और सौभाग्य बना रहता है। इस दिन का एक अन्य नाम *यम दीपदान* भी है, क्योंकि इस दिन शाम को घर के बाहर यमराज के लिए दीप जलाया जाता है, जिससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा

Narak Chaturdashi : पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि त्रेता युग में नरकासुर नामक एक अत्यंत पराक्रमी और अहंकारी दैत्य था। वह पृथ्वी और स्वर्ग दोनों लोकों में आतंक फैलाता था।

उसने अनेक देवताओं, ऋषियों और अप्सराओं को बंदी बना रखा था और सोलह हजार कन्याओं को भी अपने अधीन कर लिया था। उसके अत्याचारों से पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर उठी।

भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी अत्याचारों से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। माता सत्यभामा के सहयोग से उन्होंने नरकासुर का वध किया। यह युद्ध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ। जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया, तब सभी देवताओं और बंदी बनी कन्याओं ने भगवान की स्तुति की। उस दिन से यह दिन नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा।

Narak Chaturdashi : कथानुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण युद्ध से लौटे, तब उनके शरीर पर तेल और मिट्टी लगी हुई थी। उन्होंने स्नान किया, जिससे वे पुनः स्वच्छ और तेजस्वी दिखने लगे। इसी घटना के कारण इस दिन तेल स्नान का विशेष महत्व माना गया है।

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि

नरक चतुर्दशी की पूजा प्रातःकाल से ही आरंभ हो जाती है। इस दिन निम्न प्रकार से पूजा की जाती है:

1. ब्राह्म मुहूर्त में उठें: सुबह सूर्योदय से पहले उठना शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस समय स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों पवित्र होते हैं।

2. तेल स्नान का विधान: शरीर पर तिल या सरसों का तेल लगाकर स्नान करना शुभ माना जाता है। यह कर्म पाप निवारण का प्रतीक है।

3. दीपदान करें: स्नान के बाद भगवान विष्णु और यमराज के नाम से दीपक जलाया जाता है। यमराज के लिए दीप दक्षिण दिशा में जलाया जाता है, जिसे यमदीप कहा जाता है। इससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।

4. भगवान श्रीकृष्ण की पूजा: स्नान और दीपदान के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण, माता सत्यभामा और भगवान यमराज की पूजा की जाती है। फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी दल से पूजा संपन्न की जाती है।

5. संध्या दीपदान: शाम के समय घर के हर कोने में दीपक जलाने की परंपरा है। इस दीपदान से घर में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सौभाग्य का आगमन होता है। Narak Chaturdashi

आधुनिक संदर्भ में नरक चतुर्दशी

Narak Chaturdashi : आज के समय में भी नरक चतुर्दशी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बरकरार है। लोग इस दिन अपने घरों की सफाई करते हैं, सुंदर दीप सजाते हैं, और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। यह दिन आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की अशुद्धियों को दूर करने का प्रतीक है।

नरक चतुर्दशी हमें यह सिखाती है कि जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर के अहंकार और अत्याचार का अंत किया, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के अहंकार, क्रोध और लोभ जैसे दोषों का नाश कर सच्चे प्रकाश — यानी सदाचार, भक्ति और करुणा — को अपनाना चाहिए। Narak Chaturdashi

Narak Chaturdashi : नरक चतुर्दशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और सदाचार का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, यदि हम सत्य और धर्म का मार्ग अपनाएं, तो प्रकाश अवश्य मिलेगा।

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से यह दिन हमारे जीवन से नकारात्मकता, भय और दुख को दूर कर आनंद और समृद्धि का दीप जलाता है।

Read More :  छत्तीसगढ़ ने एक बार फिर राष्ट्रीय पटल पर बनाई अपनी पहचान