महाभारत के सब पात्र हमारे अंदर ही – परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण

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mahabharat patra
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रायपुर; 5 अक्टूबर । mahabharat patra : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित सरस्वती शिक्षा मंदिर, छत्तीसगढ़ नगर में जारी गीता ज्ञान अमृत वर्षा कथा के पहले दिन रविवार को परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी), प्रयागराज वाले ने अपने श्रीमुख से दिव्य प्रवचन दिया । व्यासपीठ की पूजा अर्चना करने के बाद कथा की शुरुआत करते हुए गुरुजी ने कहा कि गीता सबसे सरल ग्रंथ है, और जो इसे अपनाता है उसका जीवन भी सरल हो जाता है।

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गीता सबसे सरल, मनुष्य उसे जटिल बना देता है 

mahabharat patra : उन्होंने कहा कि गीता को समझने वाला व्यक्ति प्रेम, आनंद और शांति में डूब जाता है, किंतु मनुष्य इसे सरल समझा ही नहीं क्योंकि मनुष्य जटिल होते हैं, इसलिए उसे गीता भी कठिन लगती है।

गुरुजी ने आगे कहा कि धर्म के क्षेत्र में संघर्ष सदैव से चला आ रहा है। अधर्मी हमारे बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही विद्यमान हैं। उन्होंने समझाया कि हमारा अपना शरीर ही कुरुक्षेत्र है, हमारे मन में ही तरह-तरह के विचार उठते हैं, और यही धर्म-अधर्म की वास्तविक लड़ाई है। गुरुजी ने कहा कि धर्म और अधर्म, सद्गुण और दुर्गुण के बीच संघर्ष मनुष्य के भीतर और बाहर दोनों ओर चलता रहता है, लेकिन अंत में सद्गुण की ही विजय होती है।

mahabharat patra : महाभारत के विभिन्न पात्रों के बारे में वर्णन करते हुए गुरुजी ने बताएं की यह सब हमारे अंदर भी है ।

धृतराष्ट्र ..जो लोभ ,मोह, ईर्ष्या क्रोध अहंकार ,वासना की समस्त आंखों से देख रहा है सिर्फ भगवान का दिया हुआ आंख से अंधा है वह धृतराष्ट्र है वह अपने साथ सबके जीवन में महाभारत ही करा देता है सब कुछ अपने अंदर ही देखने की आवश्यकता है उसे शुद्ध कर की आवश्यकता है जीवन सरल और आनंददायक हो जाएगा।

भीष्म .. जिनका भ्रम समाप्त नहीं हुआ वह गलत ही करेगा । अंदर की भ्रम को भी हम चाहेंगे तभी मारेगा क्योंकि उसे इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ है हमें हमारे भ्रम को स्वयं समाप्त करना पड़ता है ।

युधिष्ठिर.. समस्त संघर्ष में स्थिर होना ,संतुलन में होना। सुख-दुख, लाभ -हानि , मान -अपमान सब में संतुलित होना ।

भीम ..भीम अर्थात भाव । हमारे हृदय का भाव भीम की तरह विशाल ही होना चाहिए । भाव से ही भगवान प्रकट होते हैं भाव से ही प्रेम और भगवान मिलता है ।

अर्जुन.. अर्जुन को प्रेम का प्रतीक बताया गया ,प्रेम से सबको जीता जा सकता है हमेशा प्रेम की जीत होती है नफरत की नहीं । प्रेम अर्थात् परमात्मा जो प्रेम की अनंत सागर की बूंद है । हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट होय मैं जाना..जिसके अंदर प्रेम हो वहीं परमात्मा को प्रकट कर सकता है नचा सकता है।

नकुल ..नियम के अनुकूल चलने वाला हमेशा मर्यादा का पालन करना,प्रकृति के अनुसार रहना, ब्रह्म मुहूर्त में उठाना ,हमेशा सही रहना, तभी भगवान साथ में खड़े रहते हैं।

सहदेव ... अच्छे लोगों की संगति करना । देवत्व की संगति करना और रामायण में कहा गया है बिन सत्संग विवेक ना होई.. सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है तो जो देवत्व की संगति करते हैं वह सहदेव होता है। और देवता कृपा बरसाने लगते हैं स्थिर भाव ,प्रेम ,नियम, संयम ,देवता की संगति तब कृष्णा साथ में खड़े होते हैं । यह सब सद्गुण हमारे अंदर है जो सोए हुए हैं जिसे जागृत करने की आवश्यकता है।

mahabharat patra : परिक्रमा में नहीं पराक्रम में विश्वास करना…..

गुरुजी कथा के दौरान बताएं कि परिक्रमा में नहीं अपितु अपने पराक्रम में विश्वास करना चाहिए,अपने अंदर के विक्रांत को जगाना विक्रांत अर्थात महा पराक्रमी। अपने सद्गुण को जगाना, कर्मठ होना, हम आलसी बनकर दूसरों के सामने हाथ फैलाने पर भरोसा रखते हैं जब हम कर्मठ हो जाएंगे और स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भगवान हमारे साथ सहयोग के लिए खड़े रहते हैं अपने पराक्रम पर भरोसा रखना ।

mahabharat patra : हम पराक्रम कम परिक्रमा अधिक करते हैं दूसरों के पीछे भाग कर हाथ फैलाते हैं जब परिक्रमा नहीं पराक्रम करेंगे अर्थात स्वयं मेहनत करेंगे अपनी मेहनत पर भरोसा रखेंगे तो हमें कहीं परिक्रमा करने की किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता ही नहीं होगी गुरुदेव विश्वास और भरोसा का अर्थ बताते हुए यह बताएं कि विश्वास में हमें संदेह होता है किंतु भरोसा में संदेह का विसर्जन हो जाता है। इसलिए परमात्मा पर विश्वास नहीं भरोसा करना चाहिए।

जहां समस्या पैदा करने वाला है वहां समाधान करने वाला भी खड़ा होता है…

mahabharat patra : कथा में गुरुदेव बताएं कि जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं तो अनेक प्रकार की परेशानी आती है लेकिन समस्या को देखकर हमें भागना नहीं चाहिए क्योंकि जहां समस्या करने वाले होते हैं वहां समाधान करने वाला भी होता है और समाधान करने वाला भगवान ही होता है, हमेशा समस्या की हार होती है और समाधान की जीत होती है इसलिए हमें अपने पराक्रम पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए ।  गीता ज्ञान अमृत वर्षा कथा में उपस्थित श्रद्धालु और भक्तजन गुरुजी के दिव्य वचनों का श्रवण किया।  .

mahabharat patra : 8 अक्टूबर को भव्य हवन

कथा के अंतिम दिन दिनांक 08 अक्टूबर 2025 को भव्य हवन का आयोजन किया जाएगा । जिसकी विशेषता यह रहेगी कि यह पवित्र हवन जल और पुष्पों से संपन्न किया जाएगा। यह अनुष्ठान भी दोपहर 3:00 से 5:00 बजे तक आयोजित होगा। इस हवन का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आध्यात्मिक शुद्धि और जनकल्याण की मंगलकामना करना है।  उक्त जानकारी मां कामाख्या धर्मादा ट्रस्ट छत्तीसगढ़ मीडिया प्रभारी श्रीमती कल्पना शुक्ला द्वारा प्रदान की ।

आवश्यक सूचना –  जिनको गुरुजी से गुरु दीक्षा लेनी हो कल शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर कथा स्थल में गुरु दीक्षा दी जाएगी । अपना नाम ग्रुप में या इंद्राणी दुबे , 78691 69953 ; कल्पना शुक्ला 9479200060
डॉ. नीता गुरुगोस्वामी – 94252 03521 के पास भेज सकते हैं।


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