सुविचार
गुप्त शत्रुओं की पहचान करो।
जैसे तुम अपने आस-पास में किसी को गुप्त शत्रु समझते हो कि ये मेरे पीठ में खंजर चुभोता है,उससे बचने के समस्त उपाय करते हो,और उसे अपनी गतिविधियों के कानोकान खबर नहीं लगने देते हो, ठीक उसी प्रकार से गुप्त शत्रु तुम्हारे अपने हीं अंदर भी है,और उन शत्रुओं को बड़ी आत्मीयता के संग तुम स्वीकार कर बैठे हो। इतना हीं नहीं वो तुम्हें अपने अधीन करके तुमसे सब काम भी करवातें हैं,किन्तु तुम्हें पता हीं नहीं चल पाता ,क्योंकि वो गुप्त शत्रु हैं। पहचान नहीं पाते।अगर पहचान लेते तो उनसे दूर होकर अपने को हर तरह से समृद्ध कर लेते। उन्हीं गुप्त शत्रुओं के नाम हैं:–क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, मोह, लोभ,मद,आडम्बर,अहंकार,आसक्ति, वासना,इत्यादि। दूर रहो इनसे। यही तुम्हें बर्बाद कर रहें हैं।
शिक्षा:–तुम्हें अपने अंदर के शत्रुओं से अपनी रक्षा करने की आवश्यकता ज्यादा है,बाहरी गुप्त शत्रुओं की अपेक्षा। अगर अंदर के गुप्त शत्रुओं को जीतने में सफल हो गये तो बाहर के गुप्त शत्रु तुम्हारी शान्ति और आनंद को कभी नहीं छू पायेंगे,और तुम सदैव प्रसन्न रहोगे।
जय माँ