जो दूषित संगति छोड़कर सत्संग से जुड़ता है, वही ईश्वर को प्रिय होता है – गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

Gurudev Shri Sankarshan Sharan
Gurudev Shri Sankarshan Sharan

रायपुर 21  नवंबर । Gurudev Shri Sankarshan Sharan : परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने गीता ज्ञान अमृत वर्षा की कथा के तीसरे दिन बताएं कि भगवान को किस तरह के लोग प्रिय होते हैं ।

अपने अंदर भी ईर्ष्या का भाव जागृत

Gurudev Shri Sankarshan Sharan : भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो किसी से द्वेष नहीं रखता ,ईर्षा का भाव ना हो ,जब अपने अंदर की ईर्ष्या मिट जाती है तब किसी के इर्षा का कोई प्रभाव नहीं रहता, जब हम यह कह देते हैं कि वह हमसे इर्षा करता है इसका मतलब अपने अंदर भी ईर्ष्या का भाव जागृत होती है तभी हम दूसरे की ईर्ष्या को समझ पाते हैं ।

अपमान- सम्मान दोनों में संतुष्ट रहना

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  सभी जीवों पर दयालुता का भाव हो जो किसी के लिए शत्रुता नहीं रखता हो,जो मिथ्या अहंकार से मुक्त हो ,जो अपने को स्वामी ना माने, जो संतुष्ट रहता हो ,अपमान- सम्मान दोनों में संतुष्ट रहना, जहां कोई चिंता ना हो , आत्म संयम रखना, स्वयं पर नियंत्रण रहना, निश्चयात्मकता बुद्धि निश्चय के साथ अपनी बुद्धि मुझ में लगा दो ,जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुंचता हो, सुख-दुख , सब में एक समान हो,हर व्यक्ति अपने आने वाले कल से भयभीत होता है ।

Gurudev Shri Sankarshan Sharan : जो दूषित संगति छोड़कर सत्संग से जुड़ता है, वही ईश्वर को प्रिय होता है – गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

संतुलन में रहने की बात बताई गई

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  कोई भी अभय नहीं है ,मेरा ऐसा भक्त जो शुद्ध है , दक्ष है चिंता रहित है,जो किसी फल के लिए प्रयत्नशील नहीं है वह मुझे अत्यंत प्रिय है । दैनिक जीवन में जो व्यवहार करते हैं इन सब के बारे में बताया गया संतुलन में रहने की बात बताई गई।

अर्जुन विचारवान, दुर्योधन विचारहीन और कृष्ण निर्विचार

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  अर्जुन विचारवान, दुर्योधन विचारहीन और कृष्ण निर्विचार । किसी भी प्रकार के विचार न हो, सब विचारों को पार कर गया हो वह निर्विचार है। समस्त क्रियाकलापों में उचित व्यवहार करना,सामान्य क्रियाकलापों में आश्रित ना हो, सबका सम्मान करता हो, जो शुद्ध हो ,कुशल हो, कुशलता का अहंकार ना हो ,दक्ष हो लेकिन दक्षता का अहंकार ना हो, जैसे फल से लगे वृक्ष होते हैं सरलता हो ।

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  चिंतन परमात्मा के प्रति

जो चिंता नहीं परमात्मा की चिंतन में भरा हो । चिंता चिता एक समान होती है चिंता घर परिवार समाज के प्रति होती है समस्त कार्यों के प्रति होती है लेकिन चिंतन परमात्मा के प्रति होती है ।

Gurudev Shri Sankarshan Sharan : जो दूषित संगति छोड़कर सत्संग से जुड़ता है, वही ईश्वर को प्रिय होता है – गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

फल की इच्छा रखने से कर्म कमजोर पड़ जाता

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  फल की इच्छा रखने से कर्म कमजोर पड़ जाता है ,जल्दबाजी में चेतना भटक जाती है ,बुद्धि काम नहीं करती है ,जो ना हर्षित होता है ना शोक में रहता हो,ना पछतावा हो, शुभ अशुभ दोनों में का परित्याग कर देता है ऐसा भक्त मुझे अत्यंत प्रिय है ।

सत्संगति भगवान को प्रिय

जो मित्र तथा शत्रु सबको समान दृष्टि से देखा है ,मान- सम्मान अपमान में एक समान हो, शीत और गर्मी में एक समान हो, अंदर से भी शीतलता और बाहर से क्रोध हो ,अग्नि तेज रहे तब भी स्थिर रहता हो, सुख-दुख ,लाभ- हानि  सब में समान हो जो दूषित संगति से मुक्त हो सत्संगति में रहे वह भगवान को प्रिय होता है।जो सदैव मौन और हर स्थिति में संतुलन में हो वह मुझे प्रिय होता है।

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  ज्ञान में दृढ़ और भक्ति में संलग्न हो

जो प्राप्त है वह पर्याप्त है ऐसा समझे जो ज्ञान में दृढ़ और भक्ति में संलग्न हो ,जो इस भक्ति के अमर पथ को अपनाता हैं पूर्ण रूप से अनुसरण करता है भगवान को ही मनाना मुझे ही अपना परम लक्ष्य मनता हो वही मुझे प्रिय है।

Gurudev Shri Sankarshan Sharan :  जल और पुष्प से विधिवत हवन

गीता ज्ञान अमृत वर्षा की कथा को श्रवण करने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। आयोजक श्रीमती कविता चिंतामणि कश्यप ने बताया कि कल शाम 3 बजे से हवन का आयोजन किया जाएगा, जो जल और पुष्प से विधिवत संपन्न होगा।


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