Govardhan Puja : लक्ष्मीनारायण मंदिर में भव्य रूप से मनाया गया गोवर्धन पूजा, गोबर की बनी कृष्ण प्रतिमा

Govardhan Puja
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जगदलपुर | Govardhan Puja :  कार्तिक मास दीपोत्सव के पश्चात मनाए जाने वाला पर्व गोवर्धन पूजा जिसे भारत के अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम से पूजन किया जाता है। जिसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है,आज शनिवार को बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर के लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर पर गोवर्धन पूजा पर्व भव्य रूप से बड़े ही श्रद्धा एवं विधि विधान से पूजा अर्चना किया गया।

भगवान श्रीकृष्ण एवं गौ माता की पूजा अर्चना किया गया

Govardhan Puja : जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। भगवान श्रीकृष्ण एवं गौ माता की पूजा अर्चना के पश्चात् खिचड़ी भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया गया।

गोवर्धन पूजा का दिन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनकी अद्वितीय भक्ति का प्रतीक है। इस दिन को विशेष रूप से इसलिए मनाया जाता है क्योंकि श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुल वासियों की रक्षा की थी।

Govardhan Puja : कथा के अनुसार, गोकुलवासी वर्षा के देवता इंद्र की पूजा किया करते थे, लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सुझाव दिया, जो उन्हें भोजन और संरक्षण प्रदान करता था। इंद्र को इस पर क्रोध आ गया और उन्होंने मूसलधार बारिश कर दी। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर सभी को आश्रय दिया।

पंडित रोमित राज त्रिपाठी ने इस कथा को साझा करते हुए बताया कि यह पर्व हमें भगवान में आस्था और प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना सिखाता है। गोवर्धन पूजा के बाद खिचड़ी भोग के रूप में प्रसाद ग्रहण करना भी इसी भक्ति भाव का हिस्सा है। खिचड़ी जैसे सादे भोजन में सामूहिकता, सादगी और संतोष का संदेश निहित है।

Govardhan Puja : छड़ी नुमा लकड़ी का उपयोग नारियल फोड़ने के लिए किया

पुजारी  ने बताया आज के दिन ग्वाले एक छड़ी नुमा लकड़ी का उपयोग नारियल फोड़ने के लिए किया करते हैं जिसे वे वर्ष पर तेल में भिगो के रखते हैं और एक प्रहार से नारियल फोड़ने का कार्य करते हैं जिसे केवल ग्वाले ही कर पाते हैं।

Govardhan Puja : वहीं आज लक्ष्मी नारायण मंदिर में इस अवसर पर गोबर से भगवान श्री कृष्णा की प्रतिमा बनाई गई थी जो अपने आप में बड़ी अद्भुत है। गोबर से बनी इस प्रकार की प्रतिमाएँ न केवल भगवान के प्रति श्रद्धा व्यक्त करती हैं, बल्कि कृषि और ग्रामीण संस्कृति को भी बढ़ावा देती हैं।


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