अध्यात्म/ कल्पना शुक्ला
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने भगवान शिव की महिमा बताते हुए उनके श्रृंगार का वर्णन करते हैं और कथा में यह बताएं कि भगवान शिव महादानी है यह तुलसीदास जी द्वारा मानस मैं भी लिखा गया है । भगवान शिव के समान कोई दानी आज तक न हुए न हीं है , महादानी ना ही कोई हो पाया। उनके अंदर में लोभ नहीं है जिसके अंदर लोभ नहीं हुआ वह दान कर सकता है, दान जितना करेगा उतना ही लोभ नामक बुराई का अंत होता है ।
यह लोभ को कंगन के रूप में सर्प के रूप में धारण किए हैं , इससे हमारा लोभ निर्मल हो जाएगा निष्पाप हो जाएगा । हाथ में सर्प का कंगन या लोभ का प्रतीक है भगवान कहते हैं लोभ तब मिटता है जब दान दिया जाए महा कंजूस से कंजूस व्यक्ति को दान देने के लिए कहा जाए जितना अधिक अपने हाथ से वह दान करेगा उतना ही उसका लोभ समाप्त होगा ।
इस प्रकार की बुराई जीवन से चली जाएगी जब तक आप अपनी तरफ से किसी को दोगे नहीं तब तक लोभ मिटेगा नहीं इसमें जितना अधिक दे सकोगे उतना ही देते जाओ लोभ मिटता चला जाएगा । मोह त्याग करके समाप्त होता है वह लोभ का ही भाई है, मोह अपने पास है वह किसी को देना नहीं चाहता है और लोभ अपने पास नहीं है वह भी प्राप्त करना चाहता है , यही दोनों में अंतर होता है। भगवान कहते है दोनों ही जीवन को बर्बाद करने वाले है। मोह का त्याग होना और लोभ से शुद्ध होना। इसलिए रावण मिट जाता है विभीषण शुद्ध हो जाता है मोह और लोभ में अंतर होता है।
भगवान चिता भस्म का लेप लगाते हैं मनुष्य चिता में तब होता है जब उसके अंदर के विकार सब मिट जाते हैं गांठे समाप्त हो जाती है मृत अवस्था में होता है गवान ने दिखाया है पूरे जीवन मनुष्य परमात्मा को प्राप्त करना चाहता है भगवान को अपनाना चाहता है लेकिन इसके अंदर कितने प्रकार के गांठे होती है और लोभ,ईर्ष्या, पाखंड से ग्रसित होते हैं इतनी बुराई होती हैं इसलिए प्राप्त नहीं कर पाता , अपनी बुराइयों के कारण भगवान से मिल नहीं पाता।
भगवान उसे स्वीकार नहीं कर पाते तो मृत्यु के बाद जब शरीर शांत हो जाता है चिता में परिवर्तित हो जाता है , निर्मल हो जाता है भगवान कहते पुरे जीवन मुझे चाहता रहता अपनी कमियों के कारण मुझे प्राप्त नहीं कर सका ,चिता के रूप में हो गया तेरे अंदर कोई गांठ रही ही नहीं ,निर्मल हो गया । भगवान पूरे शरीर पर लेप करते हैं ।
मैं ऐसे लोगों को स्वीकार करता हूं । जो जिसके अंदर कोई विकार न रहे, अंदर की गांठे खुल जाए। तुम सुधर जाओ तो तुम्हें जीवन में भी स्वीकार कर सकता हूं और मृत्यु के बाद भी स्वीकार कर सकता हूं।
भगवान शिव आदि अनादि अनंत सब कुछ है और उन्होंने अपने जीवन से अपनी साधना शैली से अपने समाज शैली से और अपने खानपान आचरण नियम संयम और व्यवहार से पूरे सृष्टि के प्रत्येक घर को प्रत्येक परिवार को शिक्षा देते हैं पूरे परिवार को कहते हैं हर तरह से संतुष्ट रहने की बात कही गई है।
उनके माथे भक्ति रूपी गंगा बहती है है यह संकेत देते हैं कि आपके अंदर हमेशा भक्ति सवार रहे भक्ति से विमुख कभी नहीं होना है और जिस परिवार का मुखिया बराबर भक्ति से ओतप्रोत बना रहेगा उसका परिवार संतुलित रहेगा संयमित रहेगा सुखी रहेगा और समृद्ध रहेगा । उसके सान्निध्य में आने वाले बुरे से बुरे लोग भी अच्छे हो जाएंगे, निकृष्ट भी उसके सानिध्य में आकर पवित्र हो जाएगा इसलिए भगवान शंकर गंगा को हमेशा धारण करते है भक्ति की धारा निरंतर प्रवाहित हो रही है , और घर के मुखिया को भक्ति में लीन हो उसके संस्कार उनके पूर्वज पर पड़ता चला जाता है परिवार पर पड़ोस में पड़ता है।
भगवान ने काल को दिखाएं गले का सर्प काल का प्रतीक है और यह भगवान दिखाते हैं। चंद्रमा रूपी अबोध लोगों को नवजात शिशु को सुरक्षित करके दिखाते हैं यह चंद्रमा अबोध शिष्य के रूप में है, द्वितीया का चांद है फुल मून नहीं है दिमाग नहीं है होते हैं ,जितने शिध्य होते हैं वह अबोध होते हैं और कहते हैं ऐसे शिष्य को गुरू अपने मस्तक पर रखते हैं।
चंद्रमा का विवाह हुआ रोहणी और रेवती से । रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे, रेवती से चंद्रमा प्रेम नहीं करते थे । रेवती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से शिकायत की , चंद्रमा को मेरे लिए समय नहीं मिलता रोहणी को ज्यादा पसंद करते हैं ,दक्ष प्रजापति इसकी वजह से चंद्रमा को श्राप दे देते है जाओ तुम्हें क्षय रोग हो जाए।
उसी समय से चंद्रमा गलने लगा और उसकी रक्षा के लिए कोई तैयार नहीं हुए चंद्रमा भागते हुए भगवान शिव के पास आए भगवान शिव कहते हैं जब इस सृष्टि में रहोगे तब श्राप से ग्रसित होना पड़ेगा। भगवान अपने मस्तक पर धारण कर लेते हैं जो सृष्टि के पार है, भगवान का निवास कैलाश पर है वह पृथ्वी पर नहीं है परमात्मा का धाम है। धरती से अलग है इसलिए राजा बलि ने जब दान किया था पृथ्वी दान किया था , जल का भाग नही, भगवान उसे पताल लोक दे देते हैं और चंद्रमा को धारण करते हैं ।
जब शिष्य ज्ञानी हो जाते हैं तो गुरु अपने मस्तक से उतार देते हैं अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं लेकिन जब अबोध रहता है तब गुरु अपने मस्तक में उसकी रक्षा करते है, जिसे हमेशा सान्निध्य बना रहे और हमेशा शिष्य में ज्ञान की कमी रहे हैं ताकि गुरु के सानिध्य में रहकर ज्ञान अर्जन करता रहे भक्ति से सिंचित रहे तो उस शिष्य की काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है ।
भगवान शिव ने यही बात कही कि देवताओं मैना की समझ इतनी ही अच्छी होती तो मेरे गले का सर्प देख कर थाल नही पटक देती । थाल पटक कर कोप भवन में बैठ गई हमारी बेटी कुंवारी रह जाएगी विवाह नहीं करेंगी, अगर उनकी बुद्धि सही होती तो यह समझती, हर मां अपनी बेटी को सुहागन देखना चाहती है, और जिससे सभी संसार भयभीत रहते हैं उसे खिलौने के तरह गले में धारण किया है वह हमेशा सुहागन रहेगी, हमारा दामाद इतना बढ़िया है काल को भी खेल की वस्तु की तरह गले में धारण करते हैं , उसका काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा यह तो कल ही है हमारा दामाद तो महाकाल है।
दृष्टिकोण बदलने की भगवान ने शिक्षा दिए, भगवान ने कहा – मैं गलती से भी गलती नहीं करूंगा धर्म के ऊपर सवार है , धर्म मुझे लेकर चल रहा है । वृषभ को धर्म कहा जाता है ,धर्म का प्रतीक है । धर्म ,अर्थ, काम ,मोक्ष धर्म के चार पैर है । भगवान शिव कहते हैं मैं धर्म से विमुख नहकिसी भी स्थिति में नहीं हो सकता है । उल्टे बैठे भगवान देख रहे हैं भूत प्रेत को। अपने भक्तों से विमुख नहीं होना चाहते है , यह भी दुखी होंगे और हमें अच्छा नहीं लगेगा बैठा हूं मेरा दर्शन हमेशा करता रहे इनके उत्साह में ही मेरी खुशी है।
उल्टा बैठ जाना स्वीकार है लेकिन शिष्यों से विमुख होना स्वीकार नही है, शिष्यों की खुशी में कमी होना स्वीकार नहीं ।
भगवान शिव को कान में बिच्छू लगाए हैं कुंडल के रूप में , उसका अर्थ हुआ बिच्छू संशय का प्रतीक है डाउट का प्रतीक है डाउट दिखाया गया । भगवान डाउट लगाए हैं कान से मैं निरंतर ब्रह्मांड का नाम सुनता रहता हूं ओंकार की ध्वनि सुनता हूं भगवान की कथा सुनता हूं । कान से भगवान का नाम भगवान की कथा हमेशा मिलता रहेगा इसलिए बिच्छू कभी कुछ कर नहीं पाएगा कभी किसी को कष्ट नहीं दे सकता अगर भगवान की कथा सुनते हैं । डाउट वाले व्यक्ति कई लोग को गुमराह कर देता है तबाह कर देता है।
त्रिशूल अर्थात मन ,बुद्धि, अहंकार को शुद्ध करता है , तम रज और सत को को संतुलित करता है। तम, रज से सत का स्थान उच्च का होना चाहिए बीच में सत्य होता है । भगवान इस तरह से त्रिशूल धारण करके ज्ञान देते हैं तुम्हारे पास भी त्रिशूल नामक एक अंतःकरण में हथियार होना चाहिए जो तुम्हारे रज तम और सत को संतुलित कर सके जो बैलेंस कर सके जो काम है उसको बढ़ा सके और संतुलित मार्ग में चल सके , अपने अंदर में त्रिशूल से किसी को मारना नहीं है अपने अंदर शुद्ध करना। त्रिशूल अपने अंदर भी है अपने अंदर की प्रवृत्ति को प्रकृति के गुण को कम और ज्यादा करके मेंटेन रखें तब वह सुंदर होगा बुद्धि अहंकार को शुद्ध रखेगा।
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डमरू धारण करना डमरू से निकलकर 14 प्रकार से व्याकरण की रचना की । और 14 प्रकार की व्याकरण शास्त्र में व्याकरण है । परमात्मा ने विधान दिया था परमात्मा ने शास्त्र दिया था वह शास्त्र ब्रह्मांड में भटक रहा था इस समाज में, वायुमंडल में चारों तरफ घूम रहा था लेकिन किसी के लिए प्रगट नहीं था, जब डमरू बजाते है तो उससे जो ध्वनि निकले और ध्वनि से वायुमंडल में टकराव हुआ उससे संबंधित जो शास्त्र प्रकट हुआ उन्हें के माध्यम से लिखा गया । शंकर जी आचार्य भी है, ज्ञान ,विज्ञान सब कुछ उन्होंने दिया।
नर मुंड की माला श्रद्धा की माला है यह आदि शक्ति का ही रूप है आदिशक्ति के हर रूप को भगवान शिव धारण करते हैं उनकी सर को धारण करते हैं, इससे दो तरह का संदेश देते हैं आध्यात्मिक रूप से देते हैं जिस समय श्रद्धा में कमी आ जय ऐसी श्रद्धा मिट जानी चाहिए और वह शव लेकर अपने मुंडमाला बनाकर धारण करते हैं ।
जब पार्वती से पानी ग्रहण होता है तब से लेकर अभी तक भगवान ने कोई सर धारण नहीं किया। नहीं करने का कारण था पार्वती जी को अमर कथा सुना देते हैं। अब आपको मरने की आवश्यकता नहीं है पार्वती जी सती सावित्री हो जाती है जो भगवान कहते उनके अनुसार चलने लग जाती है जब तक नहीं चलती है तब तक बार-बार मिटना पड़ता है भगवान शिव स्वयं विश्वास के प्रतीक है पार्वती श्रद्धा के प्रतीक है श्रद्धा विश्वास होना चाहिए किसी प्रकार की कोई दूरी ना हो जाए विचारों में मेल होना चाहिए तभी चलता है अभी तक जितने थे विचारों में भी रखता था जिसके चलते श्रद्धा बार-बार जन्म लेती है इसलिए मैंना को बुदधि कहा गया । बुद्धि से हमेशा श्रद्धा का जन्म हो जाती है हर किसी में श्रद्धा का जन्म होता है जो श्रद्धा और विश्वास के साथ में उसको मिटा दिया करते थे। जिस समय भगवान को समझने लग गई उसको भगवान ने अमर बना दिया अमर कथा सुना दिया।
गृहस्थ जीवन में कहते हैं हमेशा अपनी पत्नी को गले में धारण करते रहो तब गृहस्थ जीवन सुखी चलेगा कभी भी अपनी पत्नी का तिरस्कार ना करें दोनों तरह से संदेश देते हैं पत्नी की सेवा हमेशा होती रहे भगवान शिव ने किसी भी रूप में कभी भी किसी का तिरस्कार नहीं किया किसी का अपमान नहीं किया हमेशा गले का हार बना रहना हमेशा उसकी देखरेख करना भगवान हमेशा इसी तरह करते हैं विश्वास हमेशा बना रहता था श्रद्धा को मिट जाना पड़ता था गलती उसी से होती है और अंत में अफसोस होता था स्वयं ही प्राण त्याग देती जैसे सती ने प्राण त्याग दिया। भगवान शिव कभी विचलित नहीं होते हमेशा संतुलित रखने के लिए हर तरह के संकेत देते गए।