Choodi : काँच की चूड़ी,खुशियों की कड़ी..

by Kamal Jyoti

Choodi
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 छत्तीसगढ़ | Choodi : काँच की चूड़ियां, सिर्फ चूड़ियां ही नहीं..रिश्तों और खुशियों की वह अनमोल कड़ियां भी है जो भावनाओं से ही अभिव्यक्त किया जा सकता है.
इसकी खनक एक ऐसा संदेश भी है जो किसी महिलाओं के हाथों में खनकते ही सुनने वालों को अलग ही आभास कराती है..इनका तोड़ना या टूटना का अर्थ आप समझ सकते हैं..बरसो पहले गली मुहल्ले में चूड़ियां बेचने वाली औरते आती जाती थीं।

बरसो पहले गली मुहल्ले में चूड़ियां बेचने वाली औरते आती जाती

Choodi : उनकी आवाज सुनकर एक महिला अन्य कई महिलाओं को सूचना देकर बुला लाती थीं। गली के किसी चौबारे या फिर चबूतरे में बारी-बारी से चूड़ियां पहनती थीं…। यह सिलसिला अक्सर कुछ महीनों के अंतराल में नजर आता था। हाथों में काँच की रंग बिरंगी चूड़ियाँ हर सुहागिन औरतों के लिए उत्साह और खुशियों की कड़ी होती थीं…।

बातों बातों में चूड़ियां पहना जाती

Choodi : चूड़ी बेचने वाली औरत भी बातों बातों में उलझा कर कलाई पर चूड़ियां पहना जाती थीं… शहर जाने या किसी मेले में जाने के दौरान भी रंगबिरंगी चूड़ियां ले आता था और बाहर से लाई चूड़ियों को कोई अनमोल उपहार के रूप में भेंट कर जाता था…तब झट से टूट जाने वाली यहीं चूड़ियां रिश्तों को और भी मजबूत बना जाती थीं…

Choodi : सावन महोत्सव में काँच की चूड़ियां पहनती

अब शहर के गली मुहल्लों में यह नजारा नहीं रहता….खैर सावन के मौसम में शहर की कुछ महिलाओं का सावन महोत्सव आयोजित होता है तो वे हरी साड़ियों के साथ शायद काँच की चूड़ियां पहनती है…
Choodi : गाँव की महिलाओं का कोई सावन महोत्सव नहीं होता
सोलह सृंगार करती है..सावन के महीने में एक दिन सजधजकर वे अपनी ख्वाहिशें पूरी करती होंगी..लेकिन गाँव की महिलाओं का कोई सावन महोत्सव नहीं होता..
Choodi : वे अपनी कलाई काँच की चूड़ियों से आबाद रखती है…और सावन तो उनके जेहन में बसा है..सृंगार जीवन में…यह भी सच है कि इस अनमोल चूड़ियों का उपहार कोई लाता नहीं… शायद यहीं रिश्ते की कडुवाहट है…

Best Regards Kamal Jyoti (FB)