करमा तिहार उत्सव में शामिल हुईं महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती राजवाड़े

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chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now
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रायपुर, 7 सितंबर । chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now : छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकपरंपराओं और जनभावनाओं से जुड़े करमा तिहार पर्व का आयोजन सूरजपुर जिले के ग्राम पंचायत संबलपुर में हर्षाेल्लास और पारंपरिक रंग-रस के साथ किया गया। इस अवसर पर प्रदेश की महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं।

श्रीमती राजवाड़े ने करमा गीतों और नृत्यों का आनंद लिया

chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now :  श्रीमती राजवाड़े ने क्षेत्रवासियों संग करमा पर्व के पारंपरिक गीतों और नृत्यों की छटा का आनंद लिया और ग्रामीणों को करमा तिहार की बधाई दी। उन्होंने कहा कि करमा तिहार भाईचारे, सामूहिकता और श्रम संस्कृति का पर्व है, जो हमारी ग्रामीण परंपराओं और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित महिलाओं, युवाओं और बच्चों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया।

गांवों के कलाकारों द्वारा करमा नृत्य प्रस्तुति दी गईं

chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now : कार्यक्रम के दौरान संबलपुर और आसपास के गांवों के कलाकारों द्वारा करमा नृत्य, पारंपरिक गीत और लोककला की प्रस्तुतियां दी गईं, जिनसे वातावरण उल्लास और उत्सव की भावना से सराबोर हो गया। ग्रामीणजनों ने मंत्री श्रीमती राजवाड़े का पारंपरिक स्वागत किया और कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक भाग लिया।

क्या है करमा तिहार जुड़ी मान्यता 

chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now :  करमा तिहार भारत के विभिन्न राज्यों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला एक प्रमुख आदिवासी पर्व है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, प्रकृति पूजन और अच्छी फसल की कामना से जुड़ा हुआ है।

बहनों का व्रत और करम डाली की पूजा

chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now :  इस दिन विशेष रूप से बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। वे करम डाली (एक विशेष वृक्ष की डाल) की पूजा करती हैं। आदिवासी समुदाय प्रकृति को ही अपना देवता मानता है और करम डाली को ईश्वर तथा प्रकृति का प्रतीक मानकर पूजता है।

 chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now :  करमा पर्व की कहानी

छत्तीसगढ़ के रायगढ़, कोरबा, जांजगीर-चाम्पा, महासमुन्द आदि जिलों की जनजातियों के अनुसार राजा करमसेन ने अपने ऊपर विपत्ति पड़ने पर इष्टदेव को मनाने के लिए रात भर नृत्य किया जिससे उनकी विपत्ति दूर हुई। तब से राजा करमसेन के नाम पर करमा का पर्व एवं करमा नृत्य प्रचलित है।

करमा पूजा का दूसरा नाम पद्मा एकादशी भी है

chhattisgarh sambalpur karma tihar rajwade now : करमा पूजा का दूसरा नाम पद्मा एकादशी या भादो एकादशी भी कहा जाता है। करमा पर्व हर वर्ष भाद्रपद (भादो) माह की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस अवसर पर आदिवासी समाज प्रकृति के प्रतीक करम डाली की पूजा करता है और अच्छी फसल, परिवार की समृद्धि तथा भाई की लंबी उम्र की कामना करता है। करमा पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आदिवासी समाज की प्रकृति से जुड़ी जीवन शैली को भी दर्शाती है।


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