प्रेम की जगह जब ईर्ष्या प्रवेश कर जाए,आनंद चला जाता है,…

Guruji
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रायपुर  | आनंद नगर के दुर्गा मंदिर में में चल रही श्री राम कथा के पाँचवे दिन शनिवार को कथा व्यास प्रयागराज वाले युग प्रवर्तक सद्गृहस्थ संत, कथा वाचक श्री संकर्षण शरण जी (Sankarshanji) (Guruji) @SANKARSHANSHARAN (गुरु जी) ने श्रोताओं को कथा का सार बताने के साथ ही भगवान राम की वन गमन की कथा के माध्यम से यह बताएं कि अयोध्या में मंथरा पहुंच जाती है भगवान राम का वन चले जाते है, मंथारा अर्थात मंद मती ।

जब किसी दूसरे के कहने पर लोग चलने लग जाते हैं तो भटक ही जाते हैं आज समाज में यही स्थिति है,दुर्जनो को किसी की खुशी बर्दाश्त नहीं होती है, कथा यह संकेत देती कि जब हम अपने गुरु का शास्त्रों का नहीं सुनते है, किसी और की बात में आते हैं तब अनपढ़ गवार लोग भी घर को तबाह कर देते हैं। जब किसी दूसरे के बुद्धि में चलते हैं किसी के बहकावे में आ जाते हैं तो हम बर्बाद हो जाते हैं, मंथरा कैकई को भी भड़का देती है और पूरा घर बर्बाद होता है।

ईर्ष्या स्वयं को पहले नुकसान करती हूं ,और आनंद को समाप्त कर देती है,ईर्ष्या को समाप्त कर देना चाहिए ।

अज्ञात हमेशा बीच में उतर जाता है हम लोग सिर्फ अपनी इच्छा पूरा करना चाहते लेकिन भगवान कुछ और चाहते हैं जब राम राज्य की तैयारी थी मंथरा की मती बदल जाती है और कैकई अपना वरदान मांग लेती है राम राज्य के जगह में राम का वनवास होता है , भगवान जब वन जाते हैं रात्रि में जाते हैं जब पूरी अयोध्या सोए रहती है जब हम सो जाते हैं चैतन्य होने की आवश्यकता है अन्यथा भगवान हमारे बीच से निकल जाते हैं हमें पता नहीं चलता है,जीवन में हर जगह चैतन्य रहने की आवश्यकता है अन्यथा अवसर हमारे हाथ से निकल जाते हैं,और हम चूक जाते हैं।

भक्ति और विश्वास और श्रद्धा की पराकाष्ठा

भक्ति और विश्वास और श्रद्धा की इतनी पराकाष्ठा होती है कि भगवान को भी अपनी बात मनवा लेते हैं…. केवट के प्रसंग में यह बताएं कि किस तरह के केवट भगवान राम को चरण धुलाने के लिए मना लेते हैं और भगवान प्रेम से स्वीकार करते हैं यह संकेत देते हैं कि कब किसकी आवश्यकता कहाँ पर पड़ सकती है, कभी भी किसी को छोटा, गिरे हुए,या तिरस्कार की भावना से नही देखना चाहिए, सबके साथ अच्छा व्यवहार करें, सम्बन्ध बनाकर रखना चाहिए,वन में भगवान राम केवट से नाव में पार करने की बात कही।

केवट बड़े ही भाग्यशाली है जो भगवान के दोनों चरण भी प्राप्त करते हैं और भगवान का हाथ उनके सिर में होता है साथ में भगवान स्वयं उनके समस्त पूर्वजो का भी उद्धार करते है,केवट के पास कुछ पात्र नहीं है लेकिन भगवान है बताते हैं कि भगवान पात्र नहीं पात्रता देखते हैं, के बाद के पास पात्रता है उसके प्रेम और भक्ति प्रगाढ़ है ,लकड़ी के बर्तन से भगवान की चरण धोते है, केवट उतराई लेने से मना करते हैं क्योंकि वह परमार्थ का कार्य कर रहे हैं ,जब उतराई लेते तो स्वयं का स्वार्थ होता, 84 लाख जीव का प्रतिनिधित्व करते हैं ,केवट कहते हैं कि प्रभु आप जीवो को 84 लाख योनियों में घुमाते हो तब कितना कष्ट होता होगा ,सन्त में यह कहते है कि आपके मिलने से मेरे दुख दरिद्र सब समाप्त हो गया और मुझे कुछ नहीं चाहिए ।

मां को प्रणाम करते हुए परम पूज्य गुरुदेव यह बताएं कि हम भारत भूमि को मां कहते हैं गौ माता धरती माता सब जगह माँ ही है और जब प्रार्थना करते तो सबसे पहले माता का ही प्रार्थना करते हैं , त्वमेव माता च पिता त्वमेव….  चीन और जापान मां नहीं है सिर्फ भारत ही मां है , इसलिए माँ सर्वप्रथम वंदनीय है।

जब रावण गद्दी से उतर जाय स्वतः रामराज्य आता है… राजा दशरथ भगवान को जंगल का राज्य देते हैं ,14 वर्ष का वनवास मिलता है ,रामराज्य लाना है तो पहले रावण को समाप्त करना होगा । भगवान वन का राज्य स्वीकार करते हैं।

हम सबके अंदर के बुराई को हटाने की आवश्यकता है, जो हमें अपने अनुसार चला रहे हैं, जैसे ही हमारी    कुप्रवृत्ति का अंत होगा सुप्रवर्त्ति अपने आप हावी हो जाएगी, जब हमारे अंदर की बुराई चली जाएगी फिर हृदय रूपी अयोध्या में रामराज्य हमारे अंदर आ जाएगा ।हम सबके अंदर का मोह ही रावण है जो किसी को कुछ देना नहीं चाहता है सब कुछ है स्वयं ही ले लेना चाहता है और  आज समाज में भी यही स्थिति होती है, स्वयं ही सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं ,मोह को समाप्त करने की आवश्यकता है ,जब मोह समाप्त हो जाएगा, सबके हृदय में राम का दर्शन करेंगे ।