आज का सुविचार
यह प्रकृति, परमात्मा तथा गुरु तो सदैव तुम्हे सीखा रहे हैं। 24*7 तुम्हें शिक्षा दे रहे हैं,किन्तु तुम ले तभी पाओगे जब इनसे जुड़ जाओगे। अतिवादी ,उच्छऋंखल स्वभाव वाले नहीं ले पाते । जो संतुलन में है उसे सदैव अनुभूति होते रहती है,अलग से कोई शिक्षा नही देता,न हीं कोई अलग से किसी की शक्ति जागृत करता है। क्योंकि शक्ति ,ऊर्जा तो तुम्हारी अधोगामी है,जागृत तो तुम्हें स्वयं ही करनी होगी और यह तभी सम्भव है जब तुम अपने नियमित जीवन मे ज्ञान लेकर उसे जियोगे ,निरंतर उसका अनुशरण करोगे। गुरु तो सदैव बोल रहा है ,किन्तु तुम्ही नही सुन रहे हो,तुम्हारा अहंकार और स्वार्थ नही सुनने दे रहा है। फिर गुरु जिसे अपने समीप पाता है उसे स्पष्ट बोल देता है,डाँट देता है,समझा देता है ,तब तुम्हे और बुरा लग जाता है क्योंकि तुम्हारा अहंकार सम्मान चाहता है डाँट नहीं, और इसीलिये तुम भटक रहे होते हो,मझधार में रहते हो। न ईधर के हो पाते न उधर के। चमत्कार की उम्मीद लगाये बैठे हो। जो कि वो भी तुम्हारी निष्ठा,श्रद्धा,समर्पण,प्रेम,सेवा और भाव पर ही निर्भर है। तुम तो केवल शब्दों से इन सबका प्रदर्शन करने में लगे रहते हो और उसमे भी अहंकार सर चढ़ कर बोलता है। तो याद रखना तुम्हारे वो शब्द न तो गुरु सुनता है और न ही परमात्मा ।
शिक्षा:– स्वयं ढंग से जियो और जब गुरु तुम्हे डाँटने लगे तो अपना परम सौभाग्य समझो क्योंकि तुम उसके समीप होने लगे। चोट खाओ। गुरु तुम्हे देना चाहता है,तुम्हारा कल्याण चाहता है। सह और जी लोगे तो सब प्राप्त होगा। संतुष्ट और आनंदित रहोगे।
जय माँ
संकर्षण शरण जी महाराज (गुरु जी), प्रयागराज।