साहित्य,
मुझे छोड चली मेरी बेटी
अपने सजन के घर को
रोते बिलखते छोडकर
दिल मे भरा है गम को
अब मैं हूं बेसहारा
मैं हुं गम का मारा
सूना है मेरा आंगन
उजडा जहां हमारा
जिसके कहकहो से
गूंजा करती थी दुनिया
अब गुम हुई आवाजे
है मौत सी सन्नाटा
डबडबाए ऑसुओ से
मेरी नजर ढूंढे तुझको
मुझे …..
खोलती थी दरवाजा
जब मैं कहीं से आता
खिल जाता मैं कितना
जब तू पुकारे पापा
मेरा हर खयाल रखती
भोजन मुझे कराती
मैं रो रहा हूं अब भी
तेरी याद है सताती
है दिल की ये तमन्ना
हर खुशी मिल जाए तुझको
मुझे छोड चली मेरी बेटी
अपने सजन के घर को
-: सुरेन्द्र अग्निहोत्री”आगी”
(महासमुंद)