कुछ साँसें नहीं स्वीकारती हैं, ‘बल’ अपना ही कोई छूट गया…”बल्लू-बल”

साहित्य,

बड़ा तारा ही आज टूट गया,
देखो कोई ये हमसे रूठ गया।
रही अब उनकी सिर्फ यादें हँसीं,
वर्तमाँ और भविष्य, भूत गया।
मौत सच है, शरीर नश्वर है,
बता करके हमें ये दुक्ख गया।
जहाँ सारा सूना-सूना सा लगे,
ये कौनआया के हमको लूट गया।
कुछ नग्में अभी भी पेज पे हैं,
गला हर आदमी का सूख गया।
सुनो इक हादसा अनर्थ हुआ,
आसमाँ ही ज़मीं पे टूट गया।
कुछ साँसें नहीं स्वीकारती हैं,
‘बल’ अपना ही कोई छूट गया।

-: बल्लू-बल